औरों के किए की सजा
दूसरों को न दें

– डॉ. दीपक आचार्य
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दुनिया में खूब सारे लोग ऐसे हैं जिनके पास पॉवर है, भगवान की दी हुई बुद्घि है और वह हुनर है कि वे चाहें तो समुदाय और लोगों का भला कर सकते हैं। लेकिन इस किस्म के लोगों में से कुछेक बिरले लोगों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश ऐसे हैं जो पूर्वाग्रह और दुराग्रह से ग्रस्त हैं।
कुछ तो इतने दुराग्रही हैं कि अपने लोक व्यवहार और कर्मयोग में भी उन्मादी व्यक्तित्व का परिचय देने में पीछे नहीं रहते। इन लोगों के लिए अपने जीवन में तरक्की और स पन्नता की प्रसन्नता से कहीं ज्यादा वे बातें याद हैं और रह-रहकर दिमाग और दिल के बीच चक्कर काटती रहती हैं जो उनके जीवन में कहीं न कहीं नकारात्मक अनुभव होती रही हैं।
अपने जीवन में अधिकांश श्रेष्ठ और सुकूनदायी ल हों की बजाय चंद नकारात्मक मानसिकता भरे भावों और दिल के घावों को लेकर वे मरते दम तक अफसोस और व्यथा का अनुभव करते रहते हैं। उनकी यह विकृत मानसिकता और आत्मदु:खी भाव जेहन में ऐसा घर कर जाता है कि कभी बाहर निकलने ही नहीं पाता। बार-बार ये अपने साथ हुए किसी न किसी बुरे या शून्य व्यवहार को याद करते हुए विलाप करते रहते हैं और यह धारणा बना लेते हैं कि लोगों ने उनके साथ जैसा पिछले समय में किया है, वैसा ही बर्ताव वे दूसरों लोगों के साथ करेंगे।
उनका यह दृढ़ निश्चय उनके हाथों से न परोपकार और सेवा करवा सकता है, और न ही ऐसे लोग यश प्राप्त कर पाते हैं। उलटे ऐसे लोग हमेशा अपयश के भागी होते हैं। पांच साला या साठ साला बाड़ों में हमेशा पसरकर अपने ही अपने आपको चारों तरफ देखने और अनुभव करने वाले इन लोगों को बाड़ों में रहते हुए भी कोई यश नहीं मिलता और बाड़ों से बाहर निकलकर यमराज के द्वार पर पहुंचने तक भी।
जब ये बाड़ों में घुसे होते हैं तब लोग इनके भय और हिंसक, विघ्नसंतोषी स्वभाव के कारण भले ही बेबाक और स्पष्ट अभिव्यक्ति नहीं कर पाएं, मगर जब ऐसे लोग बाड़ों से सायास-अनायास या अवधि पूरी होने पर बाहर फेंक दिये जाते हैं, तब लोग इन पर शब्दबाणों को प्रहार करने में कहीं कोई चूक नहीं करते।
ऐसे लोगों के बारे में आम लोगों की धारणा यही होती है कि ये लोग मनुष्य नहीं होकर यदि पत्थर ही होते तो कहीं कुछ काम तो आते वरना जिन्दगी भर न किसी काम के रहे, न काज के। हमारे आस-पास आजकल व्हील चेयर्स में धँसे और मोटी-मोटी गद्दीयों पर आसीन ऐसे लोगों की खूब भीड़ है जो शक्तियां व सामर्थ्य होने के बावजूद न किसी का कोई काम करते हैं, न करवा पाते हैं और न किसी की मदद करते हैंं।
ऐसे लोगों में कई हमारे संपर्कित भी हुआ करते हैं और कई सारे लोग अपने क्षेत्र में भी ऐसे होते ही हैं। ऐसे नाकारा और नकारात्मक मानसिकता से भरे हुओं के लिए आम लोगों की अपनी अलग ही भाषा बन जाती है। ऐसे लोगों को भौंदू, गोबरगणेश, ढपोड़शंख, गप्पी, न काम का न काज का ढाई मन अनाज का, बिल्ली का ….न लिपने का, न थापने का, भैंसा, जमाने पर भार, कुर्सीतोड़, हरामखोर आदि कई सारे नामों से संबोधित किया जाने में कोई भी आदमी तनिक सी शर्म भी महसूस नहीं करता।
भगवान ने जो सामर्थ्य एवं शक्तियां प्रदान की हैं उनका पूरा-पूरा उपयोग करते हुए अपने जीवन को ऐसा परोपकारी बनाएं कि लोग दशकों तक हमें याद रखें और जहां कहीं अच्छे लोगों के बारे में चर्चा हो, अपना नाम हर किसी की जुबाँ पर चढ़ा हो, कोई हमारे लिए अपशब्द या गाली न बोल सके।
हो सकता है हमारे जीवन में कई सारे ऐसे कमीन और नुगरे लोग आए हों जिनके कुकर्मों की वजह से हमें नीचा देखना पड़ा हो, हमारा कहीं कोई नुकसान हुआ हो। ऐसे लोग सिर्फ अपने यहाँ अथवा हमारे आस-पास ही नहीं होते बल्कि कहीं भी पाए जा सकते हैं।
यह भी याद रखें कि ईश्वर ने ऐसे लोगों के ईलाज के लिए हमें इसीलिए चुना कि हममें ही वह सामर्थ्य था कि वे लोग हमसे टकराकर शक्तिहीन हो जाएं या नष्ट हो जाएं। ईश्वर की लीला ही ऐसी है कि वह हमारे माध्यम से समुदाय की कई बाधाओं को समाप्त करता है और ऐसे में इन नालायकों ने जो कुछ किया उसे भूलकर हमें अपनी शक्तियों और अधिकारों का उपयोग पूरे मन लोक सेवा एवं परोपकार में करना चाहिए। वरना इन नालायक कमीनों तथा हममें अंतर ही क्या बचा रहेगा।
इसलिए जीवन में हमारे साथ चाहे किसी ने कैसा भी बुरा व्यवहार किया हो, नुकसान पहुँचाया हो, उसे भूलते हुए हमारी यही कोशिश होनी चाहिए कि हम अपने पास पहुंचने वाले प्रत्येक व्यक्ति की आशाओं-अपेक्षाओं पर खरे उतरें और अपने व्यक्तित्व को इतना लोकोन्मुखी व व्यवहारकुशल बनाएं कि अधिक से अधिक लोगों के काम आ सकें ताकि आने वाले जन्मों में हमें गिद्घ, सूअर, श्वान और लोमड़ों, साँप-बिच्छू, घड़ियाल, मगरमच्छ आदि नहीं बनना पड़े।

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