चीन का पराभव क्यों आवश्यक है ?

विश्वपटल पर चीन एक आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के रूप में बडी तेजी से उभरा है।परन्तु उसका यह उदय न केवल भारत किन्तु पूरे विश्व की शान्ति के लिये बहुत बडा खतरा है।कहने को तो चीन एक कम्युनिष्ट देश है,परन्तु वहां का साम्यवाद केवल चीन के शासकों की निरंकुश तानाशाही को सुरक्षित रखने का एक माध्यम बन गया है।
चीन के शासक तो बहुत पहले ही साम्यवाद की अर्थी निकाल कर पूंजीवाद को अपना चुके हैं।पर वहां का पूंजीवाद भी बहुत निम्न श्रेणी का है।सभी पूंजीवादी देश व्यवसाय करते हुये नैतिकता के कुछ मापदंड अपनाते हैं और उनका पालन करते हैं।किन्तु चीन ने लाभ कमाने की धुन में नैतिकता के सारे मानदंडों की छुट्टी कर रखी है।

वैसे भी साम्यवादी व्यवस्था के चलते सब कुछ शासन के नियंत्रण में है।न प्रेस है,न विरोधी पार्टियां हैं,कानून एवं व्यवस्थायें भी जटिल हैं,सरकार जो कहती है वही मानना पडता है।ऐसी अपारदर्शी व्यवस्था ही वहां के आर्थिक क्षेत्र को संचालित करती है।इसलिये सब जगह धोखाधडी का बोलबाला है।

विश्व के व्यापार पर एकाधिकार के लिये चीन अपनी आवश्यकता से अधिक लोहा,एल्युमिनियम,कोयला व टिम्बर आदि खरीद कर अपने देश में संग्रहीत कर रहा है।इसका परिणाम यह है कि अधिकांश देशों का स्टील उद्योग ,एल्युमिनियम उद्योग ध्वस्त हो चुका है ।क्योंकि स्टील आदि के मूल्य का निर्धारण मार्केट के द्वारा न
होकर चीन द्वारा हो रहा है।जब तक चीन का खेलअन्य देशों की समझ में आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

विदेशी शेयर मार्केट में भी चीनी कम्पनियां जो प्रायः सरकार से नियंत्रित हैं,कृत्रिम रूप से शेयर के भाव बढा देती हैं।जब विदेशी कम्पनियां या व्यवसायी कम्पनीके झूठे प्रचार प्रसार से प्रभावित होकर बहुत ज्यादा शेयर खरीद लेते हैं,तो अचानक शेयर के भाव गिर जाते हैंऔर विदेशी कम्पनियां या व्यवसायी अपना सब कुछ गंवाकर सडक पर आ जाते हैं।पर यह सब इस तरह से किया जाता है जिससे कि सब सामान्य लगे।जब तक कुछ पता चलता है तब तक बहुत देर होचुकी होती है।

एक और तरीका है वह है currency manipulation का।इसकेअन्तर्गत चीन की मुद्रा विनिमय दर कृत्रिम रूप से घटा बढाकर चीनी सामान के निर्यात को सस्ता रखा जाता है।और चीन इसका बखूबी उपयोग करता है।

विदेशी कम्पनियों के साथ मिलकर चीन ने अपनी जनता के विरुद्ध जो शोषण का खेल खेला हैउसकी अपनी अलग कहानी है।मजदूरों को 16-16 घंटे काम करवाना,महीने में एक छुट्टी देना,मानव अधिकारोंका खुला उल्लंघन चीन में ही संभव है।पर इस आधार अपने सस्ते सामान को विदेशों में डम्प कर वहां के उद्योगों को चौपट करना ,बेरोजगारी बढाना फिर वहां के मार्केट पर कब्जा करना ,ऋण देकर देशों को अपने चंगुल में फंसाना चीन की अपनी नीति का हिस्सा है।

जैसे चीनी लोग सर्वभक्षी होते हैं,सब कुछ खा जाते हैं,किसी प्राणी के प्रति उनमें दयाभाव नहीं होता,उसी प्रकार आर्थिक जगत् में भी वे सब कुछ हडप जाना चाहते हैं।संभवतः उनका जीवनदर्शन ही ऐसा है,वेद की भाषा में कहूं तो वे केवलादी हैं।सब कुछ स्वयं के लिये हो।जब कि हमारा जीवन दर्शन Live and let liveपर भरोसा करता है।

आज पूरा विश्व चीन से त्रस्त है।वैसे तो चीनी वायरस फैलाने में चीन की जो भूमिका रही है उसके लिये उसका बहिष्कार पूर्णतः न्यायोचित है,पर जिस प्रकार की आर्थिक गतिविधियां उसके द्वारा संचालित हैं,उसके लिये तो उसका पराभव बहुत जरूरी है।

आनन्द कुमार IPS(R)
राष्ट्रीय महासचिव,राष्ट्र निर्माण पार्टी

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