Categories
पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा : वीर हसन खान मेवाती (खंडकाव्य )

पुस्तक समीक्षा : वीर हसन खान मेवाती (खंडकाव्य)

कवि की कविता मंचों को हिला सकती है। बुझे हुए चिरागों को जला सकती है । चेतनाहीन को चेतन कर सकती है । राष्ट्रों के भीतर क्रांति पैदा कर सकती है । सोए हुए मानस को झंकृत कर सकती है, तो कायरों की बाजुओं में भी वीरों की सी फड़कन पैदा कर सकती है। इसके अतिरिक्त जब कविता को अपना मनचाहा पात्र मिल जाता है तब तो वह सिर चढ़कर बोलने लगती है।
कवि और मनचाहा पात्र जब ये दोनों एक साथ एक जैसे मिल जाते हैं तो राष्ट्र के लिए कविता ‘क्रांतिकारी आवाहन’ पैदा करने वाली बन जाती है। तब कवि अपने इतिहास नायक की क्रांतिकारी योजना और उसके महान व्यक्तित्व और कृतित्व को लोगों के सामने कुछ इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि वह पात्र भी जीवंत हो उठता है और उसका कृतित्व भी लोगों के सामने साकार होकर नृत्य करने लगता है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘वीर हसन खां मेवाती’ (खंडकाव्य) के कवि गोकुल राम शर्मा ‘दिवाकर’ जी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। इतिहास के क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी वीर हसन खान मेवाती भारत की युवा पीढ़ी के लिए आज भी बहुत ही प्रेरणास्पद हैं। उन पर कवि गोकुल राम शर्मा ‘दिवाकर’ जी की लेखनी ने जो कमाल इस पुस्तक के भीतर किया है उसका सही रसास्वादन इस पुस्तक के अध्ययन से ही लिया जा सकता है। कवि ने अपने काव्य के माध्यम से पुस्तक को बहुत ही उत्तम शैली में रचा है।
कवि यद्यपि अपनी कविता के माध्यम से अतिशयोक्ति अलंकार में जाकर घटनाओं को अतिरंजित करके भी प्रस्तुत कर दिया करते हैं। कवि की कविता की उड़ान को देखते हुए पाठक भी कवि को उसकी ऐसी गुस्ताखी के लिए माफ़ कर देते हैं। परंतु इस पुस्तक के लेखक गोकुल राम जी ने कविता और इतिहास के बीच में बहुत बेहतरीन समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। इस प्रकार उन्होंने अपने कवि हृदय को कहीं भी भावुकता में ना तो बहने दिया है और ना ही भटकने दिया है।
उन्होंने अपनी कविता को सौंदर्य के बोध से अभिभूत तो किया है परंतु उसमें अतिशयोक्ति को अधिक स्थान नहीं दिया है। बहुत ही संतुलित ढंग से उन्होंने इतिहास के साथ न्याय करते हुए अपनी लेखनी की पवित्रता को कायम रखने में सफलता प्राप्त की है।
उन्होंने कवि की कल्पना और इतिहास के साथ कितना बेहतर समन्वय स्थापित किया है ? – इसका उदाहरण यह पंक्तियां दे सकती हैं –

” उड़ चले ऊंट, घोड़े, हाथी
अपने-अपने असवार लिए ,
बह रही खतरों की धारा
आहार वसन हथियार लिए।

प्राणों का सागर जाता था
पर प्राण हरण की चाह लिए
हे विज्ञ ! यही क्या जीवन है ?
फिरता है सिर पर ‘आह’ लिए।”

कवि गोकुल राम शर्मा ‘दिवाकर’ जी ने अपने इस काव्य खंड में समकालीन नाहर खान, बाबर आदि पात्रों को भी यथा स्थान सही प्रकार से वर्णित किया है। पुस्तक में कवि की देशभक्ति और राष्ट्र आराधना की उत्तम भावना स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। जो कि आज की युवा पीढ़ी के लिए बहुत ही उपयोगी है।
यह पुस्तक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली ,चौड़ा रास्ता जयपुर 302003 फोन नंबर 0141 -2310785 व 40 22 382 पर संपर्क कर प्राप्त की जा सकती है। पुस्तक का मूल्य ₹225 है। जबकि पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 143 है । पुस्तक बहुत ही उत्तम कागज पर तैयार की गई है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

Comment:Cancel reply

Exit mobile version