विश्व धरोहर सूची में है शामिल, बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला का बेजोड़ नमूना

प्रकृति चौधरी

बृहदेश्वर मंदिर इतना विशाल है कि तंजोर के किसी भी कोने से इसको आसानी से देखा जा सकता है, सबसे ज्यादा इस मंदिर के तेरह मंज़िले भवन सबको ही अपनी ओर आकर्षित करता है। हिन्दू अधि-स्थापनाओं में मंदिर की संख्या सम होती है मगर यहां ऐसा नही है।

भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में एक “बृहदेश्वर मंदिर” जो भगवान शिव को समर्पित है तमिलनाडु के तंजोर जिले में स्थित यह मंदिर हिन्दू परंपरा को समर्पित है तमिलनाडु में होने के नाते इस मंदिर को तमिल भाषा में ‘बृहदीश्वर’ नाम से इस मंदिर की पहचान है, अगर बात की जाए दूसरी भाषाओं की तो इसे राज-राजेश्वर, राजेश्वरम नाम से भी काफी लोग जानते हैं।

UNESCO “वर्ल्ड हेरिटेज साइट” के “द ग्रेट लिविंग चोला टेम्पल” में यह मंदिर विश्व के प्रमुख ग्रेनाइट मंदिरों में से एक है यानि कि विश्व के तीन सबसे बड़े मंदिर में से एक मंदिर ये भी है बाकी के 2 मंदिर गंगईकोंडा चोलपुरम और ऐरावटेश्वर मंदिर है बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं सदी में “राजराज चोला प्रथम” के द्वारा किया गया था।

बृहदेश्वर मंदिर से जुड़ी मुख्य जानकारी

– भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर ग्यारहवीं सदी में बनना शुरू हुआ तथा पांच वर्ष के भीतर ही (1004 ई-1009 ई) के दौरान ही यह तैयार हो गया था। राजराज प्रथम शिव के परम भक्त थे इसी कारण उन्होंने अनेकों शिव मंदिर का निर्माण किया, किन्तु यह मंदिर अपने साम्राज्य को ईश्वर का आशीर्वाद दिलवाने के लिए “राजराज चोला” ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।

– यह विशाल मंदिर अपने समय मे विशालतम संरचनाओं का महत्व रखने वाला है। इस मंदिर में भगवान के गण सवारी नंदी की भी बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई, चोल शासकों ने इस मंदिर राजराजेश्वर (अपने नाम से जुड़ा) नाम दिया था परंतु इस मंदिर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने बृहदेश्वर मंदिर के नाम से संबोधित किया।

– बृहदेश्वर मंदिर इतना विशाल है कि तंजोर के किसी भी कोने से इसको आसानी से देखा जा सकता है, सबसे ज्यादा इस मंदिर के तेरह मंज़िलें भवन सबको ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। हिन्दू अधि-स्थापनाओं में मंदिर की संख्या सम होती है मगर यहां ऐसा नहीं है।

– बृहदेश्वर मंदिर में कला-कृतियां भी अपनी ओर लुभाती हैं इसके सुंदर नक्काशी अक्षरों द्वारा लिखे गये शिला लेखों की श्रृंखला आकर्षक का केंद्र भी है। इस कला की मुख्य विशेषता यह है कि इसके गुम्बद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती, इसके शिखर पर स्वर्णकलश भी स्थित है। इस मंदिर के लेखों के अनुसार मुख्य वास्तुविंड “कुंजन मल्लन राजराज पेरूथचन” थे इनके घर के सदस्य आज भी वास्तुशास्त्र, आर्किटेक्चर का काम करते है।

– बृहदेश्वर मंदिर में नियमित रूप से जलने वाले दियों के घी की पूरी आपूर्ति के लिए सम्राट राजराज ने मंदिर में 4000 गायें, 7000 बकरियां, 30 भैंसे व 2500 एकड़ जमीन दान की। यह मंदिर इतना विशाल है कि नियमित रूप से यहां कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या 192 है।

– इस मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया, पत्थरों के बड़े-बड़े खण्ड का इस्तेमाल हुआ, मगर इतनी भारी संख्या में यह ग्रेनाइट आया कहां से, यह आज तक रहस्य ही है। यह मंदिर 240.90 मीटर लंबा (पूर्व-पश्चिम) और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर-दक्षिण) है मंदिर के विशाल गुम्बद का आकार अष्टभुजा वाला है इसको ग्रेनाइट के एक शिला खण्ड में रखा गया है इसका घेरा 7.8 मीटर और वजन 80 टन है।

– मंदिर के अंदर की ओर कला, जिसमे दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कलांतक, नंदेश, अर्धनारीश्वर रूप में शिव की आकर्षित कला कृतियां दर्शायी गई है। मंदिर के चबूतरे पर 6 मीटर लंबी व 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर लंबी नंदी की प्रतिमा बनाई गई है।

– रिजर्व बैंक ने 1 अप्रैल 1954 में एक हज़ार के नोट जारी किए थे इस नोट पर बृहदेश्वर मंदिर की भव्य तस्वीर छापी गई थी। इस मंदिर के एक हज़ार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में “आयोजित मिलेनियम उत्सव” के दौरान एक हज़ार के नोट का स्मारक सिक्का भारत सरकार ने जारी किया।

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