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डॉ दीपक आचार्य
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प्रतिक्रिया एक ऐसा शब्द है जो जीवन भर हर कर्म और विचार में समाया रहता है कर्मयोग की विभिन्न धाराओं औरउपधाराओं में प्रतिक्रिया न हो तो कई सारे अच्छे-बुरे कामों को अपने आप विराम लग जाए। अधिकांश लोगों का हर कर्मप्रतिक्रिया जानने और करने के लिए हुआ करता है।

चंद लोग ही ऐसे हुआ करते हैं जिन्हें अपने काम से मतलब है, अपने कर्मयोग को उच्चतम शिखर प्रदान करने से हीसरोकार है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनकी गतिविधियों या कर्म की क्या और कैसी प्रतिक्रियाएं होंगीअथवा हो रही हैं।

ये लोग अपने कर्म के प्रति निष्ठावान और समर्पित होते हैं और ऐसे लोगों का प्रत्येक कर्म या तो स्वयं की प्रसन्नता औरसुकून के लिए होता है अथवा ईश्वरार्पण। ऐसे में इन लोगों पर अपने कर्म, व्यवहार और हलचलों के बारे में होने वालीप्रतिक्रियाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

ऐसे लोग जो भी कर्म करते हैं वे कालजयी और शाश्वत श्रेय प्रदान करने वाले होते हैं क्योंकि इनके पीछे अच्छी या बुरीप्रतिक्रिया अभीप्सित नहीं होती है। जबकि दुनिया में अधिकांश लोग जो भी कर्म करते हैं वह प्रतिक्रिया से प्राप्त होने वालेसुकून और सुख को ध्यान में रखकर करने के आदी होते हैं।

इन लोगों कमी हर हरकत के पीछे कोई न कोई प्रतिक्रिया उपजाने, सुनने या करने-कराने के भाव छिपे हुए होते हैं। प्रतिक्रियाओं पर और कोई ध्यान न भी दे तब भी ये अपने  हर शुभाशुभ कर्म की प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं औरप्रतिक्रियाओं के स्वरूप तथा घनत्व के आधार पर ही इनके भावी कर्मों की बुनियाद टिकी हुई होती है।

इन लोगों के लिए यह कहा जाए कि इनका जन्म ही प्रतिक्रियाओं की प्राप्ति के लिए क्रियाओं को करने तथा प्रतिक्रियाओंको जानने भर के लिए ही हुआ है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारे आस-पास से लेकर दुनिया के ध्रुवों तक, हरछोर पर प्रतिक्रियावादियों का बोलबाला रहा है जो अपने करीब से लेकर आक्षितिज पसरी हुई हलचलों के बारे मेंप्रतिक्रियाएं व्यक्त करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं और ऐसे अधिकार सम्पन्न लोगों की अपने यहाँ भीकोई कमी नहीं है।

अपने क्षेत्र में ऐसे खूब सारे लोग हैं जिनका एकमेव जीवन लक्ष्य प्रतिक्रियाओं में जीना और प्रतिक्रियाओं की चाशनी मेंनहाते हुए पूरी जिन्दगी गुजार देना रह गया है। जीवन में कर्मयोग में सफलता पाने की कामना रखने वाले लोगों कोचाहिए कि वे न कभी प्रतिक्रियाएँ करें, न इन पर कोई ध्यान दें क्योंकि प्रतिक्रियाएं व्यक्ति को खोखला करती हैं और जोलोग प्रतिक्रियाओं के भरोसे चलते हैं वे जिन्दगी के महान लक्ष्यों से भटक कर रह जाते हैं प्रतिक्रियाओं के मकड़जाल मेंही उलझ कर रह जाते हैं।

जो लोग प्रतिक्रियाएं करते हैं या प्रतिक्रियाओं को जानना, करना या कराना चाहते हैं उन लोगों को यही अभीप्सित होताहै कि जो लोग प्रतिक्रियाओं के भंवर में फंस जाते हैं उनकी जिन्दगी की रफ्तार को थाम ली जाए और उन्हें ऐसा नाकाराकर दिया जाए कि वे जिन्दगी भर क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच पेण्डुलम की तरह बने रहें और आगे नहीं बढ़सकें।

जो भी व्यक्ति एक बार प्रतिक्रियाओं में रस लेने लग जाता है वह अपने उद्देश्यों में भटक कर रह जाता है औरप्रतिक्रियावादियों के हाथों की कठपुतली बना हुआ जीवन के अमूल्य क्षणों की हत्या कर देता है।  जीवन में तरक्कीपाना चाहें तो न प्रतिक्रिया करें, न अपनी किसी क्रिया के बारे में औरों की प्रतिक्रिया जानने का कभी प्रयास करें।

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