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आज का चिंतन

आज का निकृष्ट और उस समय का उत्कृष्ट भारतीय समाज

बलात्कार की घटनाएं नित प्रतिदिन tv समाचार पत्रों आदि में पढ़ सुन देख दिल दहल जाता है
प्रश्न आता है इन बलात्कारियों की क्या सजा हो जिससे नारी सुरक्षित हो।
और देश में लूटपाट जैसे जघन्य अपराध न हों ।
हमारे शास्त्र क्या कहते हैं
आइये जानते हैं श्रुति स्मृति क्या कहती है
स्त्रियों को अपनी वेशभूषा तथा चाल-चलन को वैदिक करना होगा वेद का स्पष्ट निर्देश है नारी जाति के लिए-
*अध: पश्यस्व मोपरि सन्तरां पादकौ हर।*
*मा ते कशप्लकौ दृशन् स्री हि ब्रह्मा बभूविथ ।।*
-ऋ० ८।३३।१९


हे नारी ! नीचे देख, ऊपर मत देख। अपने पैरों को संयत करके रख। तेरे शरीर के अंग दिखाई न देने चाहिएं, क्योंकि नारी मानव-समाज की निर्मात्री है।
*काव्यार्थ*
उन्नत हो न नीचे गिर,
फूहड़पन से न रह नारी।
अंगप्रत्यंग दिखाई न दें,
पग संयत कर चल न्यारी।
तू ब्रह्मा है तू देवी है,
तू ही राष्ट्र निर्मात्री है।
तुझ पर तो न्यौछाबर प्रभु खुद,
रचना उसकी प्यारी है।।
*महर्षि मनु के अनुसार जिस दिन हमारा संविधान होगा उस दिन भारत में एक भी बलात्कार नहीं होगा। *क्योंकि महर्षि मनु के अनुसार अपराधी को दण्ड मिलेगा तो बलात्कार स्वयं ही रुक जाएँगे। *मनुजी* ने बलात्कारी (व्यभिचारी) के लिए क्या दण्ड निर्धारित किया है? देखिए―
*पुमांसं दाहयेत्पापं शयने तप्त आयसे ।*
*अभ्यादध्युश्च काष्ठानि तत्र दह्येत पापकृत् ।।* ―मनु० ८।३७२
*भावार्थ*― _पर-स्त्री से व्यभिचार (बलात्कार) करनेवाले मनुष्य को लोहे की तप्त (गर्म) शय्या पर सुलाकर, चारों ओर लकड़ी रखकर अग्नि लगा दे जिससे वह पापी भस्म हो जाए।_
*काव्यार्थ*
लोहे का कर तप्त बिछैया,
चारो ओर से लगावें आग।
जिस दिन हो ये कठोर दण्ड,
अपराधी नहीं करेगा पाप।।
आगे *मनुजी* ने कहा है―
*गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् ।*
*आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन् ।।* ―मनु० ८।३५०
*भावार्थ*― _चाहे गुरु, बालक, वृद्ध, ब्राह्मण वा विद्वान् क्यों न हो, राजा को चाहिए कि आततायी होने की दशा में बिना सोचे इन सबका वध अवश्य करे। इस विषय में कुछ विचार नहीं करना चाहिए।_
*काव्यार्थ*
चाहे बालक वृद्ध या ज्ञानी,
क्यों न ब्राह्मण हो विद्वान।
आततायी का वध आवश्यक,
राजा का हो कड़ा विधान।। बलात्कारी आततायी ही होता है―
*वशिष्ठ स्मृति* के व *मनु ८।३५०* के बाद प्रक्षिप्तांश के अनुसार ―आग लगानेवाला, विष देकर मारनेवाला, हाथ में शस्त्र लेकर वार करनेवाला, धन लूटनेवाला, भूमि पर बलपूर्वक कब्जा करनेवाला तथा स्त्रियों को उठाकर ले-जानेवाला―ये छह आततायी होते हैं।
*काव्यार्थ*
आग लगाए, विष दे मारे,
हाथ में शस्त्र ले करता वार।
धन लूटे कब्जा कर बैठे,
स्त्री को उठाये भगाए यार।
ये छह प्रकार के आतताई,
बलात्कारी की कोटि में आते हैं।
स्मृति वशिष्ठ, स्मृति मनु प्रक्षिप्तांश यही बतलाते हैं।

*स्त्रियों के साथ पुरुष भी सदाचारी हों अन्यथा बलात्कार* [ व्यभिचार ] की घटनाएँ जब तक रुकेगी नहीं तब तक राजा अश्वपति जैसा शासन व स्वयं पर गर्व करने वाला शासक न हो। उपनिषदों में महाराज *अश्वपति* का किस्सा है, महाराज *अश्वपति* ने घोषणा की थी―
*न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः ।*
*नानाहिताग्निर्नाविद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः ।।*
_”हे विद्वान् ब्राह्मणो ! मेरे देश में कोई भी चोर नहीं, दूसरे के धन को छीनने वाला नहीं। यहाँ कोई कंजूस नहीं। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो दान न देता हो। कोई ऐसा नहीं जो शराब पीता हो। ऐसा भी कोई नहीं जो प्रतिदिन यज्ञ न करता हो। कोई मूर्ख, अनपढ़ या अविद्वान् भी नहीं। यहाँ कोई पुरुष व्यभिचारी (चरित्रहीन) नहीं , तब व्यभिचारिणी स्त्री कैसे हो सकती है?”_
*काव्यार्थ*
मेरे राज्य में चोर न कोई,
न धन लूटने वाले डकैत।
न कंजूस कृपण कोई है,
न व्यसनी मद्य मांसादि लेत।
न कोई मूर्ख आदि लम्पट,
न गंवार अनपढ़ अविद्वान।
तो फिर कैसे हो स्त्री व्यभिचारिणी,
कहते राजा अश्वपति महान।।
इसप्रकार शास्त्र अनुसार निर्देशों पर चलने वा जीवन जीने वाले गृह समाज राष्ट्र ही
अपने आप को व्यभिचार व बलात्कार जैसे दुष्ट कर्म से बचा नव ऊंचाइयों को छू सकते हैं।
-दर्शनाचार्या विमलेश बंसल आर्या
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