आज का सर्वोपरि फर्ज है

पूछताछ सेवा और मार्गदर्शन

– डॉ. दीपक आचार्य

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जिज्ञासुओं की जिज्ञासाओं का शमन कई समस्याओं का अपने आप खात्मा कर डालता है। इसलिए अपने संपर्क में आने वाले सभी प्रकार के जिज्ञासुओं की बातों को तसल्ली से सुनें और उनकी जिज्ञासा का शमन करें।

आज न योजनाओं की कमी है, न कार्यक्रमों की, न धन की कमी है, न संसाधनों की। सर्वाधिक कमी महसूस की जा रही है वह सूचनाओं के संवहन की, जानकारियों की पहुंच उन लोगों तक सुनिश्चित करने की, जिनको इनकी आवश्यकता है और जो लोग इनका लाभ लेकर अपना जीवन और भविष्य सुधार सकते हैं।

आजकल हमारे पास सब कुछ है लेकिन समय का अभाव है। हर कोई आजकल एक ही रोना रोता रहता है-टाईम नहीं है या टाईम ही नहीं मिलता। असल में हमारे पास समय की कोई कमी नहीं है। हमने अपनी प्राथमिकताओं को बदल डाला है और हम सारे कर्म करने में अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को ही महत्त्व देने लगे हैं।

जो लोग समाज की सेवा के नाम पर हमारे इर्द-गिर्द मण्डरा रहे हैं, जो संस्थाओं का संचालन कर देशी-विदेशी फण्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो लोग सच्चे समाजसेवी के रूप में लोकप्रियता पाने को उतावले हैं, और वे लोग भी जो अपने कुकर्मों को ढंके रखने के लिए सेवा और सामाजिक कल्याण के जाने कितने पब्लिसिटी वाले कामों में भाग्य आजमा रहे हैं या अभिनय कर रहे हैं, उन सभी लोगों के पास दूसरी तमाम बातों के लिए समय है लेकिन अपने पास आने वाले से दो-चार बातें कर लेने और उनकी जिज्ञासा का समाधान करने की फुर्सत नहीं है।

आज चाहे कोई सा क्षेत्र हो, समुदाय में बहुसंख्य लोग ऎसे हैं जिन्हें अपने भविष्य को सुधारने, सँवारने के लिए किए जाने वाले प्रयासों का पता नहीं है, अपनी आजीविका चलाने लायक नौकरी-धंधों से लेकर अपनी मामूली समस्याओं के समाधान की जानकारी नहीं है जबकि इन्हें थोड़ी सी मदद मिल जाए तो इनका पूरा जीवन समस्याओं से मुक्त होने में कोई देर नहीं लगने वाली।

इसी प्रकार रोजमर्रा की जिन्दगी में किसी दफ्तर, कोर्ट, बस स्टैण्ड, रास्तों से लेकर भ्रमण करने वाले लोगों को इस बात की जरूरत होती है कि जहाँ उन्हें कोई सूझ नहीं पड़े, वहां कोई समझदार आदमी पता बता दे, रास्ता बता दे और काम की बातें बता दें। यह समस्या खासकर उन क्षेत्रों में ज्यादा आती है जहाँ साक्षरता का प्रतिशत कम है और ज्यादातर लोग अनपढ़ हैं।

इन लोगों को शहरों में आने पर ठिकानों और रास्तों से लेकर बसों की जानकारी तक नहीं हो पाती। ऎसे में इन्हें तलाश बनी रहती है ऎसे लोगों की जिनसे पूछ कर वे काम कर सकें। लेकिन हम पढ़े-लिखे समझदारों की स्थिति ऎसी है कि हमें इनके प्रश्नों का जवाब देने की फुर्सत तक नहीं होती।

यों हम लोक सेवा और समाजसुधार, सामाजिक कल्याण की ढेरों बातें भाषणों में कह डालते हैं, दिन-रात बिना किसी काम के समाज की दुरावस्था पर गपियाते और बकवास करते रहते हैं, दिन भर तड़क-भड़क परिधानों में, आँखों पर सुनहरी फ्रेम का काला चश्मा चढ़ाये इधर-उधर घूमते रहेंगे, कई डेरों में चक्कर काटते रहेंगे, लेकिन जो काम हमें करना चाहिए, जो वास्तव में समाज और समाज के लोगों की सेवा में शुमार है, उसे करने में हम पीछे हट जाते हैं।

वर्तमान समय की सर्वाधिक जरूरत है अपनी पूछताछ सेवाओं को प्रभावी एवं व्यापक बनाने की, ताकि हर जरूरतमंद व्यक्ति को उसकी जिज्ञासाओं के बारे में संतुष्ट कर सकें, उसे राह दिखा सकें और उसकी दूआएं ले सकें। सच में यही सेवा है जो प्रत्यक्ष पुण्यप्राप्ति का माध्यम है जिसे करने पर आत्मतुष्टि का अनुभव होता है।

पर आजकल हमें हर बात के लिए पैसे चाहिएं, गिफ्ट चाहिए, हराम का माल चाहिए, हमारी मनःस्थिति जाने कैसी हो गई है कि हम अपने सारे मानवीय फर्ज भुला कर पैसों के पीछे पागल हुए जा रहे हैं। इसी कारण हमारे मानसिक संताप बढ़ गए हैं, शारीरिक व्याधियां उफान पर हैं और चित्त इतना उद्विग्न कि हर क्षण श्वानों की तरह हम हाँफते या गुर्राते नज़र आते हैंं।

सच्ची आत्मतुष्टि एवं शाश्वत शांति तभी पायी जा सकती है जब हम निष्काम सेवा और समाजोन्मुखी रचनात्मक प्रवृत्तियों भरे मार्ग अपनाएं। अपने पास कोई सा व्यक्ति आए, जान-पहचान वाला हो या अनजान, यदि अपने से असंतुष्ट होकर चला जाए, तो मान लें कि हमारा मनुष्य होना निरर्थक है, इससे तो अच्छा होता कि किसी नदी का बड़ा पाषाण होते या कोई पालतु पशु, जो किसी के कुछ तो काम आता ही, भले ही अनचाहे। अभी से शुरू कर सकें तो ठीक है वरना हमारी वजह से डॉक्टरों और किसम-किसम के सफेदपोश बगुलों, रिश्वतखोरों और अपराधियों को कमाई का मनचाहा सुकून जरूर मिलने लगेगा।

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