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संपादकीय

‘कांग्रेस : प्रायश्चित बोध भी आवश्यक है’

भाजपा के पी.एम. पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस के रणनीतिकार और केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम् ने  पहली बार कांग्रेस के लिए ‘चुनौती’ माना है। पी. चिदंबरम् ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष  राहुल गांधी के राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा से बचने की प्रवृत्ति को भी पार्टी के लिए चिंताजनक कहा है। उन्होंने कहा है कि राजनीतिक दल के तौर पर हम यह मानते हैं कि मोदी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती हैं। वह मुख्य विपक्षी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। हमें उन पर ध्यान केन्द्रित करना ही होगा।

यह अच्छी बात है कि कांग्रेस ने मोदी को एक चुनौती माना है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक भी है कि देश में सशक्त और सक्षम विपक्ष होना ही चाहिए। कल को प्रधानमंत्री कौन बनता है-यह एक अलग विषय है, परंतु देश में सक्षम विपक्ष के होने की बहुत ही अधिक आवश्यकता होती है। इससे सत्तारूढ़ पार्टी ‘सावधान’ होकर कार्य करती है और देश के समक्ष चुनौतियों के प्रति राष्ट्रीय नेतृत्व गंभीर होता है। क्योंकि उसे पता होता है कि यदि ‘प्रमाद’ बरता गया तो परिणाम गंभीर होंगे। कांग्रेस ने विपक्ष को सक्षम के स्थान पर सदा ‘अक्षम’ बनाये रखने का जंजाल बुने रखा और सत्ता की थाली का स्वाद चखती रही। विपक्ष अक्षम और अकर्मण्य बना  रहा, यह उसकी अक्षमता और अकर्मण्यता (निकम्मेपन) का ही परिणाम है कि देश में तीसरे मोर्चे (भानुमति का कुनबा) के कंधों पर सवार होकर वह सत्ता का सुखोपभोग सस्ते ढंग से करने को लालायित रहने  लगा है। वास्तव में तीसरा मोर्चा, विपक्ष को सत्ता के शमशानों तक पहुंचाने वाला ताबूत है। अतीत बताता है कि इसी ताबूत पर उठाकर इन तीसरे मोर्चे वालों ने कई सरकारों का अंतिम संस्कार किया है। ऐसी परिस्थितियों को कांग्रेस ने अपने हित में भुनाया है और वह देश की जनता में यह विश्वास स्थापित करने में सफल रही है कि विपक्ष देश को स्थायी सरकार नही दे सकता। तब मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में सुदृढ़ता के साथ स्थापित होना देश के लोकतंत्र के लिए सुखदायक अनुभूति है। कुछ लोग उन पर फासिस्ट होने के आरोप लगाते हैं, उनका यह कहना केवल ‘विरोध के लिए विरोध’ की श्रेणी में आता है। क्योंकि उनकी कार्यशैली ने गुजरात में स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने विरोधियों को मिटाते नही हैं और ना ही उनकी आलोचनाओं से विचलित होते हैं, अपितु उनकी आलोचनाओं का अपने कार्य और वाणी से करारा जवाब देते हैं। यदि आप लचीले हैं तो आपको मूर्ख बनाने वालों की दृष्टि में आपका कोई मूल्य नही रहेगा और आपकी लचीली नीतियों का अनुचित लाभ उठाकर वही लोग आपको अपयश का भागी बना देंगे जो आपसे लाभ उठाते रहे हैं। इसलिए नेता को ‘अपेक्षित’ कठोरता का प्रदर्शन करना ही चाहिए। मोदी वैसे नही हैं जैसे कि स्व. इंदिरा गांधी के काल में उन पर अपने विरोधियों को ‘ठिकाने लगाने’ के आरोप लगते रहे थे।

मोदी एक विचाराधारा को लेकर उठ रहे हैं, जिस पर उन्हें जन समर्थन मिलता देखकर कांग्रेस की नींद उड़ गयी है। कांग्रेस के नेता अपने नेता राहुल गांधी से आशा रखने  लगे हैं कि वे हर सप्ताह विदेश भागने के स्थान पर विपक्षी दल भाजपा के पी.एम. पद के प्रत्याशी मोदी का सामना करें और राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने और पार्टी के विचार स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करें। सारा देश भी यही चाहता है कि कांग्रेस अपनी छद्म धर्मनिरपेक्षता व तुष्टिकरण की नीतियों से देश को और देश के अल्पसंख्यकों को हुए लाभों को स्पष्ट करें और मोदी इन नीतियों से होने वाले अन्यायों और हानियों का लेखा जोखा देश की जनता के सामने प्रस्तुत करें। यह सत्य है कि कांग्रेस की इन नीतियों से देश के अल्पसंख्यकों का कोई हित नही हो पाया है। देश के समाज की सर्वांगीण उन्नति और उसका समूहनिष्ठ विकास तो सर्व संप्रदाय समभाव और विधि के समक्ष समानता की संवैधानिक गारंटी में ही निहित है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी कार्यशैली से स्पष्ट किया है कि वह अल्पसंख्यकों के अनुचित तुष्टिकरण को तो उचित नही मानते पर वो विकास की दौड़ में पीछे रह जाएं, ऐसी किसी व्यवस्था के भी समर्थक नही हैं। वस्तुत: ऐसा ही चिंतन वीर सावरकर का भी था और किन्हीं अर्थों तक सरदार पटेल भी यही चाहते थे। इस देश का दुर्भाग्य ही ये है कि जो व्यक्ति शुद्घ न्यायिक और तार्किक बात कहता है उसे ही साम्प्रदायिक कहकर अपमानित किया जाता रहा है। नमो ने अब मन बना लिया है कि साम्प्रदायिकता यदि शुद्घ न्यायिक और तार्किक बात के कहने में ही अंतर्निहित है तो वह यह गलती बार बार करेंगे और जिसे इस विषय में कोई संदेह हो वह उससे खुली बहस से भी पीछे नही हटेंगे।

लोकतंत्र में चुनावी मौसम में जनता का दरबार ही संसद का रूप ले लेता है। इसीलिए लोकतंत्र में संसद से बड़ी शक्ति जनता जनार्दन में निहित मानी गयी है। अब जनता जनार्दन की संसद का ‘महत्वपूर्ण सत्र’ चल रहा है और सारा देश इसे अपनी नग्न आंखों से देख रहा है। अत: इस ‘सर्वोच्च सदन’ से किसी नेता का अनुपस्थित रहना या किसी नेता के तार्किक बाणों का उचित प्रतिकार न करना भी इस सर्वोच्च संसद का अपमान ही है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता ही ये है कि ये राज दरबारों के सत्ता के षडयंत्रों में व्यस्त रहने वाले नेताओं को जनता के दरबार में भी प्रस्तुत करता है और उनके कार्य व्यवहार की औचित्यता या अनौचित्यता का परीक्षण जनता सेे अवश्य कराता है। अत: यह अनिवार्य हो जाता है कि ऐसे समय पर कोई नेता मुंह छुपाने का प्रयास ना करे। जनता को भी  सावधान रहना चाहिए कि उसे दो लोगों की लड़ाई का आनंद लेते देखकर सत्ता सुंदरी के डोले को कहीं फिर शमशानों में जाकर उसका अंतिम संस्कार करने में सिद्घहस्त कुछ ‘परंपरागत सौदागर’ न उठा ले जायें।

कांग्रेस ने पिछले 66 वर्षों में सबसे अधिक कुरूपित धर्म को किया है। इस पार्टी के चिंतन पर विदेशी लेखकों और विचारकों का रंग चढ़ा रहा है। ये ऐसे लेखक और विचारक रहे हैं जो धर्म को कभी जाने ही नही। क्योंकि उनके देश और परिवेश में भी धर्म को कभी जाना पहचाना नही गया था। जबकि मनुस्मृति के स्मृतिकार मनुमहाराज ने बहुत पहले ही लिख दिया था-

धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकम धर्म लक्षणम् ।।

यहां पर धर्म के दश लक्षणों पर विचार करते हुए महर्षि मनु कहते हैं कि जहां क्षमा, धैर्य, सत्य, अहिंसा, इन्द्रियनिग्रह, विद्या, अक्रोध जैसे मानवीय गुण होते हैं, वहां धर्म होता है। वहां मानवता होती है। धर्म की यह परिभाषा नही है, अपितु  केवल धर्म के लक्षणों पर प्रस्तुत किया गया एक गूढ़ विचार है। इस विचार से या धर्म के इन लक्षणों से निरपेक्ष रहना किसी भी सभ्य समाज के लिए असंभव है, इसलिए धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा ही अनौचित्यता से परिपूर्ण है। हां, सम्प्रदायनिरपेक्षता समाज के लिए आवश्यक है। परंतु कांग्रेस ने सम्प्रदायनिरपेक्षता को न अपनाकर धर्मनिरपेक्षता को अपनाया। इसलिए आज के कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के लिए यह आवश्यक है कि यह अपने विचार इस विषय में अवश्य प्रस्तुत करें। समय पुकार रहा है-एक चुनौती बनकर, और जब समय स्वयं चुनौती बन जाता है तो उसे उपेक्षित नही किया जा सकता है, क्योंकि समय को काल भी कहते हैं, और ‘काल’ किसी को छोड़ता नही है। अब इस देश में पिछले 66 वर्षों में जिन राजनीतिक मूल्यों या मान्यताओं को कांग्रेस ने स्थापित किया है, वे सभी काल चक्र में पिसने लगी हैं, जिनसे कांग्रेस को अपना बचाव करना ही चाहिए।

पी. चिदंबरम् को चाहिए कि वो कांग्रेस की ओर से पाप प्रक्षालन का पुण्य कार्य भी करें। वो देश के सामने कांग्रेस के पापबोध और प्रायिश्चत बोध के रूप में कांग्रेस को उतारें तो कांग्रेस के बिगड़ते स्वास्थ्य में लाभ हो सकता है। पी. चिदंबरम् तनिक देखें, कि देश में उनकी सरकारों के रहते रहते क्या क्या हो गया-

चहिंदी को मरोड़ा गया, चअरबी को उसमें जोड़ा गया। चहिंदुस्तानी की खिचड़ी, पकाकर हंस से उतारकर वीणा पाणि शारदा को मुरगे की पीठ पर खींचकर बिठाये जाने का कुचक्र चल रहा है। चबादशाह दशरथ ‘शहजादा राम’ कहकर वशिष्ठ को मौलवी बताने की तैयारी हो रही है। चदेवी जानकी को ‘वीर’ बेगम कहा जा रहा है। चमहाकवि स्वामी रामचंद्र वीर महाराज की ये पंक्तियां बड़ी मार्मिक हैं। जिनमें अंत में कवि कहता है कि….(यदि सब ऐसा हो गया तो) जब तुलसी से संत यहां कैसे फिर आएंगे?

‘तुलसी’ की पूजा का हमारे यहां विशेष विधान है और तुलसी हमारे सम्मान के भी पात्र हैं। क्योंकि तुलसी में हमारी संस्कृति का पूरा ताना बाना छिपा है। आज ‘तुलसी’ पर हो रहा आक्रमण मानो संस्कृति पर किया जा रहा आक्रमण है। इसलिए लड़ाई एक राजनीतिक दल के राजनीतिक चिंतन या राजनीतिक विचारों से नही है, अपितु देश की संस्कृति पर किये जा रहे हैं आक्रमण का प्रतिरोध करने की है। उस पर राहुल के क्या विचार हैं? क्या उनके द्वारा लाया जा रहा साम्प्रदायिक हिंसा निषेध विधेयक देश की समस्याओं का कोई उपचार है या उन्हें और बढ़ाएगा? इस पर दो दो हाथ यदि मोदी और राहुल में हो जाएं तो बुराई क्या है? मोदी की इस बात में बल है कि कांग्रेस ने ही देश का भूगोल बदला है और उसी ने इतिहास बदला है। नेहरू गांधी परिवार का यशोगान कर देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को उपेक्षा की भट्टी में झोंक दिया है। अंतत: ऐसा क्यों? कांग्रेस से देश उत्तर चाहता है, कांग्रेस या तो उत्तर दे, या फिर पाप और प्रायश्चित बोध करे। यह प्रश्न मोदी का नही अपितु देश का है, देखते हैं कांग्रेस क्या कहती है?

 

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