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संपादकीय

प्रधानमंत्री जी ! गुपकार गठबंधन को मिलना चाहिए कड़ा संदेश

 

यह एक अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों की बैठक आहूत कर राजनीतिक परिस्थितियों को सामान्य करने का संकेत दिया है, परंतु इसमें सम्मिलित होने से पहले ही ‘गुपकार गठबंधन’ ने धारा 370 को पूर्ववत स्थापित करने की बात कह कर यह स्पष्ट किया है कि वह 5 अगस्त 2019 से पहले की स्थिति चाहेंगे । देश विरोधी गुपकार गठबंधन की इस मांग किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता ।


गुपकार गठबंधन के नेताओं फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का यह भी कहना है कि वह पड़ोसी देश पाकिस्तान से भारत सरकार की बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाने का दबाव केंद्र पर बनाएंगे। वास्तव में ‘गुपकार गठबंधन’ में शामिल जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दल शांति और भाईचारे की बलि चढ़ाकर जिस प्रकार जम्मू कश्मीर में शासन करते रहे वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। वास्तव में फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे जम्मू कश्मीर के राजनीतिक लोग अब खाली बैठे हुए हैं। ये नेता अब उन्हीं दिनों की जुगाली कर रहे हैं, जिनमें उन्होंने जम्मू कश्मीर की जनता की छाती पर बैठकर ‘चांदी काटी’ थी। इन्हें उन दिनों की याद आती है जब ये मुट्ठी भर आतंकवादियों को प्रोत्साहित कर सेना पर पत्थर फिंकवाते थे और उसका राजनीतिक लाभ उठाते थे। केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करते थे और देश का मूर्ख बनाने की हर सीमा को पार कर जाते थे।
देश के संविधान की बार-बार दुहाई देकर आतंकवादियों के मानवाधिकारों का समर्थन व पैरोकारी करने वाले इन नेताओं की जुबान पर उस समय ताले पड़ जाते हैं जब कोई इनसे पूछता है कि जम्मू कश्मीर से जबरन भगाए गए कश्मीरी पंडितों के लिए भी क्या आप 1989 -90 से पहले की स्थिति बहाल करेंगे ? कहने का अभिप्राय है कि इन नेताओं की नजरों में कश्मीरी पंडितों के कोई अधिकार नहीं हैं। जबकि देशद्रोह करने वाले आतंकवादियों के अधिकार हैं। इसी प्रकार जो लोग देशद्रोही गतिविधियों में किसी न किसी प्रकार संलिप्त रहकर आज जेल की हवा खा रहे हैं, उनके प्रति भी इनके भीतर मानवतावाद आज हिलोरें मार रहा है।
वास्तव में इन राजनीतिक दलों को अपने राजनीतिक हितों के लिए अपना वोट बैंक सुरक्षित चाहिए । उसके बाद सत्ता चाहिए और सत्ता के साथ विलासिता पूर्ण जीवन चाहिए । इसके लिए ये किसी भी सीमा तक जाने के लिए आज भी तैयार हैं। जिन राजनीतिक बंदियों को मोदी सरकार ने उठाकर जेल में डाला है, उनको रिहा करने के नाम पर भी अब ये दल राजनीति कर रहे हैं। कह रहे हैं कि ऐसे राजनीतिक बंदियों को भी यथाशीघ्र जेल से बाहर किया जाए । वास्तव में ये राजनीतिक बंदी वही लोग हैं जो भारत के पैसे पर मौज करते रहे और भारत के खिलाफ ही आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे।
ऐसे में केंद्र सरकार को अपने स्टैंड पर मजबूत रहना चाहिए । सारा देश जानता है कि गुपकार गठबंधन एक गुप्त गठबंधन है। जिसने सांप नेवले को एक साथ बैठा दिया है। राजनीतिक सत्ता प्राप्त करते ही ये सांप नेवला का गुप्त गठबंधन भारत के लिए फिर सिरदर्द पैदा करने वाला बन जाएगा।
वास्तव में यह बात अपने आप में बहुत ही दुखद है कि गुपकार गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल पड़ोसी देश पाकिस्तान से भी वार्ता के सिलसिले को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं । इससे स्पष्ट होता है कि ये दल चाहे भारतवर्ष में रह रहे हैं पर इनका दिल पाकिस्तान में धड़कता है। ऐसे लोगों की सोच, कार्यशैली और व्यवहार को राष्ट्र विरोधी मानकर उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।
पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला जैसे नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि भारत ने अपनी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के काले दाग के रूप में स्थापित धारा 370 को 70 वर्ष तक नाहक ही बर्दाश्त किया। यह भारत के उन राष्ट्रीय नेताओं की देन थी जिनके रहते जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पनपा और अब्दुल्ला परिवार सहित महबूबा मुफ्ती जैसे लोगों को जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनने का अवसर उपलब्ध हो गया। बहुत बड़ी साजिश के अंतर्गत वहां से कश्मीरी पंडितों को भगा दिया गया। इन राष्ट्र विरोधी तथाकथित नेताओं के मुंह का पानी सूख गया और उन्होंने जब इन कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगाया जा रहा था तब एक भी ऐसा शब्द नहीं बोला जिससे उनकी सहानुभूति इन पंडितों के प्रति झलकती। इसका मतलब है कि ये लोग अपने आप को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित रखकर ही
खुश थे। राजनीति से मजहब को दूर रखने की वकालत करने वाले देश के सेकुलर गैंग ने जम्मू कश्मीर में सांप्रदायिक राजनीति का शिकार बने कश्मीरी पंडितों के साथ होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध एक दिन भी जुबान नहीं खोली।

यह एक महज संयोग है कि देश 23 जून को जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस मना रहा है तब 24 जून को जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों को प्रधानमंत्री ने एक विशेष बैठक के लिए आमंत्रित किया है। हमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी का वह नारा आज बहुत अधिक शिद्दत के साथ याद रखने की आवश्यकता है जिसमें उन्हें कहा था कि देश में “दो निशान , दो प्रधान, दो विधान”- नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। आज जब उनके बलिदान दिवस के अवसर पर जम्मू कश्मीर के कुछ राष्ट्र विरोधी राजनीतिक दल “दो निशान, दो विधान, दो प्रधान” – की पहले वाली स्थिति को बहाल करने की वकालत कर रहे हैं तब राष्ट्रीय नेतृत्व को यह बात अपनी ओर से स्पष्ट कर देनी चाहिए कि जून के महीने में उनके महानायक मुखर्जी ने ”दो निशान, दो विधान, दो प्रधान” – की जिस संविधान विरोधी स्थिति को विनष्ट करने का संघर्ष किया था, हम उनके उस संघर्ष और बलिदान को भुला नहीं सकते।
भारत के संदर्भ में हमें यह समझ लेना चाहिए कि जब जब दोगले नेतृत्व ने राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता को भी दोगला करते हुए दोगली बातों से कहीं ना कहीं समझौता किया है तो उसके घातक परिणाम देश को भुगतने पड़े हैं । मुखर्जी एक ऐसे नायक थे जो बंगाल के विभाजन का भी मुखर होकर विरोध करते रहे थे। बाद में जब देश ने बंग -भंग के परिणाम पूर्वी पाकिस्तान के रूप में देखे तो बहुत लोगों को यह पता चल गया कि मुखर्जी जैसे लोग ‘बंग -भंग’ का विरोध क्यों कर रहे थे ? परंतु कांग्रेस और नेहरू सरकार की आंखें नहीं खुलीं। उन्होंने जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35a लगाकर अपनी नीति और नियत का परिचय दे दिया। मुखर्जी ने ही जम्मू कश्मीर के संदर्भ में नेहरू सरकार द्वारा बरती जा रही दोगली नीति का विरोध किया। विरोध स्वरूप श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू सरकार में मिले उद्योग मंत्री के पद को भी त्याग दिया।
उन्होंने बंगाल के उदाहरण को सामने रखकर कश्मीर को लेकर नेहरू की नीतियों का विरोध किया। उस समय हम बंगाल की राह पर चलते कश्मीर को रोकना चाहते थे और आज हम कश्मीर की राह पर चलते बंगाल को रोकना चाहते हैं। 72 – 73 वर्ष के भारतीय लोकतंत्र की कहानी का यही सबसे बड़ा निचोड़ है । जिससे आज की राजनीति और राजनीतिक दलों को शिक्षा लेनी चाहिए। पर दुर्भाग्यवश सेकुलर गैंग ऐसा कोई भी संकेत नहीं दे रहा है कि उसने इतिहास से कोई शिक्षा ली है।
मुस्लिम सांप्रदायिकता समय भी सिर चढ़कर बोल रही थी और आज भी बोल रही है। लगता है हम 1947 से आगे नहीं बढ़ पाए। धर्मनिरपेक्षता की तथाकथित राष्ट्र विरोधी नीतियों ने हमें कदमताल करने के लिए मजबूर कर दिया है। 5 अगस्त 2019 को हमने ऐतिहासिक और क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए इस कदमताल से अपने आप को मुक्त कर लिया था। जिसके लिए केंद्र की मोदी सरकार की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। आज यदि कुछ लोग फिर हमें कदमताल के उस अंधेरे युग की ओर ले जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं तो उनके ऐसे प्रयासों का समूचे राष्ट्र की ओर से और राष्ट्रवादी शक्तियों की ओर से पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। दिल्ली को चाहिए कि वह जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं को भारत के तेजस्वी राष्ट्रवाद के तेजस्वी चेहरे से परिचित करा दे । दिल्ली की ओर से उन्हें यह पता चलना चाहिए कि इस समय देश का नेतृत्व किन मजबूत हाथों में है ? यदि पीएम मोदी ऐसा संकेत और संदेश देने में सफल हुए तो निश्चय ही हम सबके लिए यह एक प्रसन्नतादायक समाचार होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

 

 

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