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‘ स्वर्ग ‘ में आग लगाने के लिए फारूख-महबूबा व अन्य कश्मीरी नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी

रमेश ठाकुर

वादी में आग लगाने के लिए फारूख-महबूबा व अन्य कश्मीरी नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी है। बीते गुरुवार को सुबह और शाम में लगातार दो बैठकें हुईं, जिसमें जम्मू-कश्मीर के तमाम छोटे-बड़े सियासी दलों के बीच ‘गुप्त चर्चाएं होती रहीं।

नजरबंदी से मुक्त हुए कश्मीरी नेताओं ने फिर मोर्चा बंदी शुरू कर दी है। कश्मीर घाटी हिंदुस्तान की जन्नत है। लेकिन दुर्भाग्य से उस जन्नत में आजादी से ही जहर घुला हुआ था। पर, बीते बारह-चौदह महीनों में वहां की आबोहवा खुली फिजाओं में सांस ले रही है। पिछले वर्ष पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए निरस्त होने के बाद समूचे प्रदेश का माहौल बदला। जिन चाक-चौराहों और गलियों में कभी सिर्फ खून के निशान दिखाई पड़ते थे, वहां अब प्रकृतिक सुंदरता की सौंधी सुगंध महकती है। लेकिन एक बार फिर उस जन्नत में जहर घोलने की कोशिशें होने लगी हैं। जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों ने आपस में हाथ मिलाया है। बंदी से आजाद होने के बाद दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर में फिर से माहौल बिगाड़ने की सामूहिक साजिशें रचनी शुरू की हैं?

वादी में आग लगाने के लिए फारूख-महबूबा व अन्य कश्मीरी नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी है। बीते गुरुवार को सुबह और शाम में लगातार दो बैठकें हुईं, जिसमें जम्मू-कश्मीर के तमाम छोटे-बड़े सियासी दलों के बीच ‘गुप्त चर्चाएं होती रहीं, जिसमें प्रमुख रूप से नेशनल कॉन्फ़्रेंस, पीडीपी पार्टी के नेता शामिल हुए। चेहरे सभी के मुरझाए हुए थे। ठीक वैसे ही जैसे घायल गीदड़ जब ठीक होकर बाहर निकलता है और पुराने दर्द को याद करके कराहता है। चौदह महीनों की बंदी से मुक्त हुए सभी नेताओं ने एक सुर में फिर से अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करने की मांग उठाई, यह सभी अपने लिए पहले जैसा वातावरण चाहते हैं। पर, शायद ये संभव नहीं? पर हां इतना जरूर है वह इन हरकतों से अपनी जगहंसाई जरूर करवा रहे हैं।

बहरहाल, जम्मू में इस समय नेताओं के बीच जो खिचड़ी पक रही है उसकी भनक दिल्ली की सियासत को है। केंद्र की पैनी नजर उनकी प्रत्येक हलचलों पर है। तभी तो चलती बैठक के बीच दिल्ली से जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करने को कह दिया गया। बैठक खत्म करके कश्मीरी नेता जैसे ही बाहर निकले, तो उन्होंने दरवाज़ों पर सुरक्षा कर्मियों का भारी हुजूम देखा और समझ गए पूरे माजरे को। इतना समझ गए कि उनकी कोई भी प्लानिंग अब आसानी से कारगर साबित नहीं होने वाली। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने और नेताओं को नजर बंद से मुक्त कराने के बाद ये उनकी पहली बड़ी बैठक थी। लेकिन कहानी फिर वहीं से दोहराई जहां पिछले साल चार अगस्त को छोड़ी थी।

कश्मीर को जब अनुच्छेद 370 से मुक्ति के लिए दिल्ली में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री में सुगबुगाहट हो रही थी तो उसकी भनक कश्मीरी नेताओं को हो गई थी। वह भी केंद्र सरकार को घेरने के लिए घेराबंदी का प्लान बना रहे थे। लेकिन सरकार ने उनको उतना मौका ही नहीं दिया गया। सब कुछ गुप्त प्लानिंग के साथ बहुत जल्दी किया गया। करीब सौ से ज्यादा कश्मीरी नेताओं को जो जिस हाल में था, उन्हें घरों में कैद कर दिया। बंदी के बाद घर के बाहर सख्त पहरेदारी बिठा दी। सुरक्षा के इतने तगड़े बंदोबस्त किए गए कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। लेकिन इसी सप्ताह वहां की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन, यूसुफ़ तारिगामी और फारूख अब्दुल्ला की जैसे ही नजदबंदी हटाई गई उन्होंने बाहर आते ही उछलकूद मचाना शुरू कर दिया। बंदी से आजाद होने के बाद महबूबा मुफ्ती का आतंकी को शहीद बताना और फारूख अब्दुल्ला का चीन के प्रति अपने मंसूबों को उजागर करने के पीछे की मंशा को केंद्र सरकार ने भांपने में देर नहीं की। फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल करने की मांग को लेकर चीन से समर्थन मांगने की बात कह चुके हैं जिसके लिए उनकी पूरे देश में थू-थू और जमकर आलोचना भी हो रही है।

बहरहाल, सभी कश्मीरी नेताओं की हरकतों पर पैनी नजर बनी हुई है। अगर हरकतें बर्दाश्त से बाहर हुईं तो हो सकता है उनकी नजर बंदी दोबारा से बढ़ा दी जाए। लेकिन इतना तय है केंद्र सरकार अपने फैसले से रत्ती भर भी इधर-उधर नहीं होने वाली। फारूख अब्दुल्ला जैसे नेताओं की मांगों को हुक़ूमत नज़रअंदाज़ करके ही चलेगी। केंद्र सरकार को वहां अभी राज्यपाल शासन लगे रहने देना चाहिए, क्योंकि खुदा न खास्ता अगर विधानसभा के चुनाव होते हैं तो जनता को ये नेता रिझा लेंगे? जनसमर्थन मिलने के बाद ये लोग ना चाहते हुए भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर देंगे। एक बात और जो समझ से परे है, वह है पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस की चुप्पी बनी हुई है। कश्मीरी नेता सोनिया गांधी से समर्थन मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें मुकम्मल जवाब नहीं मिल रहा। सोनिया गांधी के अलावा कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी फिलहाल इस कवायद से दूरी बना ली है। दिल्ली के अलावा जम्मू का भी कोई राजनेता फारूख अब्दुल्ला की बैठक में शामिल नहीं हुआ।

खुफ़िया एजेंसियों के पास ऐसे इनपुट हैं जिसमें कश्मीरी नेता फिर से प्रदेश में उपद्रव कराने की साजिश में हैं। माहौल फिर से बिगड़ने के आसार दिखाई पड़ते हैं। कश्मीरी नेताओं के खिलाफ स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी विरोध प्रर्दशन शुरू कर दिया है। हालांकि मामला बहुत ही संवेदनशील है, उन्हें इससे बचना चाहिए। कश्मीर में जिन नेताओं ने अभी तक जहर फैला कर राजनीति की थी, उन सभी नेताओं के लिए माहौल अब पहले जैसा नहीं रहा। यही वजह है कि नजर बंदी से आजाद होने के बाद फारूख-महबूबा जैसे लोग बदले माहौल में राजनीति की नई राह तलाश रहे हैं।

करीब एक साल नजर बंदी में रहने के बाद अब फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अपने रूतबे को पाने के लिए तड़फड़ा रहे हैं। नजर बंदी के बाद का माहौल उन्हें बदला हुआ दिख रहा है। न समर्थक दिखाई पड़ते हैं, न ही कार्यकर्ताओं की उनके पक्ष में नारेबाज़ी, सब कुछ नदारद है। पाकिस्तान जो कभी उनका खुलकर समर्थन करता था, उसकी हालत भी पहले से अब पतली है। वहां फांके पड़े हैं, पाकिस्तान की इमरान सरकार कब धराशायी हो जाए, खुद प्रधानमंत्री इमरान खान को भी पता नहीं? ऐसे में कश्मीरी नेताओं का अलग-थलग पड़ जाना स्वाभाविक-सा है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य के एकीकरण के मुद्दे पर बेशक फारूख और महबूबा मुफ्ती ने हाथ मिलाया हो, पर होने वाला कुछ नहीं?

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