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विशेष संपादकीय

मोदी के प्रति अपेक्षाएं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने थे तो उनको प्रधानमंत्री बनाने में उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व की विशेष भूमिका रही थी, उन्होंने उस समय लोगों से कुछ विशेष वायदे किये थे और जब राष्ट्रपति ने अपना अभिभाषण संसद में प्रस्तुत किया तो उन्होंने नरेन्द्र मोदी द्वारा लोगों से किये गये वायदों को मोदी सरकार के संकल्प प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत किया। लोगों को उस समय लगा था कि सचमुच ‘अच्छे दिन’ आने वाले हैं।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने अभिभाषण में खाद्य पदार्थों के मूल्यों को नियंत्रित करना, सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करना, ओपन ऑन लाइन पाठ्यक्रम, महिलाओं के विरूद्घ हिंसा को रोकना, काला धन खोज निकालना, नये रोजगारों का सृजन करना इत्यादि बातों पर विशेष बल दिया था। राष्ट्रपति के अभिभाषण के विशेष बिंदुओं को यदि भाजपा की मोदी सरकार के संकल्प प्रस्ताव के रूप में पढ़ा जाए या देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि भाजपा अपने इन संकल्प प्रस्तावों को पूर्ण करने की दिशा में अभी बहुत कुछ प्रगति करती दिखाई नही दे रही है। यह ठीक है कि साठ साल की दुर्गंध को समाप्त करने के लिए डेढ़ वर्ष का समय अधिक नही होता। पर यह बात भी सही है कि प्रधानमंत्री मोदी जब देश की जनता से वोट मांग रहे थे तो उन्होंने भी यह नही कहा था कि वह साठ साल के पापों को सोलह साल में धोएंगे। उन्होंने भी इन्हें धोने के लिए केवल पांच वर्ष मांगे थे, और अब पांच वर्ष का लगभग एक तिहाई भाग चला गया है, तब यह स्वाभाविक है कि उन्हें अपने संकल्प प्रस्तावों का एक तिहाई भाग भी पूर्ण कर देना चाहिए था। -देवेन्द्रसिंह आर्य

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