Categories
आज का चिंतन

क्या है पुनर्जन्म के बारे में भारतीय वैदिक दृष्टिकोण ?

आज का चिंतन

पुनर्जन्म सिद्धान्त समीक्षा :-

प्रश्न :- पुनर्जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- आत्मा और इन्द्रियों का शरीर के साथ बार बार सम्बन्ध टूटने और बनने को पुनर्जन्म या प्रेत्याभाव कहते हैं ।

प्रश्न :- प्रेत किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब आत्मा और इन्द्रियों का शरीर से सम्बन्ध टूट जाता है तो जो बचा हुआ शरीर है उसे शव या प्रेत कहा जाता है ।

प्रश्न :- भूत किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जो व्यक्ति मृत हो जाता है वह क्योंकि अब वर्तमान काल में नहीं है और भूतकाल में चला गया है इसी कारण वह भूत कहलाता है ।

प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?
उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिये आपको पहले जन्म और मृत्यु के बारे मे समझना पड़ेगा । और जन्म मृत्यु को समझने से पहले आपको शरीर को समझना पड़ेगा ।

प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ।
उत्तर :- शरीर दो प्रकार का होता है :- (१) सूक्ष्म शरीर ( मन, बुद्धि, अहंकार, ५ ज्ञानेन्द्रियाँ ) (२) स्थूल शरीर ( ५ कर्मेन्द्रियाँ = नासिका, त्वचा, कर्ण आदि बाहरी शरीर ) और इस शरीर के द्वारा आत्मा कर्मों को करता है ।

प्रश्न :- जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- आत्मा का सूक्ष्म शरीर को लेकर स्थूल शरीर के साथ सम्बन्ध हो जाने का नाम जन्म है । और ये सम्बन्ध प्राणों के साथ दोनो शरीरों में स्थापित होता है । जन्म को जाति भी कहा जाता है ( उदाहरण :- पशु जाति, मनुष्य जाति, पक्षी जाति, वृक्ष जाति आदि )

प्रश्न :- मृत्यु किसे कहते हैं ?
उत्तर :- सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच में प्राणों का सम्बन्ध है । उस सम्बन्ध के टूट जाने का नाम मृत्यु है ।

प्रश्न :- मृत्यु और निद्रा में क्या अंतर है ?
उत्तर :- मृत्यु में दोनों शरीरों के सम्बन्ध टूट जाते हैं और निद्रा में दोनों शरीरों के सम्बन्ध स्थापित रहते हैं ।

प्रश्न :- मृत्यु कैसे होती है ?
उत्तर :- आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को पूरे स्थूल शरीर से समेटता हुआ किसी एक द्वार से बाहर निकलता है । और जिन जिन इन्द्रियों को समेटता जाता है वे सब निष्क्रिय होती जाती हैं । तभी हम देखते हैं कि मृत्यु के समय बोलना, दिखना, सुनना सब बंद होता चला जाता है ।

प्रश्न :- जब मृत्यु होती है तो हमें कैसा लगता है ?
उत्तर :- ठीक वैसा ही जैसा कि हमें बिस्तर पर लेटे लेटे नींद में जाते हुए लगता है । हम ज्ञान शून्य होने लगते हैं । यदि मान लो हमारी मृत्यु स्वाभाविक नहीं है और कोई तलवार से धीरे धीरे गला काट रहा है तो पहले तो निकलते हुए रक्त और तीव्र पीड़ा से हमें तुरंत मूर्छा आने लगेगी और हम ज्ञान शून्य हो जायेंगे और ऐसे ही हमारे प्राण निकल जायेंगे ।

प्रश्न :- मृत्यु और मुक्ति में क्या अंतर है ?
उत्तर :- जीवात्मा को बार बार कर्मो के अनुसार शरीर प्राप्त करे के लिये सूक्ष्म शरीर मिला हुआ होता है । जब सामान्य मृत्यु होती है तो आत्मा सूक्ष्म शरीर को लेकर उस स्थूल शरीर ( मनुष्य, पशु, पक्षी आदि ) से निकल जाता है परन्तु जब मुक्ति होती है तो आत्मा स्थूल शरीर ( मनुष्य ) को तो छोड़ता ही है लेकिन ये सूक्ष्म शरीर भी छोड़ देता है और सूक्ष्म शरीर प्रकृत्ति में लीन हो जाता है । ( मुक्ति केवल मनुष्य शरीर में योग समाधि आदि साधनों से ही होती है )

प्रश्न :- मुक्ति की अवधि कितनी है ?
उत्तर :- मुक्ति की अवधि 36000 सृष्टियाँ हैं । 1 सृष्टि = 8640000000 वर्ष । यानी कि इतनी अवधि तक आत्मा मुक्त रहता है और ब्रह्माण्ड में ईश्वर के आनंद में मग्न रहता है । और ये अवधि पूरी करते ही किसी शरीर में कर्मानुसार फिर से आता है ।

प्रश्न :- मृत्यु की अवधि कितनी है ?
उत्तर :- एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है ।

प्रश्न :- जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- ईश्वर के द्वारा जीवात्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ कर्म के अनुसार किसी माता के गर्भ में प्रविष्ट हो जाता है और वहाँ बन रहे रज वीर्य के संयोग से शरीर को प्राप्त कर लेता है । इसी को जन्म कहते हैं ।

प्रश्न :- जाति किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जन्म को जाति कहते है । कर्मों के अनुसार जीवात्मा जिस शरीर को प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है । जैसे :- मनुष्य जाति, पशु जाति, वृक्ष जाति, पक्षी जाति आदि ।

प्रश्न :- ये कैसे निश्चय होता है कि आत्मा किस जाति को प्राप्त होगा ?
उत्तर :- ये कर्मों के अनुसार निश्चय होता है । ऐसे समझिए ! आत्मा में अनंत जन्मों के अनंत कर्मों के संस्कार अंकित रहते हैं । ये कर्म अपनी एक कतार में खड़े रहते हैं जो कर्म आगे आता रहता है उसके अनुसार आत्मा कर्मफल भोगता है । मान लो आत्मा ने कभी किसी शरीर में ऐसे कर्म किये हों जिसके कारण उसे सूअर का शरीर मिलना हो । और ये सूअर का शरीर दिलवाने वाले कर्म कतार में सबसे आगे खड़े हैं तो आत्मा उस प्रचलित शरीर को छोड़ तुरंत किसी सूअरिया के गर्भ में प्रविष्ट होगी और सूअर का जन्म मिलेगा । अब आगे चलिये सूअर के शरीर को भोग जब आत्मा के वे कर्म निवृत होंगे तो कतार में उससे पीछे मान लो भैंस का शरीर दिलाने वाले कर्म खड़े हो गए तो सूअर के शरीर में मरकर आत्मा भैंस के शरीर को भोगेगा । बस ऐसे ही समझते जाइए कि कर्मों की कतार में एक के बाद एक एक से दूसरे शरीर में पुनर्जन्म होता रहेगा । यदि ऐसे ही आगे किसी मनुष्य शरीर में आकर वो अपने जीवन की उपयोगिता समझकर योगी हो जायेगा तो कर्मो की कतार को 36000 सृष्टियों तक के लिये छोड़ देगा । उसके बाद फिर से ये क्रम सब चालू रहेगा ।

प्रश्न :- लेकिन हम देखते हैं एक ही जाति में पैदा हुई आत्माएँ अलग अलग रूप में सुखी और दुखी हैं ऐसा क्यों ?
उत्तर :- ये भी कर्मों पर आधारित है । जैसे किसी ने पाप पुण्य रूप में मिश्रित कर्म किये और उसे पुण्य के आधार पर मनुष्य शरीर तो मिला परंतु वह पाप कर्मों के आधार पर किसी ऐसे कुल मे पैदा हुआ जिसमें उसे दुख और कष्ट अधिक झेलने पड़े । आगे ऐसे समझिए जैसे किसी आत्मा ने किसी शरीर में बहुत से पाप कर्म और कुछ पुण्य कर्म किए जिस पाप के आधार पर उसे गाँय का शरीर मिला और पुण्यों के आधार उस गाँय को ऐसा घर मिला जहाँ उसे उत्तम सुख जैसे कि भोजन, चिकित्सा आदि प्राप्त हुए । ठीक ऐसे ही कर्मों के मिश्रित रूप में शरीरों का मिलना तय होता है ।

प्रश्न :- जो आत्मा है उसकी स्थिति शरीर में कैसे होती है ? क्या वो पूरे शरीर में फैलकर रहती है या शरीर के किसी स्थान विशेष में ?
उत्तर :- आत्मा एक सुई की नोक के करोड़वें हिस्से से भी अत्यन्त सूक्ष्म होती है और वह शरीर में हृदय देश में रहती है वहीं से वो अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा स्थूल शरीर का संचालन करती है । आत्मा पूरे शरीर में फैली नही होती या कहें कि व्याप्त नहीं होती । क्योंकि मान लें कोई आत्मा किसी हाथी के शरीर को धारण किये हुए है और उसे त्यागकर मान लो उसे कर्मानुसार चींटी का शरीर मिलता है तो सोचो वह आत्मा उस चींटी के शरीर में कैसे घुसेगी ? इसके लिये तो उस आत्मा की पर्याप्त काट छांट करनी होगी जो कि शास्त्र विरुद्ध सिद्धांत है, कोई भी आत्मा काटा नहीं जा सकता । ये बात वेद, उपनिषद्, गीता आदि भी कहते हैं ।

प्रश्न :- लोग मृत्यु से इतना डरते क्यों हैं ?
उत्तर :- अज्ञानता के कारण । क्योंकि यदि लोग वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि का स्वाध्याय करके शरीर और आत्मा आदि के ज्ञान विज्ञान को पढ़ेंगे तो उन्हें सारी स्थिति समझ में आ जायेगी और लेकिन इससे भी ये मात्र शाब्दिक ज्ञान होगा यदि लोग ये सब पढ़कर अध्यात्म में रूचि लेते हुए योगाभ्यास आदि करेंगे तो ये ज्ञान उनको भीतर से होता जायेगा और वे निर्भयी होते जायेंगे । आपने महापुरुषों के बारे में सुना होगा कि जिन्होंने हँसते हँसते अपने प्राण दे दिए । ये सब इसलिये कर पाए क्योंकि वे लोग तत्वज्ञानी थे जिसके कारण मृत्यु भय जाता रहा । सोचिए महाभारत के युद्ध में अर्जुण भय के कारण शिथिल हो गया था तो योगेश्वर कृष्ण जी ने ही उनको सांख्य योग के द्वारा ये शरीर, आत्मा आदि का ज्ञान विज्ञान ही तो समझाया था और उसे निर्भयी बनाया था । सामान्य मनुष्य को तो अज्ञान मे ये भय रहता ही है ।

प्रश्न :- क्या वास्तव में भूत प्रेत नहीं होते ? और जो हम ये किसी महिला के शरीर मे चुड़ैल या दुष्टात्मा आ जाती है वो सब क्या झूठ है ?
उत्तर :- झूठ है । लीजिए इसको क्रम से समझिए । पहली बात तो ये है कि किसी एक शरीर कां संचालन दो आत्माएँ कभी नहीं कर सकतीं । ये सिद्धांत विरुद्ध और ईश्वरीय नियम के विरुद्ध है । तो किसी एक शरीर में दूसरी आत्मा का आकर उसे अपने वश में कर लेना संभव ही नही है । और जो आपने बोला कि कई महिलाओं में जो डायन या चुड़ैल आ जाती है जिसके कारण उनकी आवाज़ तक बदल जाति है तो वो किसी दुष्टात्मा के कारण नहीं बल्कि मन के पलटने की स्थिति के कारण होता है । विज्ञान की भाषा में इसे Multiple Personality Disorder कहते हैं जिसमें एक व्यक्ति परिवर्तित होकर अगले ही क्षण दूसरे में बदल जाता है । ये एक मान्सिक रोग है ।

प्रश्न :- पुनर्जन्म का साक्ष्य क्या है ? ये सिद्धांतवादी बातें अपने स्थान पर हैं पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण क्या हैं ?
उत्तर :- आपने ढेरों ऐसे समाचार सुने होंगे कि किसी घर में कोई बालक पैदा हुआ और वह थोड़ा बड़ा होते ही अपने पुराने गाँव, घर, परिवार और उन सदस्यों के बारे में पूरी जानकारी बताता है जिनसे उसका प्रचलित जीवन में दूर दूर तक कोई संबन्ध नहीं रहा है । और ये सब पुनर्जन्म के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । सुनिए ! होता ये है कि जैसा आपको ऊपर बताया गया है कि आत्मा के सूक्ष्म शरीर में कर्मो के संस्कार अंकित होते रहते हैं और किसी जन्म में कोई अवसर पाकर वे उभर आते हैं इसी कारण वह मनुष्य अपने पुराने जन्म की बातें बताने लगता है । लेकिन ये स्थिति सबके साथ नहीं होती । क्योंकि करोड़ों में कोई एक होगा जिसके साथ ये होता होगा कि अवसर पाकर उसके कोई दबे हुए संस्कार उग्र हो गए और वह अपने बारे में बताने लगा ।

प्रश्न :- क्या हम जान सकते हैं कि हमारा पूर्व जन्म कैसा था ?
उत्तर :- महर्षि दयानंद सरस्वति जी कहते हैं कि सामान्य रूप में तो नहीं परन्तु यदि आप योगाभ्यास को सिद्ध करेंगे तो आपके करोंड़ों वर्षों का इतिहास आपके सामने आकर खड़ा हो जायेगा । और यही तो मुक्ति के लक्षण हैं ।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version