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पर्यावरण :… अन्यथा विनाश निश्चित है

अन्यथा विनाश निश्चित है
(विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष)

◼️ जिन्होंने भूमि, जल, वायु को प्रदूषित किया व कर रहे हैं।
◼️ जो स्थूल प्रदूषण को हटाने का ढोंग करके सूक्ष्म व अधिक घातक प्रदूषण को फैला रहे हैं।
◼️ जो नाना प्रकार के प्राणियों व वनस्पतियों की प्रजातियों को नष्ट कर चुके हैं व कर रहे हैं।


◼️ जो रेडियेशन के द्वारा आकाश को तथा मांस-मछली-अण्डे आदि खाकर भूमि, जल, वायु एवं मनस्तत्व को प्रदूषित कर रहे हैं।
◼️ जो प्राकृतिक आपदाओं को आमन्त्रित करते तथा नाना प्रकार के विषाणु आदि बनाकर संक्रामक रोग फैलाकर स्वयं पृथिवी के सम्राट् बनना चाहते हैं।
◼️ जो विषैली दवा, रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक दवाइयाँ बनाकर सर्वत्र विष घोल रहे हैं।
◼️ जो काम, क्रोध, हिंसा, घृणा, शोक की घातक तरंगें फैलाकर सम्पूर्ण मानव सभ्यता को नष्ट करने के खलनायक बने हुए हैं।
◼️ जो लोग नाना तकनीकों के विकास से सम्पूर्ण प्राणियों के विनाश के कारण बनते जा रहे हैं।
◼️ जो न ‘पर्यावरण’ शब्द का अर्थ समझते हैं और न ‘प्रदूषण’ शब्द की सूक्ष्म व गम्भीर समझ रखते हैं।

आज वे लोग विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का नाटक करके मानव समाज को छल रहे हैं।

वे लोग पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर ऐसे ही भाषण दे रहे हैं, जैसे कोई अंधा दूसरे अंधे को अथवा एक अंधा किसी नेत्रवान् को मार्ग दिखाने का नाटक कर रहा हो अथवा कोई शराबी शराबमुक्ति पर तथा कोई दुराचारी ब्रह्मचर्य पर भाषण दे रहा हो।

इस कारण विश्वभर के बुद्धिमान् व सच्ची मानवता को समझने व उससे प्रेम करने वाले मित्रो!

यदि आप पर्यावरण को संरक्षित रखना व इस पृथिवी को बचाना चाहते हैं, तो –

◼️ गोघृत व उत्तमोउत्तम सामग्री से यज्ञ करो।
◼️ शाकाहार व दुग्धाहार अपनाओं एवं मांस, अण्डे, मछली व मादक पदार्थों का बहिष्कार करो।
◼️ अहिंसा, करुणा, प्रेम, सत्य, ब्रह्मचर्य जैसे गुणों को धारण करो।
◼️ वृक्षों की रक्षा करो और अपनी आवश्यकताओं को कम से कम करके प्रकृति के निकट रहने का स्वभाव बनाओ।
◼️ गौ आधारित, कृषि व अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ो।
◼️ ऐलोपैथी से हर सम्भव बचने का प्रयत्न करके आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाओं।
◼️ नास्तिकता की मूर्खता को त्याग विशुद्ध वैज्ञानिक वैदिक मार्ग पर चलाना सीखो।
◼️ वर्तमान कथित विकास के पागलपन को त्याग कर प्राचीन वैदिक जीवन शैली को अपनाओ।

तभी विश्व पर्यावरण दिवस मनाना सार्थक होगा, अन्यथा विनाश निश्चित है।

✍️ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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