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जिहाद के लिए मरो तो 72 हूरें मिलेंगी कहकर उकसाने वाले मुल्ला ने करवा रखा था अपने लिए बीमा

                                     मुल्ला अख्तर मंसूर ने मरने से पहले कराया था जीवन बीमा
72 हूरों का सब्जबाग दिखाकर बेगुनाहों की जान लेने पर आमादा आतंकी क्या अपने मरने से पहले जीवन बीमा कराता होगा? इसका जवाब आतंकी पैदा करने वाले देश पाकिस्तान से ही आया है। जानकारी के मुताबिक एक तालिबानी आतंकवादी ने ‘जीवन बीमा पॉलिसी’ ले रखी थी। इन कट्टरपंथियों के कहने पर धर्मान्थ बेगुनाहों के खून की होली खेलने के चक्कर में मुठ्ठी भर पैसों के लालच में अपनी जान गंवा कर अपने ही परिवार को दूसरों के रहमोकरम पर छोड़ जाते हैं। 

जबकि सच्चाई यह है कि 72 हूरें तो तब मिलेंगीं, जब मरने के बाद स्थायी रूप से ऊपर ही रहना हो, लेकिन कट्टरपंथियों ने इतना डरा-धमका रखा है कि किसी की इनसे प्रश्न करने की हिम्मत ही नहीं होती। हकीकत यह है कि ऊपर कुछ नहीं है, आत्मा जाती है और कर्मानुसार चोला बदल कर वापस धरती पर आ जाती है। लेकिन इन कट्टरपंथियों की बात को अगर सच भी मान लिया, तो इसका मतलब तो यह हुआ कि जिहाद अथवा किसी प्रकार के दंगे में मरने वाला क्या मर कर ऊपर जाने वाला अय्याशी करेगा? माना जिहाद में मरने वाले को 72 हूरें मिल गयी, परन्तु मरने वाली को क्या 72 हूर(मर्द) मिलेंगे?  

इस आतंकी का नाम मुल्ला अख्तर मंसूर था और वह 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा जा चुका है। उसने पाकिस्तान में एक निजी कंपनी से ‘जीवन बीमा’ पॉलिसी खरीदी हुई थी। अफगान तालिबान प्रमुख मुल्ला अख्तर मंसूर ने यह बीमा फर्जी आईडी पर लिया था।

जीवन बीमा कराने का मामला उस समय प्रकाश में आया, जब उसके खिलाफ आतंकी फंडिंग केस में कराची में सुनवाई हो रही थी। मामले में बीमा कंपनी ने कराची की आतंक निरोधक अदालत को पूरी जानकारी दी। मंसूर के खिलाफ फेडरल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एफआईडी) एक साल से जाँच कर रही है।

जाँच में यह जानकारी सामने आई है कि मंसूर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए फर्जी कागजातों से प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त कराता था। उसने फर्जी आईडी पर कराची में दो लाख डालर की जमीन और घर खरीदे थे।

इसी खोजबीन में जानकारी मिली कि मुल्ला अख्तर मंसूर ने एक जीवन बीमा पॉलिसी खरीदी थी। उसने 21 अप्रैल 2016 में ड्रोन हमले में मारे जाने से पहले तीन लाख पाकिस्तानी रुपयों का भुगतान जीवन बीमा के लिए किया था।

जाँच एजेंसी ने इंश्योरेंस कंपनी से मंसूर के मूल भुगतान को अदालत में जमा कराए जाने के लिए कहा था। बीमा कंपनी ने तीन लाख पचास हजार रुपए का चेक अब अदालत में जमा किया है। अदालत ने इस रकम को सरकारी कोषागार में जमा कराने का निर्देश दिया है।

आतंकवाद निरोधक अदालत के जज ने 2 निजी बैंकों, एलाइड बैंक लिमिटेड और बैंक अल-फलाह से उन खातों के बारे में भी रिपोर्ट माँगी है, जिनमें अफगान तालिबान नेता और उसके सहयोगियों ने पैसे जमा किए थे। कोर्ट ने पैसे के लेन-देन का भी पूरा ब्‍यौरा माँगा है।

हैरानी की बात है कि नौजवानों को आतंकी बनाने के लिए जन्नत और 72 हूरों के सपने दिखाए जाते हैं। उन्हें मजहब के नाम पर गुमराह कर हाथ में बंदूक थमा दिए जाते हैं, फिदायीन बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और यह आतंकवादी खुद के लिए पैसे का इंतजाम करते हैं। मुल्ला अख्तर मंसूर खुद के लिए जीवन बीमा पॉलिसी खरीद कर आतंकी हमलों को अंजाम दे रहा था।

कश्मीर में सक्रिय आतंकी बेशक सबके सामने इस्लाम और कश्मीर की आजादी की बात करते हैं, लेकिन नए आतंकियों को पढ़ाया व सिखाया जाता है कि मरने के बाद उन्हें जन्नत में 72 हूरें मिलेंगी। यह इस्लामिक कट्टरपंथियों का ब्रेनवॉश करने का बहुत पॉपुलर तरीका है।

चाहे अलकायदा हो, जैश-ए-मोहम्मद, बोको हरम या हमास, सारे ही अपने लड़ाकों को बताते हैं कि अगर वे मज़हब की राह में अपनी जान देंगे तो उन्हें जन्नत नसीब होगी। जन्नत में भी उन्हें हमेशा युवा रहने वाली और गहरी काली आँखों वाली 72 हूरों के साथ कभी न खत्म होने वाले कथित आनंद के बारे में बताया जाता है।

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