आज कृष्ण नहीं हैं। कृष्ण के पवित्र कार्य, उनके जनहितकारी निर्णय और लोकोपकारी कृत्यों की पावन सुगंध् गोकुल, वृंदावन, ब्रज की माटी में ही नहीं अपितु भारत की माटी के कण-कण में से आज भी आ रही है। एक ही समय में शस्त्र और शास्त्र दोनों के अप्रतिम संगम और उपासक इस महामानव के जोड़ का दूसरा व्यक्ति हमारे मध्य आज तक नहीं आया। शास्त्र का उपासक बनकर कोई गांधी आया तो कोई अति स्वाभिमानता का प्रतीक बनकर शस्त्रोपासक के रूप में महाराणा प्रताप आया, किंतु कृष्ण नहीं आया। यही उनकी महानता का निश्चायक प्रमाण है।
कृष्णोपासकों ने कृष्ण की राष्ट्रनीति और राजनीति का अनुकरण नहीं किया, उनके उस पौराणिक स्वरूप का अनुकरण किया जिसे लम्पटों ने अश्लील बना दिया। जन्माष्टमी का पर्व सही अर्थों और सही संदर्भों में हमें शस्त्र और शास्त्र के योग से निर्मित भारतीय क्षात्र धर्म की महानता की ओर लेकर चलता है। हमारी राष्ट्रनीति और राजनीति इसी आदर्श वाक्य को जब अपना आदर्श स्वीकार कर लेगी, हमारा मानना है कि हमारे अंतर में व्याप्त भाद्रपद की अंधियारी निशा के गहन बादल तभी छंट पायेंगे। तभी समझा जायेगा कि कृष्ण आज भी जीवित हैं। जिस राष्ट्र के लिए वह आजीवन संघर्ष करते रहे, वह राष्ट्र दुष्ट दुराचारियों से निष्कंटक रहे यही उनका सपना था, यही संदेश था, यही आदेश था और यही उपदेश था।
कृष्ण के इस संदेश को आदेश को, इस उपदेश को अपनाकर राष्ट्र धर्म को अपनाकर युद्घ में उतरना होगा, कृष्ण के अवतार होकर पुन: आगमन की प्रतीक्षा करना कायरता और पौराणिक मान्यताओं से जन्मी हमारी राष्ट्रीय नपुंसकता है, जिसे हर हाल में त्यागना ही होगा। जन्माष्टमी का पावन पर्व तो यही कह रहा है। इस पर्व पर भी यज्ञ हवन किए जायें। कृष्ण के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला जाये और परिवार के बच्चों को कृष्ण की जीवन लीलाओं से अवगत कराया जाये। इसके पश्चात यह गीत गाया जा सकता है-
तर्ज: तुम अगर साथ देने का… टेक: भारत के गुलशन में तेरी मुरली बजे। नाचने सारा भारत भी संग में लगे।
कली-हुए कंस हजारों पैदा यहां,
कृष्ण नजर आता नहीं।
गोपाल की गौएं कशी जाती हैं यहां,
गोपालक नजर हमको आता नहीं।।
तेरी माला जपें जो वो दुष्ट लगने लगे-1
बना करके पत्थर की तेरी मूर्ति, ले जाके मंदिर में बैठा दिया।
बना पत्थर का दिल भक्तों ने तेरे, पत्थर बना तेरा पूजन किया।। पड़ गये इनकी बुद्घि पै पत्थर से लगने लगे-2
चेतना के चेतन अंश आप थे, बढ़ रहे भारत में संताप थे।
चहुंओर घट रहे पाप थे, सुदर्शन के भय से सभी कांपते।
आज तेरे ही नाम से पाप बढऩे लगे-3
भारत की धडक़न बुलाती तुम्हें, कष्ट निवारक सुनो इसकी आवाज को। जन्माष्टमी तेरी मनाते रहें, सही आके बजाओ इस साज को।
कथनी करनी के अंतर जो बढऩे लगे-4 (समाप्त)