राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली (संभवत:) में अब भाजपा की सरकारें बन रही हैं। इनमें से छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पूर्व से ही भाजपा सरकारें रही हैं। चारों प्रांतों में जीत भाजपा की या मोदी की नही हुई है, जीत पुन: जनापेक्षाओं की हुई है। हां, जनापेक्षाएं मोदी के माध्यम से भाजपा को जीत दिलाकर सत्ता सिंहासन तक पहुंची है। इस प्रकार ‘आप’ भी केजरीवाल के माध्यम से पूर्णत: सम्मानजनक स्थिति में आ गयी है। जनापेक्षाओं की जीत पर जश्न मनाना लोकतंत्र में वर्जित है, क्योंकि जनता ने आपको अपना मत स्वयं जश्न मनाकर तुम्हारे द्वारा जश्न मनाने के लिए नही दिया है, अपितु उसने गंभीरता का परिचय दिया है और चुपचाप अपना जनादेश दे दिया है। यह मौन क्रांति है, जिसे जनता कई बार इस देश में कर चुकी है, परंतु हमारे नेता उसे जश्न मनाने में खो देते हैं। जश्नों को इतने उत्साह से मनाया जाता है कि मानो हमने किसी शत्रु देश पर ही विजय प्राप्त कर ली हो। जब तक पराजित पक्ष मारे लज्जा के छुप ना जाए, तब तक हमें ‘शांति’ नही मिलती।
शत्रु को पहले दिन से ही चिढ़ाकर अपने लिए असहयोगी बना लेना लोकतंत्र की भावना के प्रतिकूल है। लोकतंत्र की भावना तो ये है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वी को राष्ट्रहित में अपने लिए पहले दिन से अपना सहयोगी बनाने की पहल करें, उसे विपरीत पक्ष (विपक्ष) ना बनाकर विशेष पक्ष बनायें। जो आपके कार्यों में अपना रचनात्मक सहयोग प्रदान करे, इसके लिए आवश्यक है कि जीत के जश्न में ना डूबकर पहले दिन ही विपक्ष के नेता के पास जाकर या पदमुक्त हो रहे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के पास जाकर उससे रचनात्मक सहयोग करने का निवेदन किया जाए। इससे जनता के जनादेश की गरिमा बढ़ेगी और हमें जनता के आदेश का ध्यान रहेगा कि उसने ये क्यों दिया था? गंभीर दायित्व जब मिल रहा हो तो उस समय राम जैसी (सिंहासनारूढ़ होते और वनगमन करते राम, दोनों अवस्थाओं में सम थे ) गंभीरता का प्रदर्शन करना ही उचित होता है। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह का ये कहना कुछ अर्थ रखता है कि मोदी अब अटल की राह पर चल रहे हैं। सचमुच इस देश की जनता सिद्घांतों पर कड़ा लेकिन उदार नेतृत्व ही चाहती है। देश के मुसलमानों को कांग्रेस, सपा और दूसरी धर्मनिरपेक्ष पार्टियां वोट बैंक के रूप में प्रयोग करती रही हैं, उनका मूर्ख बनाया गया है, उनके लिए काम नही किया गया। जो व्यक्ति समान नागरिक संहिता की बात करता है, या धारा 370 को हटाने की मांग करता है, उसे इनके बीच में एक ‘हौवा’ बनाकर पेश किया जाता है कि यदि ये आ गया तो ‘प्रलय’ आ जाएगी, अन्यथा राष्ट्रीय मुसलमान भी नही चाहते कि देश में कहीं भी दोरंगी नीतियां हों। वह वर्तमान के सच को समझते हैं और चौदहवीं शताब्दी की हिंसा को देश की उन्नति के लिए अनुचित मानते हैं। वह यह भी जानते हैं कि देश में साम्प्रदायिक दंगे किस पार्टी ने अधिक कराये हैं, या किस पार्टी के सत्ता में आते ही साम्प्रदायिकता भड़कती है? मुसलमान इस देश की सच्चाई है और जो लोग ये सोचते हैं कि उन्हें समाप्त करके ही देश की उन्नति संभव है वो उन्माद फेेलाकर देश को महाविनाश की ओर तो ले जा सकते हैं, पर विकास के रास्ते पर नही डाल सकते। आवश्यकता राजनीतिक सूझबूझ के माध्यम से सख्ती के साथ राष्ट्रवादी नीतियों को और सिद्घांतों को लागू करने की है, और उनमें जो व्यक्ति अडंगा डाले उससे बिना साम्प्रदायिक भेदभाव के शक्ति से निपटा जाए। किसी भी व्यक्ति या समुदाय को मूल अधिकारों से वंचित नही किया जा सकता। सबको विकास और आत्मोन्नति के समान अवसर दिये जाएं।
देश की जनता जब जब भी जनादेश देती है, तब तब ही उस जनादेश का यही अर्थ होता है। भाजपा को चार प्रदेशों की जनता ने अपना जनादेश भी इसी भावना से दिया है। इसलिए किसी भी पार्टी पर या किसी भी विचार-धारा पर कटाक्ष करने की आवश्यकता नही होनी चाहिए। पूर्ण गंभीरता के साथ जनादेश के पीछे छिपी जनापेक्षा को समझना होगा। मोदी ने एक परिवार के जादू में बंधी कांग्रेस को लोगों के सामने नंगा करने में सफलता प्राप्त की है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी अभी तक अच्छी बातों का श्रेय अपने लिए लूटते रहे हैं जबकि गलतियों को बड़ी सावधानी से डा. मनमोहन सिंह के सिर मढ़ते रहे हैं। परंतु मोदी की चुनावी रणनीति ऐसी रही है कि इस बार सोनिया-राहुल ऐसा नही कर पाएंगे। मोदी ने धीरे से डा. मनमोहन सिंह को नेपथ्य में धकेल दिया और ऐसी चाल चली कि सदा नेपथ्य में रहकर तीर चलाने वाली सोनिया और उनके पुत्र राहुल गांधी को मोदी को घेरने के लिए स्वयं हथियार उठाने पड़ गये। मोदी यही चाहते थे। सोनिया-राहुल के नेपथ्य से उठकर हथियार संभालते ही वे मुख्य भूमिका में आगे आ गये। अत: उनकी योग्यता को परखने का मौका मोदी ने देश को दिया। दिल्ली की जनता ने राहुल के सात मिनट के भाषण को भी नही सुना, जबकि सोनिया अपने भाषण को 12-13 मिनट तक ले आयीं, परंतु जनता ने मुंह फेर लिया। मोदी सफल हो गये। मोदी की इस सफल चुनावी रणनीति का सर्वाधिक लाभ डा. मनमोहन सिंह को मिला है, वह निश्ंिचत है और उन्होंने इन प्रदेशों के चुनाव परिणाम आने से पूर्व ही कह दिया था कि मोदी कांग्रेस के लिए एक गंभीर चुनौती हैं। उन्होंने कांग्रेस शब्द का प्रयोग चाहे भले ही किया हो, पर उनका अभिप्राय कांग्रेस के स्थान पर सोनिया-राहुल से ही है। अब मोदी के लिए 2014 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक अपरिपक्व नेता राहुल गांधी ही मोर्चा संभालेंगे। यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा, क्योंकि जितने बड़े स्तर का महारथी लड़ रहा हो, उससे उसी स्तर का महारथी भिड़े तो अच्छा रहता है। इससे बड़े महारथी के अभिमान में वृद्घि होने का खतरा रहता है, जिसका दुष्परिणाम देश को भुगतना पड़ता है। जैसा कि इंदिरा गांधी या उनसे पहले नेहरूजी के समय में देश ने देखा भी है। सक्षम पक्ष के लिए सक्षम विपक्ष लोकतंत्र की अनिवार्यता है।
अरविंद केजरीवाल सचमुच बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कई बाधाओं को पार कर इतिहास लिखा है। वर्ष 2013 उनके जीवन के लिए मील का पत्थर सिद्घ हो गया है। इतिहास ने उन्हें रूककर देखा है और यह अवसर किसी व्यक्ति के जीवन में बड़े सौभाग्य से ही आता है कि जब उसे इतिहास रूककर देखें। डा. मनमोहन सिंह के लिए इतिहास अपनी स्याही दवात को समेट रहा है, राहुल और उनकी मां सोनिया की गलतियों को समेट रहा है, और मोदी के लिए कुछ लिखना चाह रहा है, तभी केजरीवाल ने इतिहास को अनायास ही अपनीओर देखने के लिए बाध्य कर दिया, वह उनकी बड़ी सफलता है। उन्होंने दिल्ली की जनता को अच्छा विकल्प दिया और दिल्ली में 70 प्रतिशत तक मतदान होने का एक कारण केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का अच्छा विकल्प मिलना भी रहा। जब गंदगी के ढेर में से अच्छी पिन्नियां बीनने के लिए जनता को चुनाव के दिन मतदान करने के लिए केवल इसलिए भेजा जाता है कि जाओ और हमने जो घटिया लोग तुम्हारे सामने उतार दिये हैं, उन्हीं में से बढिय़ा का चुनाव करके लाकर दो, तो जनता मतदान का बहिष्कार करती है। पर जब उसे लगता है कि इस बार घटिया में से बढिय़ाओं का नही अपितु बढिय़ाओं में से घटिया को छोडऩे का विकल्प मिल रहा है तो वह उत्साह से चुनाव में भाग लेती है। मिजोरम सहित पांचों प्रदेशों में जनता ने अप्रत्याशित रूप से मतदान किया। विवेकशील लोगों ने तभी अनुमान लगा लिया था कि जनादेश ऐतिहासिक होगा। अब ऐतिहासिक जनादेश के हम सब साक्षी बन गये हैं। अच्छा हो कि भाजपा इसे विनम्रता से ले और गंभीरता से देश निर्माण के कार्य में लग जाए। दिल्ली में ‘आप’ सचमुच विशेष पक्ष बनकर विपक्ष की भूमिका निभाए और कांग्रेस भविष्य की तैयारियों में जुट जाए। वह अंतर्मन्थन करे कि भूल कहां हुई और उसे कैसे दूर किया जा सकता है? मोदी या केजरीवाल को उसे बेलगाम नही बनने देना है, इसलिए वह संभले और आगे बढ़ें। देश के निर्माण में उसके योगदान की भूमिका अभी भी शेष है। इन तीन से अलग देश की जनता अब किसी की ओर नही देख रही है, इसलिए हम भी यहां तीसरे मोर्चे वालों का कोई उल्लेख नही कर रहे हैं। जनता जनार्दन को नमन है जिसने तीसरे मोर्चे की भ्रूण हत्या ही कर दी है।