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पर्व – त्यौहार

होली का त्योहार समस्त गिले-शिकवे को दूर कर भुला देने का त्यौहार है

 

ललित गर्ग

होली का त्योहार समस्त गिले-शिकवों एवं द्वंद्वों को भूलकर मानवीय रिश्तों में नयी ऊर्जा का संचार करने का अवसर है, यह क्षमा देने एवं क्षमा लेने का भी अवसर है, जिन रिश्तों में कड़वाहट आ गयी है, उसे क्षमा के जल से अभिस्नात कराने का मौका है। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है।

होली प्रेम, आपसी सद्भाव और मस्ती के रंगों में सराबोर हो जाने का अनूठा त्यौहार है। कोरोना महामारी के कारण इस त्यौहार के रंग भले ही फीके पड़े हैं या मेरे-तेरे की भावना, भागदौड़, स्वार्थ एवं संकीर्णता से होली की परम्परा में बदलाव आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, फिर भी जिन्दगी जब मस्ती एवं खुशी को स्वयं में समेटकर प्रस्तुति का बहाना मांगती है तक प्रकृति हमें होली जैसा रंगारंग त्योहार देती है। होली ही एक ऐसा त्योहार है, जिसके लिये मन ही नहीं, माहौल भी तत्पर रहता है। होली का धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस त्योहार की गौरवमय परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए हम एक सचेतन माहौल बनाएं, जहां हम सब एक हो और मन की गन्दी परतों को उतार फेंके ताकि अविभक्त मन के आईने में प्रतिबिम्बित सभी चेहरे हमें अपने लगें। प्रदूषित माहौल के बावजूद जीवन के सारे रंग फीके न पड़ पाए।

होली की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसको मनाते हुए हम समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। इस त्योहार को मनाने के पीछे की भावना है मानवीय रिश्तों की गरिमा को समृद्धि प्रदान करना, जीवनमूल्यों की पहचान को नया आयाम प्रदत्त करना। हम कितने भोले हैं कि अपनी संस्कृति एवं आदर्श परम्पराओं को हमीं मिटा रहे हैं। स्वयं अपना घर जला कर स्वयं तमाशा बन रहे हैं। आखिर हमीं तो वे लोग हैं जिन्होंने देश की पवित्र जमीं के नीचे हिंसा, अन्याय, शोषण, आतंक, असुरक्षा, अपहरण, भ्रष्टाचार, अराजकता, अत्याचार जैसे घिनौने तत्वों की गहरी और लम्बी सुरंगें बिछाकर उन पर अपने स्वार्थों का बारूद फैला दिया, बिना कोई परिणाम सोचे, बिना भविष्य की संभावनाओं को देखे। फिर भला कैसे सुरक्षित रह पाएगा आम आदमी का आदर्श। आम आदमी का जीवन। इन अंधेरों एवं जटिल हालातों के बीच होली जैसे त्योहार हमारी रोशनी की इंजतार एवं उजालों की कामना को पूरा करने के लिये हमें तत्पर करते हैं।

होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता। पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है। प्रश्न है कि प्रसन्नता का यह आलम जो होली के दिनों में जुनून बन जाता है, कितना स्थायी है? डफली की धुन एवं डांडिया रास की झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे तक सीमित कर दिया, जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं, जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान की जाए। स्नेह और सम्मान का, प्यार और मुहब्बत का, मैत्री और समरसता का ऐसा शमां बांधना चाहिए कि जिसकी बिसात पर मानव कुछ नया भी करने को प्रेरित हो सके, आपसी रिश्तों में प्रेम एवं ऊर्जा का संचार करें। कहते हैं प्यार और नफरत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्यार पूरी तरह सकारात्मकता और ऊर्जा से भरा भाव है, इसके उलटे नफरत नकारात्मकता और गुस्से से भरा। ऐसा क्यों होता है कि जिससे एक वक्त में हम प्यार करते हैं, उससे ही कुछ समय बाद नफरत करने लगते हैं? प्यार वाला रिश्ता हमारा कइयों के साथ होता है, इन रिश्तों को होली का पर्व नये आयाम एवं नये रंग देता है। जिनसे हम प्यार करते हैं, हमेशा उनकी खुशी चाहते हैं, उनके लिए मन में कोई दुर्भावना या खीझ नहीं होती। उनका हमारी जिंदगी में होना ही हमारे लिए काफी होता है। अमेरिकी लेखक और चिंतक डेनियल कार्डवेल कहते हैं, ‘हम हमेशा दिल से प्यार करते हैं। इसके उलट नफरत की भावना दिमाग से उपजती है।’ होली दिलों से जुड़ी भावनाओं का पर्व है। यह मन और मस्तिष्क को परिष्कृत करता है। न्यूरोबायोलिस्ट और रिसर्चर सेमिर जैक कहते हैं, ‘मस्तिष्क में प्यार और नफरत को जनरेट करने वाली वायरिंग एक ही होती है।’ इस भावना की कुछ अलग तरह से व्याख्या करते हैं लेखक और समाजशास्त्री पेजिल पामरोज, ‘प्रेम आत्मा के स्तर पर होता है और नफरत भावना के स्तर पर।’ होली प्रेम एवं संवेदनाओं को जीवंतता देने का दुर्लभ अवसर है। यह नफरत को प्यार में बदल देता है।

हमारे समाज का ढांचा कुछ ऐसा है, हम हमेशा अपनों के बीच रहते हैं, अपने संस्कृति एवं संवेदनाओं को जीते हैं। हमारे सोचने-समझने का दायरा इन्हीं की वजह से बनता-बिगड़ता है। अपने भीतर नफरत पालना, बदला लेना जैसी भावनाओं पर होली जैसे पर्व से नियंत्रण पाया जा सकता है। डेनियल कार्डवेल के अनुसार, ‘प्यार पर कभी नफरत को हावी होने न दें। लगातार उन बातों को याद करें, जब आप खुश थे, सकारात्मक थे और अपनी ऊर्जा का सही जगह इस्तेमाल करते थे।’ नकारात्मक ऊर्जा के नुकसान से बचने के लिए होली के रंगों में सराबोर होना, रंगों का ध्यान करना, अपनी पर्वमय संस्कृति से रू-ब-रू फायदेमंद साबित होता है। पेजिल पामरोज इसका उपाय बताते हुए कहते हैं, ‘अपने आप से प्यार करना सीखें। आप जो हैं, आपसे अच्छा और कोई नहीं जानता। अपने आपसे मोहब्बत करेंगे तो यह भी जान पाएंगे कि जो आपको चाहते हैं, उनके प्यार में कितनी गहराई है।’

होली का त्योहार समस्त गिले-शिकवों एवं द्वंद्वों को भूलकर मानवीय रिश्तों में नयी ऊर्जा का संचार करने का अवसर है, यह क्षमा देने एवं क्षमा लेने का भी अवसर है, जिन रिश्तों में कड़वाहट आ गयी है, उसे क्षमा के जल से अभिस्नात कराने का मौका है। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है। होली के त्यौहार में विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएँ होती हैं, बालक गाँव के बाहर से लकड़ी तथा कंडे लाकर ढेर लगाते हैं।

होलिका का पूर्ण सामग्री सहित विधिवत् पूजन किया जाता है, अट्टहास, किलकारियों तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश हो जाता है। होलिका दहन से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं। होली के त्योहार का विराट् समायोजन बदलते परिवेश में विविधताओं का संगम बन गया है, इस त्योहार को मनाते हुए यूं लगता है सब कुछ खोकर विभक्त मन अकेला खड़ा है फिर से सब कुछ पाने की आशा में। क्योंकि इस अवसर पर रंग, गुलाल डालकर अपने इष्ट मित्रों, प्रियजनों को रंगीन माहौल से सराबोर करने की परम्परा है, जो वर्षों से चली आ रही है। एक तरह से देखा जाए तो यह उत्सव प्रसन्नता को मिल-बांटने का एक अपूर्व अवसर होता है। हिरण्यकशिपु की बहिन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। अतः वह अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई। किंतु प्रभु-कृपा से प्रह्लाद सकुशल जीवित निकल आया और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसलिये होली का त्योहार ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का प्रतीक है। इस प्रकार होली का पर्व सत्य, न्याय, भक्ति और विश्वास की विजय तथा अन्याय, पाप तथा राक्षसी वृत्तियों के विनाश का भी प्रतीक है।

होली के उपलक्ष्य में अनेक सांस्कृतिक एवं लोक चेतना से जुड़े कार्यक्रम होते हैं। महानगरीय संस्कृति में होली मिलन के आयोजनों ने होली को एक नया उल्लास एवं उमंग का रूप दिया है। इन आयोजनों में बहुत शालीन तरीके से गाने बजाने के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। घूमर जो होली से जुड़ा एक राजस्थानी कार्यक्रम है उसमें लोग मस्त हो जाते हैं। चंदन का तिलक और ठंडाई के साथ सामूहिक भोज इस त्यौहार को गरिमामय छबि प्रदान करते हैं। देर रात तक चंग की धुंकार, घूमर, डांडिया नृत्य और विभिन्न क्षेत्रों की गायन मंडलियाँ अपने प्रदर्शन से रात बढ़ने के साथ-साथ अपनी मस्ती और खुशी को बढ़ाते हैं। इसलिये होली का कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन जीये और सभी के लिये शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकते हैं।

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