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भारतीय संस्कृति

आचार्य चाणक्य कभी हमें माफ नहीं करेंगे

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दक्षिणी राज्य केरल में 15 वर्षीय मादा हथिनी के साथ जो हुआ पूरे देश को मालूम है संवेदना भर्त्सना शोक विषाद की लहर सोशल मीडिया पर उमड़ पड़ी है|

जिस राज्य में ममता वात्सल्य समृद्धि की देवी गौमाता को काट कर खाया जाता हो ,गोवध को राजकीय संरक्षण प्राप्त हो संवैधानिक अधिकारों के नाम पर ,भोजन की पसंद नापसंद की दलीलें दी जाती हो , वहां हम अपेक्षा कर ही क्या सकते थे?

हाथी भी भारतीय संस्कृति में संपदा समृद्धि का प्रतीक रहे हैं| गज शक्ति के आधार पर ही भारत जगत शिरोमणि सोने की चिड़िया बना था |

गोवंश की तरह हाथी भी हजारों सैकड़ों सालों से भारतवर्ष में पालनीय पूजनीय रहे हैं…..!

आज के भारत में हाथियों को जला दिया जाता है कहीं करंट लगा दिया जाता है कहीं दांत के लिए हाथियों का शिकार कर दिया जाता है लेकिन अतीत के विश्व गुरु भारत में ऐसा नहीं था| जिसकी झलकियां 12वीं शताब्दी तक विद्यमान रही |

यह सब में किसी सांस्कृतिक गर्व में चूर हो कर नहीं कह रहा | इसका ठोस आधार साक्ष्य है आचार्य चाणक्य द्वारा लगभग 2300 पूर्व लिखा गया ग्रंथ अर्थशास्त्र | ग्रंथ के दूसरे अधिकरण में अध्यक्ष प्रचार नाम से आचार्य ने तमाम राजकीय व्यवस्थाओं का प्रबंध किया है|

आचार्य चाणक्य ने देश में हाथियों का प्रबंध करने वाले प्रधान अधिकारी को हस्त्यध्यक्ष कहा | आचार्य ने कहां हाथियों के अध्यक्ष को चाहिए कि वह हाथियों के जंगल की रक्षा करें सिखाए जाने योग्य हथिनी उनके बच्चों के लिए गजशाला बनवाए | विधा =पका कर दिए जाने वाला आहार, यवस = गन्ने टहनी घास फूस आदि हाथियों को दिए जावे |

हाथी अध्यक्ष हाथियों की चिकित्सा करने वाले गजवैद्य, हाथियों को प्रशिक्षण देने वाले अनिकस्थ, गढ़ शास्त्र को जानने वाला आरोहक, संकट काल में हाथी की रक्षा करने वाला हस्तीपक, हाथी को नहलाने वाला औपचारिक, हाथी के आहार को पकाने वाला विधा पाचक, हाथी के पैर को बांधने वाला पादपासक ,गज शाला की रक्षा करने वाला कुटीरक्षक, यह सभी हाथी की परिचर्या करने वाले कर्मचारी होते हैं |

यदि यह अपने कार्य में लापरवाही बरते तो हाथी अध्यक्ष उन पर कठोर दंड लगाएं |

आचार्य कहते हैं गर्मी के मौसम में ही हाथियों को पकड़ना चाहिए| क्योंकि इस ऋतु में गर्मी अधिक होने के कारण हाथी कमजोर हो जाते हैं और बड़ी सुकर्ता से पकड़े जा सकते हैं 20 वर्ष या उससे अधिक आयु का हाथी पकड़ने योग्य होता है ,दूध पीने वाला बच्चा, जिसको दांत देखकर यह हाथी है इस प्रकार पहचाना जाना ना जा सके उसे ना पकडे, बीमार और गर्भिणी तथा दूध चोखानी वाली हथिनीओं को ना पकड़ा जाए ना ही उन्हें उत्पीड़न पहुंचाया जाए, उसे तत्काल आर्थिक शारीरिक दंड मिले |

“संभवत केरला में जो हथनी की दुष्ट मानव की क्रूरता से शिकार होकर दर्दनाक मौत हुई है वह भी गर्मी से व्याकुल होकर मानव बस्ती में आ गई होगी (आचार्य चाणक्य कह रहे हैं गर्मियों में हाथी का बल कम हो जाता है) दुष्ट मनुष्य की दुष्टता का शिकार हो गई”

आचार्य चाणक्य ने फिर हाथियों की शारीरिक विशेषता के विषय में बताया है 7 हाथ ऊंचा ,9हाथ लंबा और 10 हाथ मोटा परिणाम वाला तथा 40 वर्ष की उम्र वाला हाथी सबसे उत्तम होता है| 30 वर्ष की उम्र का हाथी मध्यम होता है और 25 वर्ष की उम्र का अधम समझना चाहिए| इसी के अनुसार उनका आहार व गुणवत्ता निर्धारित की गई है वह हम नहीं लिखेंगे इससे लेख विस्तृत हो जाएगा|

इसी अध्याय में आचार्य ने युद्ध तथा माल ढुलाई में काम आने वाले हाथियों के स्वभाव चाल के आधार पर उनका वर्गीकरण किया है जो बहुत ही वैज्ञानिक है एक जंतु व्यवहार शास्त्री अपना यदि पूरा जीवन भी हाथियों के स्वभाव पर लगावे हाथियों पर अध्ययन में तो वह इतना नहीं लिख सकता जितना आचार्य ने अपने इस अध्याय में लिख दिया है एक हाथी के विषय में|

हाथियों डाले जाने वाले मोटे रस्सों परिधान अंकुश का भी वर्गीकरण आचार्य ने किया है|
कार्य भेद से हाथियों का चार प्रकार में वर्गीकरण किया है|दम्य अर्थात शिक्षा देने योग्य हाथी, सन्नाहा= युद्ध में काम आने वाला, अपवाह= सवारी का, व्याल =घातक वृत्ति वाला (ऐसे हाथी राजे महाराजे अपने बेड़े में रखते थे शत्रु सेना पर छोड़ देते थे हारी हुई बाजी जीत लेते थे) अरब वालों ने यह विश्व गुरु भारत से ही सीखा|
फिर आचार्य ने दम्य में अर्थात प्रशिक्षण देने योग्य शिक्षा देने वाले हाथियों का वर्गीकरण किया|

इस वर्ग में पहला हाथी स्कंधगत जो अपने कंधे पर किसी मनुष्य को चढ़ा सके बिना उपद्रव किए | स्तंभगत जो हाथी खूंटी पर बंधना सहन ना कर सके, वारीगत जो सरलता से हाथ आ जाए, अबपातगत जो घास फूस के खंडों में पकड़ में आ जाए, यूथगत जो मादा हाथियों के साथ विहार करने के व्यसनी होते हैं वह मादा हाथियों के झुंड में रहते हैं इसलिए उन्हें पकड़ना भी आसान होता है|

ऐसा ही बना युद्ध में काम आने वाले हाथियों के विषय में आचार्य ने किया है हम यहां यदि उसे स्थान दे तो पोस्ट अधिक विस्तृत हो जाएगी | हाथियों की स्वस्थ की रक्षा की जाए जो हाथी परिश्रम न करता हो उसे परिश्रम कराया जाए चाहे पालतू हो या जंगली हाथी मूल से थे जंगली प्राणी है उसे ऐसी श्रेष्ठ व्यवस्था से पालतू बनाया जाता था | हाथियों के लिए सुरक्षित आहार क्षेत्र छोड़े जाते थे जिन्हें गज क्षेत्र कहा जाता था वहां आम व्यक्ति तो क्या राजा महाराजा भी पड़ाव नहीं डाल सकता था|
इससे यह सिद्ध हो रहा है प्राचीन भारत में जंगल में जैव विविधता का संरक्षण कठोरता से लागू किया जाता था|

अब जरा आज की व्यवस्थाओं की तुलना करने जिसे न्यू इंडिया कहते हैं| पूर्वोत्तर असम केरल पश्चिमी घाटों में गिनती के 20 से 30 हजार हाथी ही शेष बचे हैं… प्राचीन काल से ही आसान जिसे महाभारत में प्रागज्योतिष पुर कहा गया है वहां के हाथी बहुत उत्तम माने जाते थे|

भारत भूमि हाथियों की आदि जननी है| हाथी केवल दक्षिण एशिया अफ्रीका में ही पाया जाता है उसमें भी भारतीय हाथी उत्तम माने गए हैं लेकिन आज भारतीय हाथियों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है केरला की यह घटना जो मादा 15 वर्ष की हथिनी के साथ हुई है हमने देखा 15 वर्ष की हथिनी अल्प आयु की किशोरी ही मानी जाएगी क्योंकि आचार्य 40 वर्ष की आयु के हाथी को उम्र के अनुसार उत्तम मान रहे हैं हाथी की औसत उम्र 80 से लेकर 90 वर्ष तक होती है |

आज भारत सहित दुनिया में प्रत्येक वर्ष सालाना सैकड़ों हाथियों का हाथी दांत के लिए शिकार कर दिया जाता है, हाथियों से दांत प्राचीन काल में भी प्राप्त किए जाते थे लेकिन उन्हें बिना पीड़ा पहुंचाई बहुत से अस्त्र-शस्त्र आभूषण बनाए जाते हाथी दांत से, चाणक्य ने भी उसकी व्यवस्था दी है समझिए उसे अध्यक्ष प्रचार के हस्ती अध्यक्ष प्रकरण में आखरी 27 वे श्लोक में आचार्य कह रहे हैं|

दन्तमूलपरीणाहदिगुणं प्रोज्झय कल्पयेत् |

हाथी दांत की जड़ में जितनी मोटाई हो उससे दुगना दांत का हिस्सा छोड़कर बाकी अगले हिस्से को काट लिया जाए |इसे काटने का समय इस प्रकार समझाना चाहिए जो हाथी नदीचर हो मैदानों में नदियों के किनारे रहने वाले उनके दांत ढाई साल के बाद काटे जाने और जो हाथी पर्वतों में रहने वाले हैं उनके दांत 5 साल के बाद काटे जावे |

उपरोक्त इस लेख को आपने पढ़ लिया होगा समझ भी लिया होगा क्या आज हमारे वन विभाग के कर्मचारी इतने प्रशिक्षित हैं? जितने प्रशिक्षित लगभग 23 00वर्ष पूर्व विश्व गुरु भारत में थे | क्या आज हाथियों के साथ होने वाली क्रूरता अपराधों में सजा मिलती है? हाथियों को न्याय मिलता है| क्या हाथी हमारे जंगलों में फल-फूल रहा है हमारे पास कोई ठोस तंत्र है सिवाय कागजी मंत्रालय नोटिफिकेशन के |

दुनिया के अन्य देशों के लिए अंधकार काल से लेकर प्रकाश के युग की यात्रा होगी लेकिन भारत के लिए यह यात्रा ठीक विपरीत है स्वर्णिम ज्ञान के युग से अंधकार के युग की यात्रा आज भी जारी है |

मैं अनुरोध करना चाहूंगा उन मूर्ख विधर्मी सेकुलर पंथी से घोषित बुद्धिजीवियों से से जो आज के न्यू इंडिया की दुरावस्था के लिए प्राचीन विश्व गुरु भारत से उसकी तुलना कर विश्व गुरु के सपने का मजाक उड़ाते हैं…|

ईश्वर की वाणी वेद की तो हम चर्चा ही नहीं करेंगे कौटिल्य अर्थशास्त्र जैसे अनेकों ग्रंथ आज भी मौजूद हैं जो दस्तावेज ठोस साक्ष्य documental scientific evidence हैं कि अतीत का भारत विश्व गुरु ही नहीं विश्व विजेता और विश्व शासक भी था |

केरल सहित उन राज्यों की सरकारों को तत्काल ऐसी व्यवस्था अपने राज्य में करनी चाहिए हाथी सहित जैव विविधता को बचाने के लिए |

केरल कांड में दोषियों को कानूनों को संशोधित करते हुए कठोर सजा मिले |

हमारा यह लेख ही केरल में मारी गई अभागी मादा हथनी के लिए शोक अंजलि श्रद्धांजलि है |

आर्य सागर खारी✍✍✍

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