अयोध्या की वह राजकुमारी जो बनी थी कोरिया की महारानी

भारत के सेक्युलर प्रजाति के लोग यह कहने से शर्माते हैं कि हम श्रीराम के वंशज हैं, किन्तु क्या आप जानते हैं कि भारत से पाँच हज़ार किमी दूर कोरिया के निवासी बड़े गर्व से कहते हैं कि हम अयोध्या की राजकुमारी श्रीरत्ना अथवा सूरीरत्ना के वंशज हैं?

दक्षिण कोरियाई मानते हैं कि उनके वंश का अयोध्या के साथ एक महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध था। कोरिया में इस बात की बहुत मान्यता है कि दक्षिण-पूर्वी कोरिया के शासक किम सुरो ने ‘श्रीरत्ना’ नाम की एक भारतीय राजकुमारी से विवाह किया और एक राजवंश की शुरूआत की।

भिक्षु इयरन (1206-1289) द्वारा लिखित कोरिया के इतिहास-ग्रन्थ, ‘सैमगुक युसा’ में यह कहा गया है कि दक्षिण कोरियाई राजा ‘किम सुरो’ (42-199 ई.) ने 48 ई. में अयोध्या की राजकुमारी श्रीरत्ना (32-189 ई.) से विवाह किया। श्रीरत्ना के पिता अयोध्या के तत्कालीन शासक ने दैवीय संकेत मिलने पर उनको राजा सुरो से विवाह करने के अनुमति दी। सुरो दक्षिण-पूर्वी कोरिया के गुयुमगवान गया (बोम गया) क्षेत्र के संस्थापक-शासक थे। श्रीरत्ना और सुरो दो महीने की सामुद्रिक यात्रा के बाद कोरिया पहुँचे। वहाँ उन्होंने विवाह किया और श्रीरत्ना गया साम्राज्य के ‘किम’ अथवा ‘कारक’ राजवंश की प्रथम रानी ‘हौ ह्वांग-ओक’ बन गई। विवाह के पश्चात् राजा सुरो ने श्रीरत्ना के साथ आए दास-दासियों को पर्याप्त वस्त्र और दस बोरे चावल देकर विदा किया। हौ और सुरो की 12 सन्तानें हुईं।

कोरियाई अभिलेखों के अनुसार सन् 189 ई. में 157 वर्ष की आयु में रानी हौ का स्वर्गवास हुआ और उससे 10 वर्ष बाद 199 ई. में 157 वर्ष की ही आयु में सुरो का भी देहान्त हो गया। दक्षिण कोरिया के गिम्हे राष्ट्रीय संग्रहालय में राजा सुरो की समाधि और उनकी खूबसूरत प्रतिमा लगी हुई देखी जा सकती है। वहाँ से कुछ दूरी पर रानी हौ (श्रीरत्ना) की भी समाधि बनी हुई है। यह 5 मीटर ऊँचा मिट्टी का टीला है। समाधि के प्रवेश-द्वार पर मछली की एक जोड़ी उत्कीर्ण है। उल्लेखनीय है कि जुड़वाँ मछली उत्तरप्रदेश का राजकीय प्रतीक है, जिसका संबंध अयोध्या से है। यह प्रतीक प्राचीन कोरिया और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है।

श्रीरत्ना की समाधि के पास एक छोटी इमारत में 6 अनगढ़ पत्थर रखे हैं। ये वे पत्थर हैं जिनको श्रीरत्ना अपने साथ निशानी के तौर पर अयोध्या से लेकर आई थी। यहाँ एक अभिलेख लगा है, जिसपर अंकित है कि ‘ये पत्थर 48 ईसवी में भारत के अयोध्या राज्य की राजकुमारी हौ ह्वांग-ओक द्वारा लाए गए थे, जब वह सुरो की रानी बनने के लिए कोरिया रवाना हुई थी।’ कोरिया में ऐसी मान्यता है कि इन रहस्यमय पत्थरों ने ही सामुद्रिक तूफ़ान को शान्त किया था और राजा-रानी सकुशल कोरिया पहुँचे थे। ये पत्थर पहले गिम्हे के ‘होग्ये सा मन्दिर’ में प्रतिष्ठित थे, किन्तु 1873 में इस मन्दिर के बन्द होने के बाद किम्हे के मजिस्ट्रेट चोंग ह्युन सो ने इनको इस परिसर में स्थानान्तरित करवा दिया। 1993 में इनके चारों ओर स्मारक का निर्माण किया गया। ये स्मारक वर्षभर सुबह 9:00 बजे से शाम 07:00 बजे तक खुले रहते हैं।

हालाँकि, कुछ विद्वानों ने अयुध्या को थाईलैण्ड की ‘अयुध्या’ के रूप में पहचान की, किन्तु फ्रांसीसी विद्वान् जॉर्ज कोडेस ने इसे यह कहकर खारिज़ कर दिया कि 1350 ई. तक थाईलैण्ड की अयुध्या का कोई अस्तित्व नहीं था। ऐसी अफवाहें ऐसी भी उड़ी कि भारतीय राजकुमारी वास्तव में दक्षिण भारत के पाण्ड्य राजवंश से सम्बन्धित थी, किन्तु कोरियाई इतिहासकारों ने रानी हौ को उत्तरप्रदेश के अयोध्या से जोड़ ही दिया। कोरियाई विद्वानों की एक टीम ने अयोध्या का दौरा करके देखा कि यहाँ कई घरों में युगल मछलियों के चिह्न हैं, ठीक वैसा ही चिह्न रानी हौ की समाधि पर भी उत्कीर्ण है।

इस तरह खुद कोरियावाले सूरीरत्ना को भारत की अयोध्या की राजकुमारी ही मानते हैं और 60 लाख कोरियाई अपने को सूरीरत्ना के वंशज भी मानते हैं। इनमें से अधिकांश कोरिया के उच्च पदों पर हैं। कोरिया में अनेक रानियाँ हुई हैं, किन्तु रानी हौ को उनको ज्ञान और बुद्धिमत्ता के लिए सर्वाधिक सम्मान दिया जाता है।

कोरिया में इस बात को लेकर इतना उत्साह है कि अपनी रानी को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल सैकड़ों दक्षिण कोरियाई पर्यटक अयोध्या आते हैं। वर्ष 2001 में, दक्षिण कोरिया के पूर्व प्रधानमंत्री किम जोंग-पायलट ने अयोध्या के राजा विमलेन्द्र प्रताप मोहन मिश्र (1981 से वर्तमान) को एक पत्र में लिखा कि ‘मार्च की उनकी भारत यात्रा मेरे लिए बहुत सार्थक रही। मैं कारक साम्राज्य के राजा किम सुरो की 72वीं पीढ़ी का वंशज हूँ।’

उसी वर्ष एनडीए सरकार के सहयोग से एक कोरियाई प्रतिनिधिमण्डल, जिसमें भारत में उत्तर कोरियाई राजदूत और सौ से अधिक इतिहासकार शामिल थे, ने अयोध्या में सरयू के पश्चिमी तट पर रानी हौ के लिए समर्पित एक स्मारक का भी उद्घाटन किया। यह स्मारक कोरियाई परम्परा में बनाया गया था जिसमें कोरिया से 3 मीटर ऊंचा और 500 किलोग्राम भारी पत्थर भेजा गया था।

वर्ष 2004 में शाही कब्रों से डीएनए के नमूने इकट्ठे किए गए, जिनसे भारतीय और कोरियाई समूहों के बीच आनुवंशिक सम्बन्धों की पुष्टि हो गई है।

06 नवम्बर, 2018 को दीपावली उत्सव की पूर्व संध्या पर, दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला किम जुंग-सूक ने मौजूदा स्मारक के विस्तार और सौंदर्यीकरण के की आधारशिला रखी। किम जुंग-सूक 4 से 7 नवम्बर, 2018 को अयोध्या के दीपोत्सव-कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं।

कोरियाई इतिहासकारों ने कोरिया और भारत के रक्त-सम्बन्धों का पता लगा लिया है। एक वरिष्ठ पुरातत्त्वविद और ह्ययांग विश्वविद्यालय में एमिरेट्स प्रोफेसर किम ब्युंग-मो ने अपनी पुस्तक ‘हौ ह्वांग-ओक रूट : फ्रॉम इण्डिया टू गया ऑफ़ कोरिया’ में भारत और कोरिया के सांस्कृतिक और आनुवंशिक सम्बन्धों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है। प्रो. किम ने अपने दशकों पुराने व्यापक शैक्षिक अनुसंधान में अयोध्या के शाही परिवार के साथ कोरियाई राजपरिवार के आनुवंशिक सम्बन्ध को चित्रित करते हुए पुस्तक में साझा किया किया है। सियोल में भारतीय राजदूत नागेशराव पार्थसारथी ने अपने 276 पृष्ठों के उपन्यास ‘सिल्क इम्प्रेस’ में रानी हौ और राजा सुरो की कथा का लोमहर्षक चित्रण किया है।

वर्ष 2010 में दक्षिण कोरिया में किम सुरो पर एक टेलीविजन शृंखला ‘किम सु-रो : द आयन किंग’ भी बनी है जो खूब लोकप्रिय हुई है। इसमें सुरो की भूमिका ‘जी-सुंग’ ने और रानी हौ (श्रीरत्ना) की भूमिका ‘सेओ-जी-हाय’ ने निभाई है।
(साभार)

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