सूर्यदेव हमारा आदर्श भौतिक पिता है

_____________________________
हमारा शरीर इस विशाल ब्रह्मांड का ही एक हिस्सा है| इसकी जैविक गतिविधियां प्रत्यक्ष तौर पर अंतरिक्ष जगत से निर्देशित नियंत्रित है….. ऋषियों ने वायु जल पृथ्वी अग्नि आकाश को देवता कहा… देवता का अर्थ भी बड़ा ही सुंदर किया जो दिव्य गुणों( भौतिक रासायनिक) से युक्त तथा देने वाला होता है वह देवता होता है…| देवों को भी दो भागों में वर्गीकृत किया है जड़ देवता व चेतन देवता| सूर्य चंद्रमा पृथ्वी अग्नि वायु जल आकाश नक्षत्र आदि जड़ देवता है| यह बिना रुके थके हमें देते ही रहते हैं हमारी जीवन यात्रा इन्हीं के कारण सफल हो पाती है| चेतन देवता में माता-पिता गुरुजन आचार्य आदि शामिल है… जो हमारा भरण पोषण करते हैं|

इन सभी जड़ चेतन देवताओं का स्वामी निर्माता पालक एक महादेव महाचेतन सत्ता है जिसे ईश्वर कहते हैं| वायु में प्राण तत्व जल में शीतलता तृप्ति अग्नि में तेजस्विता पृथ्वी में गंध पौष्टिकता आकाश में खुलापन उसी ईश्वर के बुद्धि कौशल की देन है… मां बाप गुरु जन भी ईश्वर प्रदत बुद्धि बल सामर्थ्य से ही हमारी रक्षा करते हैं| इसलिए ईश्वर को परमपिता भी कहते हैं पिता शब्द का बहुत सुंदर अर्थ है यह पा रक्षने संस्कृत धातु से सिद्ध होता है अर्थात जो हमारी रक्षा करे वह पिता|

ईश्वर की महिमा का हम बखान नहीं कर सकते उसकी जितनी स्तुति की जाए उतनी कम है| यह वेदों पर आधारित सत्य सनातन वैदिक मान्यता है हमें जन्म देने वाला जैविक पिता ही हमारा पिता नहीं है बहुत से देव वायु जल अग्नि सूर्य चंद्र भी हमारे पिता है क्योंकि पिता वही जो रक्षा करें… यह देव हमारी रक्षा करते हैं इस विशाल ब्रह्मांड में हमारे छोटे से नीले ग्रह पृथ्वी पर हमारे जीने लायक परिस्थिति इन्हीं से निर्मित है | अग्निहोत्र के माध्यम से देवताओं की पूजा हमारे पूर्वज करते थे| वेदों मैं भौतिक सूर्य को पिता की संज्ञा दी गई है…. भौतिक सूर्य हमारे जन्म से लेकर मृत्यु की चौखट तक हमारा पालन सेवा रक्षा करता है……|

प्रात कालीन अग्निहोत्र में चार आहुतियां सूर्यदेव को ही समर्पित की जाती है…. जो इस प्रकार है| यहां इतना उल्लेखनीय है आध्यात्मिक पक्ष में मुख्य तौर पर यह महादेव ईश्वर को समर्पित होती हैं लेकिन लौकिक पक्ष में जड़ सूर्य देव को समर्पित है|

ओम् ज्योतिर्ज्योति: सूर्य: स्वाहा।।१।।

ओम् सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा।।२।।

ओम् ज्योतिः सूर्य: सुर्योज्योतिस्वाहा।।३।।

ओम् सजूर्देवेन सवित्रा सजूरूषसेन्द्रव्यताजुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा।।४।।

यज्ञ की अग्नि में जो भी सामग्री आहुति के रूप में डाली जाती है वह अग्नि देव के माध्यम से सभी देवों को मिल जाता है अग्नि सभी देवों का मुख् है| बहुत से लोगों को शंका होती है सूर्य हमारी रक्षा कैसे करता है उससे हमारा पालन कैसे होता है ?

बचपन से ही हमें जनरल नॉलेज में एक आधा अधूरा वैज्ञानिक सत्य बताया जाता है सूर्य से विटामिन डी मिलती है….. जबकि सत्य यह है सूर्य देव की उपस्थिति में हमारा शरीर व उसके महत्वपूर्ण अंग लीवर किडनी 24 घंटे विटामिन डी बनाते हैं…. हमारी जीवन रक्षा के लिए जरूरी केवल 10 फ़ीसदी विटामिन डी ही हमें भोजन से प्राप्त होती है बाकी की 90 फ़ीसदी के लिए हम सूर्यदेव पर निर्भर है| शरीर में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया से पहले शरीर के लिए विटामिन डी की महत्ता एक प्रकार हम समझ ले| विटामिन डी प्रो हार्मोन है जिसके कारण हमारे शरीर में लाल रक्त कणिकाओं से लेकर हड्डियों की कोशिकाओं का निर्माण होता है…. इसके बगैर शरीर में कैल्शियम मैग्नीशियम अवशोषित नहीं हो सकता| शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का यह विटामिन आधार है मस्तिष्क की तंत्रिका अपना कार्य इसी के कारण अंजाम देती हैं| टीबी दमा फेफड़े स्वसन रोगों का कारण विटामिन डी की कमी ही होता है… यह शरीर का बेहद जरूरी केमिकल मैसेंजर है…… शरीर में इसकी कमी होते ही शरीर तंत्र लड़खड़ा जाता है|

अब इसके बनने पर विचार करते हैं| जब हमारी त्वचा सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आती है तो सूर्य के प्रकाश में मौजूद अल्ट्रावायलेट पराबैंगनी बी विकिरण त्वचा में मौजूद 7D हाइड्रो कोलेस्ट्रॉल को कॉलेकैल्सिफेरॉज मैं बदल देता है| हमारा जिगर अर्थात लीवर इसे 25 हाइड्रोक्सी विटामिन D3 में बदल देता है जिसे कैल्सी डायल कहते हैं… गुर्दों में जाकर यही कैल्सीडायल विटामिन डी के रूप में परिवर्तित हो जाता है… 10 से 30 मिनट का धूप स्नान में शरीर के 24 घंटे की जरूरत के लिए विटामिन डी के निर्माण के लिए कच्चा मटेरियल मिल जाता है…|

प्रात कालीन सूर्य की किरणों में सर्वाधिक आरोग्यता दायक प्रभाव होता है… यही कारण है वैदिक ऋषि यों ने वैदिक संध्या अग्निहोत्र का विधान प्रातः काल की बेला में किया ना कि दोपहर में ,ऐसा ही विधान शाम को किया | सूर्य किरने विटामिन डी ही नहीं बनाती शरीर में पहुंचकर शेरोटीन जैसा रसायन भी बनाती है… मेडिकल साइंस में इसकी गिनती फीलगुड हार्मोन में की जाती है इसी हार्मोन के कारण हमारा अवसाद चिंता तनाव खिन्नता बेचैनी दूर होती है| सूर्य का प्रकाश दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मोटापे ओबेसिटी से ग्रसित लोगों के लिए फैट कटर है| यूरोप अमेरिका वाले उनकी त्वचा का रंग सफेद होने के कारण ठंडी जलवायु में रहने के कारण सूर्य का उतना लाभ नहीं उठा पाते…. उनको तरीका ही मालूम नहीं था…. बहुत मशक्कत के बाद उन्होंने Shadow rule बनाया था जिस समय सूर्य की उपस्थिति में हमारे शरीर की परछाई अधिकतम होती है उस समय सूर्य में पराबैंगनी विकिरण बहुत कम होता है और जब हमारे शरीर की परछाई नहीं बनती उस समय हानिकारक विकिरण अधिक मौजूद होता है इस तथ्य को हमारे पूर्वज भली-भांति हजारों वर्ष पहले से ही जानते थे | ऑस्ट्रेलिया अमेरिका यूरोप वाले प्रातः 11:00 से लेकर दोपहर 3:00 बजे तक सूर्य के संपर्क में आने से बचते हैं| अपने देश में सूर्य देव वर्ष भर मेहरबान होते हैं सूर्य का हानिकारक विकिरण भारत वासियों का अधिक कुछ नहीं बिगाड़ पाता इसका कारण हमारी त्वचा का रंग गेहुआ होना है|

किसी शिशु रोग विशेषज्ञ पूछे आज भी न्यूबॉर्न जॉन्डिस नवजात बच्चे होने वाले पीलिया जो कभी-कभी जानलेवा हो जाता है का मेडिकल साइंस में कोई इलाज नहीं है… उसका केवल एक ही इलाज है बच्चे को सूर्य देव की राशियों में थोड़ी देर लिटा दिया जाए…. पीलिया छूमंतर… बड़े से बड़े डॉक्टर भी यही सलाह देते हैं अथर्व वेद के एक मंत्र में सूर्य किरणों से नवजात बच्चे की पीलिया चिकित्सा का बड़ा ही सुंदर वर्णन है |आज इसे फोटोथेरेपी कहते हैं |सूर्य किरणों के स्नान से जिद्दी चर्म सोरायसिस एग्जिमा विटिलिगो से भी सदा सदा के लिए मुक्ति पाई जा सकती है वेदों में तो इसका अनेक बार उल्लेख है| देवों के देव महादेव परमपिता परमेश्वर सर्वशक्तिमान ईश्वर ने जड़ सूर्य देव को बहुत ही दिव्य गुणों से युक्त बनाया है|

यह तो कुछ ज्ञात गुणधर्म है सूर्य के प्रकाश में ऐसे असंख्य गुण हैं जिन पर आज भी शोध जारी है…. यह समस्त शोध सूर्य किरणों के शरीर पर प्रभाव पर ही आधारित है|

हम मूल में परमात्मा के ही ऋणी हैं क्योंकि वह यदि इन दिव्य देवों कि सृष्टि नहीं करता तो यह हमारा कैसे उपकार पालन करते? यही कारण है परमात्मा उपवास नीय यह सूर्य आदि देव पूजनीय है अर्थात अग्निहोत्री से इन देवों को शुद्धि की जाए इनके नाम से आहुति दी जाए|

जब भी कभी यज्ञ वेदी पर बैठे बड़े ही श्रद्धा विश्वास के साथ बैठे…. आपका मानसिक भाव शुद्ध होना चाहिए हमें जड़ चेतन देवों को अपनी जीवन यात्रा में अतुल्य सहयोगी मानना चाहिए…. क्योंकि हम माने या ना माने यह देव हमारा उपकार करते रहेंगे…. क्योंकि हम नास्तिक नादान ईश्वर की आज्ञा से भले ही अज्ञानता के कारण विमुख हो जाए यह देव उस महादेव की आज्ञा से कभी विमुख नहीं होते अपने कर्तव्य पालन में लगे रहते हैं| आपका काम केवल इतना है यज्ञ में पूरी श्रद्धा से आहुति डालें अग्निदेव पड़ा ही इमानदार द्रुतगामी है सब देवों को उसका भाग पहुंचा देता है|

आर्य सागर खारी✍✍✍

Comment: