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संपादकीय

नेपाल की उद्दंडता पर ध्यान न दे भारत

भारत के लिए नेपाल और नेपाल के लिए भारत अलग नहीं है । माना कि दोनों सम्प्रभुत्व संपन्न स्वतंत्र राष्ट्र हैं । परंतु दोनों की सांस्कृतिक विरासत सांझा है। वैचारिक धरातल पर दोनों एक ही विचारधारा से अनुप्राणित रहे हैं । यही कारण है कि दोनों देशों ने रोटी बेटी का संबंध करने में भी किसी प्रकार की आपत्ति या असहमति व्यक्त नहीं की । युग युगों से यह परंपरा दोनों देशों की सहमति के साथ चली आ रही है । जिस पर दोनों देशों के नागरिक भी अपने आपको अत्यंत सहज अनुभव करते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की ससुराल भी नेपाल में ही स्थित है , इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के सांस्कृतिक संबंध नेपाल से कितने पुराने हैं ?

यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि नेपाल का वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व चीन के संकेतों पर कठपुतली की भांति नाच रहा है और वह अपने बड़े भाई को आंखें दिखाने की स्थिति में आ गया है । निश्चित रूप से इसे मर्यादा हीनता ही कहा जाएगा । वर्तमान में भारत और नेपाल के बीच विवाद का बीजारोपण उस समय हुआ जब कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिये भारत द्वारा लिपुलेख-धाराचूला मार्ग के उद्घाटन करने के बाद नेपाल ने इसे एकपक्षीय गतिविधि बताते हुए आपत्ति जताई। ऐतिहासिक संदर्भ , साक्ष्यों और प्रमाणों की पूर्ण उपेक्षा करते हुए नेपाल के विदेश मंत्रालय ने यह दावा किया कि महाकाली नदी के पूर्व के क्षेत्र पर नेपाल का अधिकार होना चाहिए , जिसे भारतवर्ष में गलत ढंग से अपने कब्जे में ले रखा है। नेपाल ने आधिकारिक रूप से नवीन मानचित्र जारी किया , जिसमे उत्तराखंड के कालापानी , लिंपियाधुरा और लिपुलेख को उसने अपने संप्रभु क्षेत्र का एक भाग मानते हुए दर्शाया। नेपाल से भारत को कभी भी इस प्रकार की हरकत की आशा नहीं थी , परंतु चीन ने जानबूझकर नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री ओली को अपने हाथ का खिलौना बनाया और भारत को आंख दिखाने के लिए उन्हें तैयार कर लिया । ओली ने भी अपना और अपने देश का भला इसी में समझा कि भारत से चाहे संबंध समाप्त हो जाएं , परंतु उनके लिए चीन महत्वपूर्ण है । चीन की इस हरकत पर भारत ने गंभीरता का परिचय देते हुए तात्कालिक आधार पर शांत रहना उचित समझा । जिसे ओली सरकार ने भारत की दुर्बलता समझ कर अपने आप को भारत के प्रति और भी अधिक उच्छृंखल करने का प्रयास किया । अपने इन प्रयासों के अंतर्गत प्रधानमंत्री ओली ने भारत के साथ सांस्कृतिक संबंधों को लगभग तोड़ने के उद्देश्य से यह प्रावधान भी करवा दिया कि यदि कोई नेपाली युवक भारत की किसी युवती से शादी करता है तो उसे 7 वर्ष पश्चात ही नेपाल की नागरिकता प्रदान की जाएगी । प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का भारत विरोध यहीं पर नहीं रुका उन्होंने यहां से भी आगे बढ़कर भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को नेपाल में बोलने पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में भी कदम बढ़ाए। भारत के विरोध में नेपाल के प्रधानमंत्री के द्वारा किए जा रहे यह सारे कार्य ऐसा संकेत और आभास करा रहे थे जैसे कि वह भारत को शत्रु देश मान चुके हैं।

बात यहीं पर नहीं रुकी केपी शर्मा ओली और भी आगे बढ़ गए जब उन्होंने नेपाल में कोरोना वायरस के प्रसार में भी भारत को दोष दे दिया । इससे दोनों देशों के संबंध और भी अधिक तनावपूर्ण हो गए ।
नेपाली प्रधानमंत्री के इस प्रकार के आचरण से सिद्ध हो गया कि उनके सिर पर चीनी जादू बोल रहा है ।जिसके वशीभूत होकर वह दिन प्रतिदिन भारत के प्रति शत्रुता पूर्ण गतिविधियों में आगे बढ़ते जा रहे हैं।
भारत ने पहले दिन से यह समझ लिया कि नेपाल जो कुछ भी कर रहा है उसमें नेपाल की अंतरात्मा की सहमति नहीं है , बल्कि उसके पीछे ‘कोई और’ बैठा है। उस ‘कोई और’ को भारत ने ‘चोर की मां’ समझा और ‘चोर की मां’ का इलाज करने के लिए भारत ने अपनी 3000 किलोमीटर लंबी चीन से लगी सीमा पर अपनी सैनिक गतिविधियां बढ़ा दीं।
चीन जो कि भारत के साथ पहले से ही शत्रुता रखता है और जो इस समय नेपाल को उकसाकर भारत को नेपाल के साथ विवादों में उलझाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए लद्दाख में घुसपैठ करने की योजना बना रहा था , भारत के सुलझे हुए कदमों को देखकर स्वयं आश्चर्यचकित रह गया । वह सोच रहा था कि भारत और नेपाल उलझ गए तो वह आराम से लद्दाख में अपना काम पर जाएगा , पर भारत ने नेपाल के साथ न उलझ कर चीन का इलाज करना आरंभ कर दिया। अब चीन अपने ही बुने जाल में उलझ गया है।
सारा विश्व जानता है कि भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं। यह भी सभी को ज्ञात है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है। वर्ष 1950 की ‘भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है। जिसका उद्देश्य दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के बीच घनिष्ठ रणनीतिक संबंध स्थापित करना है। यह संधि इन दोनों देशों के संबंधों की रीढ़ है । वास्तव में यह कोई ऐसी संधि नहीं है जो किसी युद्ध के पश्चात जन्मी हो बल्कि यह इन दोनों देशों के प्राचीन काल से चले आ रहे संबंधों को पुष्ट करने वाला एक ऐसा दस्तावेज है जिसने दोनों देशों के नागरिकों की आत्मिक लगाव की भावना को अपनी स्वीकृति प्रदान की है और जब दोनों देशों में से कोई भी एक दूसरे के प्रति उदासीनता का प्रदर्शन करता है तो वह इस पवित्र संधि के प्रावधानों को देखकर दूसरे के प्रति फिर से सहज और सरस होने को तैयार हो जाता है।यह संधि नेपाल को भारत से हथियार खरीदने की सुविधा भी देती है।
यदि नेपाल भारत से अलग किसी अन्य देश से इस प्रकार घिरा हुआ होता तो समुद्र के रास्ते के लिए निश्चित ही तरस जाता या बहुत बड़ी कीमत देकर अपने लिए वह सुविधा उपलब्ध कर पाता । परंतु भारत ने अपनी उदारता और बड़प्पन का परिचय देते हुए नेपाल की इस मजबूरी का कभी गलत फायदा उठाने की नहीं सोची । यही कारण है कि सब ओर से धरती से घिरे इस देश को भारत ने ऐसी विशेष सुविधाएं सहज ही उपलब्ध कराईं जो किसी समुद्रवर्ती देश के लिए प्रापनीय होती हैं ।
इस संधि के द्वारा नेपाल को एक भू-आबद्ध देश होने के कारण कई विशेषाधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम बनाया है।

भारत ने नेपाल के लोगों को अपना भाई और आत्मीय जन मानते हुए कभी यह नहीं सोचा कि नेपाल के लोग उसके लिए पराए हैं। यही कारण रहा कि भारत ने नेपाल के लोगों को अपने यहां रोजगार तक करने की खुली छूट दी । दोनों देशों की सीमाओं पर एक भी सुरक्षा चौकी ना हो या एक भी पुलिसकर्मी ना हो या एक भी सैनिक ना हो तो भी एक दूसरे को एक दूसरे से खतरा अनुभव नहीं हुआ। इससे अधिक आत्मीय संबंधों की मिसाल शायद वर्तमान इतिहास में अन्यत्र मिलनी असंभव है।
दोनों देशों के बीच 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी साझा सीमा है, जिससे भारत के पाँच राज्य–सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जुड़े हैं। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत और नेपाल के बीच सीमा को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं है। लगभग 98% प्रतिशत सीमा की पहचान व उसके नक्शे पर सहमति बन चुकी है, कुछ क्षेत्रों को लेकर विवाद है जिसे बातचीत के माध्यम से सुलझाने की प्रक्रिया चल रही है।
भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार होने के साथ-साथ विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत है।
भारत नेपाल को अन्य देशों के साथ व्यापार करने के लिये पारगमन सुविधा भी प्रदान करता है। नेपाल अपने समुद्री व्यापार के लिये कोलकाता बंदरगाह का उपयोग करता है। भारतीय कंपनियाँ नेपाल में विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न हैं। इन कंपनियों की नेपाल में विनिर्माण, बिजली, पर्यटन और सेवा क्षेत्र में उपस्थिति है। भारत सरकार नेपाल में ज़मीनी स्तर पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए समय-समय पर विकास सहायता प्रदान करती है।
इसमें बुनियादी ढाँचे में स्वास्थ्य, जल संसाधन, शिक्षा, ग्रामीण और सामुदायिक विकास जैसे मुद्दे शामिल हैं।
द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत उपकरण और प्रशिक्षण के माध्यम से नेपाल की सेना का आधुनिकीकरण सम्मिलित है। भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट्स में नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों से भी युवाओं की भर्ती की जाती है।भारत वर्ष 2011 से नेपाल के साथ प्रति वर्ष ‘सूर्य किरण’ नाम से संयुक्त सैन्य अभ्यास करता आ रहा है।
नेपाल में अक्सर भूकंप, भू-स्खलन और हिमस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा रहता है। ऐसा मुख्य रूप से भौगोलिक कारकों के कारण होता है क्योंकि नेपाल एक प्राकृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है। भारत आपदा से संबंधित ऐसे किसी भी मामलें में कर्मियों की सहायता के साथ-साथ तकनीकी और मानवीय सहायता भी प्रदान करता रहा है।
इन सारी परिस्थितियों के दृष्टिगत नेपाल की सरकार को कम्युनिस्ट विचारधारा के नाम पर चीन जैसे देश के साथ अपनी निकटता बढ़ाने पर एक बार नहीं 10 बार सोचना चाहिए । चीन का साम्राज्यवाद और विस्तारवाद का चिन्तन इस समय सारे संसार के लिए खतरनाक हो चुका है। चीन एक भस्मासुर के रूप में अपनी छाप बना चुका है। यदि तीसरा विश्व युद्ध होता है तो निश्चित रूप से नेपाल को भी उसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे । बहुत संभव है कि चीन नेपाल को वैसे ही निगल जाए जैसे वह तिब्बत को निगल गया है। कहना नहीं होगा कि तीसरे विश्व युद्ध के लिए केवल और केवल चीन ही जिम्मेदार होगा। मानवता के विनाश की योजनाओं में लगे चीन का समर्थन करके नेपाल जैसा शांति प्रिय देश भारत के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को तिलांजलि देना चाहता है तो निश्चित रूप से वह मानवता के प्रति एक अपराध कर रहा है । जिस पर उसे गंभीर चिंतन करना चाहिए । इसके साथ ही भारत सरकार को भी किसी प्रकार की कठोरता का प्रदर्शन नेपाल के विरुद्ध नहीं करना चाहिए , बल्कि उसे छोटे भाई के रूप में ही गले से लगाने के लिए सहयोग का नहीं बल्कि स्नेह का हाथ उसकी ओर फिर बढ़ाना चाहिए। भाई को रुष्ट करना बहुत घातक होता है । यदि उसके अंदर इस समय उद्दंडता भी दिखाई दे रही है तो भी उसे क्षमा कर के गले से लगाकर चलने में ही लाभ है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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