लावारिस बना अरबों का खेल ढांचा

भूपिंदर सिंह

वर्षों आधारभूत ढांचे का रोना रोने वाले खेल संघ आज कहां हैं? क्यों इस अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं?  क्या खेल संघों की कुर्सी पर एक बार कब्जा जमा लेने के बाद फिर खेल की सुध लेने के फर्ज से ये मुक्त हो जाते हैंज् हिमाचल प्रदेश में जहां शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है, वहीं आज खेलों के क्षेत्र में आज भी हिमाचल को वह मुकाम हासिल नहीं हो पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में पूर्व में रही सरकारों ने पिछले तीन दशकों में खूब शिक्षण संस्थान खोले और उनमें शिक्षकों की भर्ती भी की है, मगर राज्य में खेलों को चलाने के लिए तीन दशक पूर्व पूरे देश-प्रदेश में राज्य खेल विभाग के दो दर्जन प्रशिक्षक भी नहीं थे। आज भी प्रदेश के पास सभी खेलों के पचास प्रशिक्षक हैं। राज्य खेल परिषद के पास लगभग पचास ही खेल संघ पंजीकृत हैं। यानी हर खेल के लिए औसत एक प्रशिक्षक पूरे राज्य के लिए नियुक्त है। प्रदेश के हजारों युवाओं के शारीरिक विकास के लिए जब जिला स्तर पर ही प्रशिक्षक नहीं है तो फिर प्रदेश में अरबों रुपए से बने खेल ढांचे का क्या होगा? लिहाजा यही प्रदेश सरकार व खेल विभाग के समक्ष एक बड़ा सवाल है। दीगर है कि हिमाचल प्रदेश में इस समय अलग-अलग खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का आधुनिक खेल ढांचा प्रदेश के विभिन्न जिलों में बनकर तैयार है और अब खिलाडिय़ों और प्रशिक्षकों की राह देख रहा है। राज्य में बार-बार खेल प्रेमियों द्वारा मांग करने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा तो खड़ा कर दिया है, मगर उसमें अभी तक खेल प्रशिक्षण शुरू नहीं हो पाया है। दशक पूर्व ऊना तथा मंडी में दो तरणताल बनाए गए। इन तरणतालों में आज तक खेल विभाग प्रशिक्षक की व्यवस्था नहीं कर पाया है। राज्य में तैराकी संघ तथा खेल विभाग इन तरणतालों में जिला स्तर तक की प्रतियोगिता भी नहीं करवा पा रहा है। क्या राज्य तैराकी संघ तथा खेल विभाग बता सकता है कि उन तरणतालों का क्या उपयोग हिमाचल के तैराकों ने किया है या गर्मियों में व्यापारी व साहब लोग इस सुविधा का मजा लेते हैं। सरकार यहां तैराकी प्रशिक्षक नियुक्ति करती  तो हिमाचल से जरूर तैराक निकलते। हमें यह बात कब समझ आएगी कि प्रदेश में खेलों के विकास के लिए जो इतना बड़ा ढांचा खड़ा किया गया है, वह जनता के पैसे से बनाया गया है। और अब अगर प्रशिक्षकों-खिलाडिय़ों के अभाव में इसका दुरुपयोग हो रहा है, तो जनता के पैसे की बर्बादी की यह कष्टदायक स्थिति है। ऊना में ही केंद्रीय सहायता से हाकी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड बनाने के लिए एस्ट्रो टर्फ बिछाया गया है।

इस प्ले फील्ड का जहां विवाद आज भी कायम है, वहीं इस जगह भी राज्य खेल विभाग अपना हाकी प्रशिक्षक अभी तक नहीं भेज पाया है।

धर्मशाला व हमीरपुर में भी दो सिंथेटिक ट्रैक बनकर तैयार हैं। तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां पर राज्य खेल विभाग अपने एथलेटिक्स प्रशिक्षक नहीं भेज पाया है। यह बात जरूर है कि धर्मशाला में साई खेल छात्रावास तथा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई धावक व धाविकाएं यहां अपने प्रशिक्षकों के साथ आकर अभ्यास कर रहे हैं, मगर हिमाचल खेल विभाग तथा राज्य एथलेटिक्स संघ यहां पर क्या कर रहा है? क्या इस तरह के रवैये से खेल से जुड़े मकसद पूरे हो पाएंगे? एथलेटिक्स ट्रैक के पास कम से कम तीन प्रशिक्षक ट्रैक, कूद तथा प्रक्षेपण के लिए नियुक्त होने चाहिएं, मगर यहां पर तो एक भी नहीं है। हद तो तब हो जाती है जब इन तीन वर्षों में यहां मैदान कर्मचारी भी नियुक्त नहीं हैं। इससे इस बात का अंदाजा भी सहज ही लगाया जा सकता है कि खेल विभाग इस संपत्ति की सुरक्षा के प्रति कितना गंभीर है। राज्य के खेल विभाग तथा खेल संघों को अब तो नींद से जागना चाहिए। आज अगर अरबों रुपए खर्च करके भी प्रदेश में खेलों की विभागीय निष्क्रियता खेलों की हालत सुधरने नहीं दे रही है, तो इसे अनुचित ही माना जाएगा। वर्षों आधारभूत ढांचे का रोना रोने वाले खेल संघ आज कहां हैं? क्यों इस अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं? क्या खेल संघों की कुर्सी पर एक बार कब्जा जमा लेने के बाद फिर खेल की सुध लेने के फर्ज से ये मुक्त हो जाते हैं?खेल विभाग कब हिमाचल में खेल प्रशिक्षण करवाएगा? कब उसके प्रशिक्षक जहां खेल ढांचा हैं वहां नियुक्त होंगे? क्यों अरबों की इस अंतरराष्ट्रीय खेल सुविधा को लावारिस छोडक़र हिमाचल के उभरते खिलाडिय़ों से दूर रखा गया है। खेल अधोसंरचना का हमारा पूरा ढांचा कमोबेश अपेक्षा के जिस स्तर पर खड़ा दिखाई दे रहा है, उसे देखकर निराशा होती है। निराशा के इस फलक पर कई जायज सवाल भी उठते हैं, जिनका जवाब खेल विभाग व खेल संघों को देना ही होगा।हिमाचली लेखकों के लिएलेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय, ई-मेल आईडी तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे ।

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