क्या काम के ये ज्योतिषी

जो संशय दूर न कर सकें

– डॉ. दीपक आचार्य

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  कल और आज का दिन राखी और श्रावणी उपाकर्म को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियों, मत-मतान्तरों और संशयों से भरा रहा। राखी और श्रावणी उपाकर्म कब होना चाहिए? इसका मुहूर्त और समय क्या होना चाहिए? आदि-आदि बातें जनमानस को उद्वेलित करती रहीं।  लेकिन समय पर कहीं किसी को कोई स्पष्ट निर्णय प्राप्त नहीं हो सका।

कई स्थानों पर राखी और श्रावणी उपाकर्म कल हुए, कई स्थानों पर आज। इस विषय पर ज्योतिषी और पंड़ित कहीं एक  भी एकमत नहीं हो सके। कई स्थानों पर बड़े लोगों ने जैसा कह दिया उसी अनुसार भेड़चाल बन गई।

एक ही क्षेत्र में कभी कल और कभी आज यह पर्व-उत्सव और अनुष्ठान सुने गए। इस संशय ने भारतीय ज्योतिष और पुराणोें तथा प्राच्यविद्या के नाम पर कमाई करने वाले धंधेबाजों से लेकर अपने-अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित ज्योतिर्विदों और पंड़ितों की कलई जरूर खोल कर रख दी है।

साल भर में कई बार ऎसे मौके आते हैं जब भारतीय तिथियों में घट-बढ़, योग-कुयोग-संयोग आदि होते हैं और ऎसे में ग्रह-नक्षत्रों की विस्मयकारी चाल में आयोजनों का निर्णय संशय से घिर कर रह जाता है।

इसी प्रकार के संशयों और भ्रमों के ज्योतिष सम्मत और शास्त्र सम्मत समाधान के लिए निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु जैसे कई ग्रंथ हमारे ऋषियों ने बनाए हैं जिनका आश्रय प्राप्त कर समाधान ढूँढ़ा जा सकता है।

लेकिन अब ज्योतिष व कर्मकाण्ड तथा प्राच्य परंपराओं में शोध, गहन अध्ययन-अनुसंधान और दिव्य दृष्टि से ज्ञान प्राप्ति की सारी परंपराएं खत्म होती जा रही हैं। कम्प्यूटर के भरोसे ज्योतिष ने गणना को भुला दिया, साधना और ईष्ट सिद्धि के बगैर हमारा फलित स्थूल और मिश्रित हो गया तथा धंधेबाजी मानसिकता ने हमारी वाणी और दृष्टि दोनों को दूषित करके रख दिया है।

ऎसे में ज्योतिषी जो कुछ कहे, वह दिव्य और सत्य हो ही, यह बातें अब बेमानी हैं। ज्योतिष देवताओं का शास्त्र है और इसका पूरा प्रभाव तभी दिखता है जब ज्योतिषी शुचितापूर्ण हो, उसके मन में तनिक मात्र भी धंधेबाजी या भोग-विलासी मानसिकता न हो, साधना व ईष्ट सिद्धि हो तथा पूरा जीवन निस्पृह एवं शुद्ध-बुद्ध हो। ऎसा आज कलियुग में असंभव तो नहीं, पर मुश्किल हो गया है और इसी कारण ज्योतिषीय टिप्पणियां और विवेचन केवल गप्पों या कयासों से आगे कुछ नहीं रह गया है।

कभी सौ बातों में दस बातें सही निकल जाएं तो भगवान या भाग्य भरोसे। कभी ऎसा हो जाता है – लगे तो तीर नहीं तो तुक्का। खैर वर्तमान हालत में ज्योतिषी खुद के धंधों को चलाने के लिए कुछ भी करें, कहें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जब भी समाज के सामने संशय की स्थिति हो, ज्योतिषियों को सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना से काम करना चाहिए और खुद अपनी ओर से पहल करते हुए उन बातों पर स्पष्ट राय रखनी चाहिए जो समाज से सार्वजनीन रूप से जुड़े हुए हैं।

ऎसे सामाजिक कामों में भी पैसा मिलने पर मुँह खोलने और लिखने की मानसिकता से पूरी तरह बचना चाहिए। हालांकि आज भी कई ज्योतिषी ऎसे हैं जिनकी ईष्ट सिद्धि इतनी है कि वे गणित और फलित में तो सिद्ध हैं ही, उनकी वाणी भी सत्य होती है। लेकिन ये सम सामयिक पब्लिसिटी के हथकण्डों से दूर हैं भी, और रहना भी चाहते हैं। अपने धर्म धाम कहे जाने वाले इलाकों में भी जो लोग इन कामों में जुटे हुए हैं उन्हें समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाने को हमेशा तत्पर रहना चाहिए। इसी में उनका, ज्योतिष का और समाज का भला है।

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