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गांधीजी और गांधीवादी नेहरू

गांधीजी से मिला हुआ ‘हिन्दू विरोध’ कांग्रेस का मौलिक संस्कार है — अनेकों प्रकरणों , प्रसंगों , सन्दर्भों से यह बात अब पूर्णतया सिद्ध हो चुकी है । यदि इस देश की संस्कृति से प्यार करना और उसके लिए संघर्ष करने की प्रवृत्ति गाँधीजी की कांग्रेस की रही होती तो निश्चित है कि वह देश विरोधी मुस्लिम लीग के सामने न तो आत्मसमर्पण करती और न ही तुष्टीकरण कर उसके तलवे चाटती। तब न देश का विभाजन होता और न ही करोड़ों – करोड़ों लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता ।


देश का यह सचमुच दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू बने । जिनके बारे में पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने अपनी किताब “मेरा जीवन वृत्तान्त” में पृष्ठ संख्या 456 पर लिखा है कि – ‘पता नही क्यों नेहरु को हिन्दू धर्म के प्रति एक पूर्वाग्रह था ?’ सारा देश अब जान गया है कि पण्डित जवाहरलाल नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बनाने में गांधी जी की विशेष भूमिका रही थी , जबकि देश और यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस का बहुमत भी सरदार वल्लभभाई पटेल को देश का पहला प्रधानमंत्री देखना चाहता था।

‘हिन्दू कोड बिल’ और पण्डित नेहरू

‘हिन्दू कोड बिल’ को लाकर पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने उस समय हिन्दुओं की आस्था को चोट पहुँचाने का काम किया था । यद्यपि उसे वह सरदार पटेल के जीवित रहते हुए लाने का साहस नहीं कर पाए थे । नेहरू ‘हिन्दू कोड बिल’ को सरदार पटेल के जीते जी लाने का साहस क्यों नहीं कर पाए थे ? – इसका भी रोचक तथ्य हमें मोरारजी देसाई से ही पता चलता है। मोरारजी देसाई अपनी उपरोक्त पुस्तक में आगे लिखते हैं कि नेहरु ने हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के लिए ‘हिन्दू कोड बिल ‘ लाने की बड़ी कोशिश की थी, लेकिन सरदार पटेल ने नेहरु को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि मेरे जीते जी आपने ‘हिन्दू कोड बिल’ के बारे में सोचा तो मैं कांग्रेस से त्यागपत्र दे दूंगा और इस बिल के विरुद्ध सड़कों पर हिन्दुओं को लेकर उतर जाऊँगा, फिर पटेल की धमकी से नेहरु जी डर गये थे और उन्होंने सरदार पटेल जी के देहावसान के बाद ‘हिन्दू कोड बिल’ संसद में पास किया था

डॉ राजेंद्र प्रसाद की निर्भीकता

सरदार पटेल तो चले गए परन्तु उसके पश्चात देश के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने स्तर पर इस ‘हिन्दू कोड बिल’ का भरपूर विरोध किया था । उन्होंने इस पर हस्ताक्षर करने से एक बार इनकार कर दिया था , यद्यपि संवैधानिक बाध्यता के चलते दूसरी बार उन्हें इस पर हस्ताक्षर करने पड़े थे । तब भी उन्होंने बड़ी निर्भीकता से यह कहा था कि इस पर देश का राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर रहा है , डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद नहीं । डॉ राजेंद्र प्रसाद ने ऐसा विरोध करके नेहरू को यह बताने का प्रयास किया था कि वह इस बिल को लाकर देश की आत्मा के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। साथ ही यह भी कि यदि आज सरदार पटेल नहीं हैं तो भी इसका कड़ा विरोध करने के लिए मैं जीवित हूँ।
मोरारजी देसाई आगे लिखते हैं कि इस बिल पर चर्चा के दौरान आचार्य जे.बी. कृपलानी ने नेहरु को ‘कौमवादी और मुस्लिमपरस्त’ कहा था । उन्होंने कहा था कि आप हिन्दुओं को धोखा देने के लिए ही जनेऊ पहनते हो, अन्यथा आपमें हिन्दुओं वाली कोई बात नहीं है। यदि आप सच में धर्म निरपेक्ष होते तो हिन्दू कोड बिल के बजाय सभी धर्मो के लिए ‘कामन कोड बिल’ लाते ।”
इस प्रकार आचार्य जे.बी. कृपलानी ने गांधीवादी नेहरू की पोल उस समय भरी संसद के बीच ही खोल दी थी। यह अलग बात है कि निर्लज्जता की सभी सीमाओं को त्यागकर काम करने वाले कांग्रेसियों को इसके पश्चात भी वैसे ही कोई शर्म नहीं आई थी जैसे आज उसके नेता देश विरोधी लोगों का समर्थन कर देश में अराजकता को पैदा करने वाली ताकतों को प्रोत्साहित करके भी शर्म के स्थान पर गर्व अनुभव कर रहे हैं और इसे ही इस देश की आत्मा कहने का मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि गांधीजी और नेहरू के माध्यम से आज की कांग्रेस और आज के गांधीवादी भी ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं।

राकेश कुमार आर्य

संपादक :  उगता भारत

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