वैदिक कालीन तालाब व्यवस्था

प्राचीन भारत कि तालाब संरक्षण संवर्धन व्यवस्था का उल्लेख कौटिल्य अर्थात आचार्य चाणक्य के रचित अर्थशास्त्र ग्रंथ में मिलता है | प्रथम अध्याय के अध्यक्ष प्रचार भाग में तालाबों का वर्गीकरण किया गया है..|

मुख्य तौर पर तालाबों को दो वर्गों में बांटा गया है(1) नित्य जल वाले ( 2) अनित्य जल वाले तालाब|

प्रथम श्रेणी के तालाबों में नदी से सदैव जल आता रहता था यह तालाब कभी नहीं सूखते थे | दूसरी श्रेणी के तालाब वर्षा जल से जीवित रहते थे |

तालाब के चारों ओर चार दंड ( 1 दंड= 2 गज) की चौड़ाई का मार्ग रहता था जिसे वणिकपथ बोला जाता था.. तालाब पर अतिक्रमण गंदगी डालने की बात तो छोड़िए इस सुरक्षित मार्ग पर भी कोई अतिक्रमण गंदगी फैलाता था तो उसे तत्काल 12 पण का कठोर आर्थिक दंड दिया जाता था| गांव के तालाब बावरियों को उदक स्थान बोला जाता था इनकी देखरेख के लिए एक व्यक्ति नियुक्त किया जाता था जिसे राजा की ओर से वेतन मिलता था| राजा महाराजा तालाबों पर कमल ककड़ी मखाना आदि की व्यवसायिक खेती कराते थे वेतन पर कर्मचारी नियुक्त किए जाते थे तलाब आमदनी बढ़ाने का बेहतरीन जरिया थे ऐसी व्यवस्थाओं से ही भारतवर्ष सोने की चिड़िया बन पाया |

ऐसी सर्वांग सुंदर व्यवस्था के रहते कोई तालाब पर अतिक्रमण कर सकता है जी नहीं.. लेकिन आज देश के लाखों तालाब लुप्त हो गए हैं अतिक्रमण के कारण हमारे तालाब कूड़ा घर बन गए हैं … राजनीतिक पार्टियां दल विश्व गुरु महाशक्ति भारत बनाने की हवा हवाई बातें करते हैं लेकिन उन व्यवस्थाओं का कोई जिक्र नहीं करता जिनसे यह देश विश्व गुरु व संसार की महाशक्ति बना अतीत के स्वर्णिम काल में|

आर्य सागर खारी ✒✒✒

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