मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…….
कोई यह कह सकता है कि कुरान में इब्राहीम की कुरबानी की चर्चा है, इसलिए उसका महत्व अधिक है, लेकिन इस तर्क से इमाम हुसैन का त्याग और बलिदान कम नही हो जाता।
इब्राहीम के दो पुत्र थे-इस्माइल और इसहाक आइजिक। इब्राहीम के पश्चात उनके दोनों ही पुत्र पैगंबर बने। इसहाक की नस्ल से अनेक पैगंबर जनमे, जिनमें अंतिम रूप से हजरते ईसा का नाम आता है। लेकिन इस्माइल की नस्ल से अंतिम पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ। इस्माइल की आयु 135 वर्ष मानी जाती है। इस्माइल के 12 पुत्र हुए। मक्का में उनकी संतानों के लिए पर्याप्त रोजगार नही था, इसलिए चरागाहों की तलाश में वे आसपास के क्षेत्रों में फैल गये। एक समय ऐसा आया कि बनू जिरहम नामक कबीले ने मक्का को इस्माइल के पुत्रों से छीन लिया। इस प्रकार काबा और जमजम के पानी का झरना तथा मक्का इस्माइल की संतानों के हाथ से निकल गई। सदियों तक राज करने के पश्चात बनू कनाना की शाखा बनू बकर और खाजाआ ने मिलकर मक्का पर चढ़ाई की और उसे जीत लिया। सन 440 में कुरेश कबीले के एक सरदार कुसाई ने मक्का पर वर्च्रस्व जमा लिया। कुसाई विवाह खाजाआ की पुत्री से हो गया। इस प्रकार बेटी और दामाद मक्का के वारिसदार बन गये।
कुरेश के पूर्वज का नाम फहर था। कुरेश उनका उपनाम था। कुरेश इस्माइल के वंशज थे। इस प्रकार 2100 साल के बाद मक्का फिर से इस्माइल की संतानों को मिल गया। कुसाई ने मक्का के इर्द गिर्द जहां भी कुरेश बिखरे हुए थे, उन्हें वापस बुलाकर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। कुसाई मक्का के साथ साथ काबे का भी मालिक और संरक्षक बन गया। उस समय काबा में कभी कबीलों के देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित थीं, जिन्हें बाद में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने वहां से हटवा दीं।
मक्का के इतिहास में इस्माइल के द्वारा ब नाया गया घर बेतुल्लाह जमजम के पानी का झरना जो अब कुएं के रूप में है और अन्य वस्तुएं जो किसी समय में दफन हो गयी थीं, खुदाई करने पर अब्दुल मुत्तलिब को मिलीं। इस प्रकार हाशिम के पुत्र अब्दुल मुत्तलिब इस समस्त संपत्ति के मालिक हो गये। मक्का के इतिहास में यह भी पढ़ने को मिलता है कि वह सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र था और इस्माइल की परंपरा के अनुसार यात्रा होती थी, जिसका नाम हज और उमरा पड़ गया। कुसाई के चार पुत्र थे, जिनमें उमरू नाम का बेटा बड़ा समझदार था। उन दिनों मक्का में भयंकर अकाल पड़ा। चंकि वह दानी था, इसलिए बड़ा लोकप्रिय हो गया।
अरबी में रोटी के टुकड़े करने वाले को हाशिम कहा जाता है, इसलिए उसका नाम ही हाशिम पड़ गया। इन सभी घटनाओं की चर्चा विस्तार से मिलती है, लेकिन यह तथ्य पढ़ने को नही मिलता कि समय इब्राहीम की परंपरा के अनुसार कुरबानी करने का रिवाज हो। भोजन के लिए मांसाहार होता था, यहां तक तो ठीक है, लेकिन आज जिस तरह से हज यात्रा संपन्न हो जाने के बाद किसी पशु की कुरबानी होती है, इसका विवरण नही मिलता। इब्राहीम और इस्माइल की इस संपूर्ण घटना का विवरण केवल कुरान में उपलब्ध है।
इसलिए इस्माइल से हजरत मोहम्मद साहब के बीच 2100 साल की अवधि में कुरबानी होती थी या नही, इसका कोई दस्तावेज नही मिलता। वास्तविकता तो यह है कि हज यात्रा और उसकी समस्त क्रियाओं का स्वरूप केवल इसलाम ने ही प्रदान किया है और उसके सबूत के रूप में मात्र कुरान ही एकमात्र दस्तावेज है।
क्रमश: