Categories
राजनीति

भारतीय जनता पार्टी विपरीत परिस्थितियों में भी ‘मोदी हैं ना’ के भरोस

नरेंद्र नाथ

कोविड की दूसरी लहर खासी विकराल हो चुकी है। ऐसे में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार 2014 की मई में सत्ता संभालने के बाद अब तक की सबसे कठिन चुनौती से रू-ब-रू है। अगले हफ्ते मोदी सरकार सात साल पूरा कर रही है। मगर इस मौके पर सरकार और बीजेपी के अंदर जश्न से अधिक चिंता का माहौल है। महामारी की विभीषिका के बीच लोगों में आक्रोश सरकार के प्रति भी है। सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी विपरीत हालात में सकारात्मक रहने का संदेश देते हुए महामारी से निपटने का दावा कर रही है। लेकिन इन्हें पता है कि जमीनी हालात बेहद गंभीर हैं और यहां से निकलने के रास्ते सीमित ही हैं क्योंकि लोगों का आक्रोश सही है। कोविड की दूसरी लहर के बीच पीएम मोदी सहित केंद्र सरकार भी लगातार आलोचना के केंद्र में रही है। खासकर विपक्षी राज्यों ने इस बार पूरी तरह उन पर भरोसा तोड़ देने का आरोप लगाया। बीमारी से निकलने के लिए चलाया गया टीकाकरण कार्यक्रम भी विवादों के घेरे में है। इससे पहले पश्चिम बंगाल में हो रही लगातार चुनावी रैलियों को लेकर भी आलोचना हुई। सोशल मीडिया पर सरकार की भी आलोचना हुई। उधर विदेशी मीडिया लगातार मोदी सरकार पर प्रहार कर ही रही है।

इन विपरीत हालात में भी पार्टी और सरकार, दोनों ही पूरी तरह ‘मोदी हैं ना’ के भरोसे हैं। इनका दावा है कि अब तक हर परिस्थिति से पीएम मोदी और मजबूत होकर निकलते रहे हैं। इस बार भी ऐसा ही होगा। इनकी इस आस के पीछे पीएम मोदी का ट्रैक रेकॉर्ड है। 2019 आम चुनाव से पहले तीन विधानसभा चुनाव हारने वाली बीजेपी बचाव की मुद्रा में थी। पुलवामा हमले के बाद भी मोदी सरकार आलोचना के केंद्र में थी, लेकिन एक के बाद एक कई फैसले करके उसने जबर्दस्त वापसी की और 2014 से भी बड़ी जीत दर्ज करा ली।

हालांकि इन उम्मीदों के बीच सरकार और पार्टी को पता है कि इस बार की मुश्किल कुछ अलग और बहुत बड़ी है। बीजेपी के एक सीनियर नेता ने माना कि इस बार बड़ा फर्क यह है कि देश का कोई ऐसा परिवार नहीं है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से कोरोना से प्रभावित नहीं हुआ हो। एक-एक सांस के लिए तरस रहे मरीजों की तस्वीरें लोगों को झकझोर रही हैं। समाज का हर तबका इससे प्रभावित दिख रहा है। साथ ही रोग की व्यापकता भी कहीं अधिक है। सरकार लाख दावे करे, वह लोगों के गुस्से से खुद को निकाल पाने में सफल नहीं हो रही है।

सरकार तर्क दे रही है कि ऐसी परिस्थितियां सदियों में आती हैं और कोई सरकार इतनी बड़ी विपदा से लड़ने के लिए पहले से ही पूरे संसाधनों के साथ खड़ी नहीं हो सकती। वह यह भी कह रही है कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और केंद्र ने बार-बार तैयारी दुरुस्त रखने के लिए चेताया। ऐसा कहकर वह अपनी विफलता राज्यों के साथ साझा करने की कोशिश कर रही है। लेकिन यह आसान नहीं होगा। महामारी के पहले दौर में जब भारत में अपेक्षाकृत कम नुकसान हुआ था, तो इसका पूरा श्रेय पीएम मोदी की अगुआई वाली सरकार को दिया गया था। साथ ही लॉकडाउन के दौरान गरीबों के लिए चलाई गई कल्याणकारी योजनाओं की भी तारीफ आम लोगों से मिली। ऐसे में दूसरी लहर के दौरान अचानक इससे खुद को अलग करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। इस बीच सरकार लोगों से पॉजिटिव रहने की अपील कर रही है। सरकार अपने मानवीय चेहरे को अधिक से अधिक सामने लाने की कोशिश कर रही है। आरएसएस भी हालात को लेकर चिंतित है और लोगों से संवाद की नई रणनीति पर विचार कर रहा है। इसी कड़ी में संघ का चार दिवसीय सम्मेलन भी जारी है, जिसके तहत विशेष व्याख्यान श्रृंखला हो रही है। इसका टॉपिक है, ‘पॉजिटिविटी अनलिमिटेड : हम जीतेंगे।’

उधर विपक्ष को पहली बार मोदी सरकार से बराबरी करने का मौका दिख रहा है। कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने उत्तर प्रदेश की मिसाल देते हुए कहा कि पंचायत चुनाव में कोई दल चुनाव प्रचार में शामिल तक नहीं हुआ, फिर भी लोगों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया। इस नेता ने दावा किया कि अब यह ट्रेंड आगे भी जारी रहेगा। विपक्ष का यह भी कहना है कि संकट आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। इसके पीछे तर्क यह है कि अभी लोगों का ध्यान बीमारी से खुद को और अपने परिजनों को बचाने पर लगा है। बीमारी संभलने के बाद आर्थिक तबाही का दौर आएगा। विपक्ष के इस तर्क में कहीं न कहीं सचाई भी है। पिछले साल कोविड से जूझने के बाद मोदी सरकार इस साल आर्थिक मोर्चे पर बड़ी प्रगति की उम्मीद कर रही थी। लेकिन अब इस पर आंशिक ब्रेक लगने की आशंका है। उधर पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार में महंगाई भी पहली बार बढ़ती दिख रही है। पेट्रोल दोबारा सौ रुपये प्रति लीटर पार कर चुका है।

वक्त तो है हाथ में
यह संकेत साफ है कि महामारी के कमजोर पड़ने के बाद भी सरकार की राजनीतिक चुनौती कम नहीं होगी। ऐसे तमाम अवरोधों से मोदी सरकार का पहला टर्म अछूता था। नोटबंदी से इकॉनमी जरूर प्रभावित हुई, लेकिन लोगों ने तब उसे पीएम नरेंद्र मोदी का बोल्ड प्रयोग मानकर उन्हें पूरे अंक दिए। अब मौजूदा सूरत में मोदी सरकार के पास कुछ अलग करने का कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है। विपक्ष को यह भी लगता है कि सात सालों में पहली बार लोगों ने महामारी से लड़ने में विफलता के लिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी को दोषी ठहराया है। हालांकि विपक्ष के दावों के बारे में कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी, पीएम मोदी के पास कोर्स करेक्शन के लिए वक्त भी है, फिर भी यह सही है कि पहली बार वह मुश्किल के भंवर में फंसे हैं और उन्हें सख्त सवालों का सामना करना पड़ रहा है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version