नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी कांग्रेस के लिए फिर तारण हार सिद्घ हुए हैं। उन्होंने पाकिस्तानी आतंकी आमिर कसाब की दया याचिका खारिज कर उसे फांसी पर चढ़ाने के लिए जितनी जल्दी दिखाई है उतना ही भ्रष्टाचार की दल दल में फंसी कांग्रेस को राहत मिली है। कांग्रेस के पास इस समय प्रणव मुखर्जी जैसा सुलझा हुआ कोई राजनेता नही है। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद इस बात की कमी सोनिया गांधी समेत पूरी कांग्रेस को बुरी तरह खल रही थी। अब राष्ट्रपति ने कांग्रेस को इतनी सावधानी से ऊर्जा दी है कि उनकी समझदारी का कोई जवाब नही है। इससे राष्ट्रपति प्रणव दा का सम्मान बढ़ा है।
प्रणव दा की समझदारी से भाजपा और भी असमंजस में फंस गयी है, इस पार्टी को मुद्दाविहीन करना कांग्रेस का लक्ष्य है, जिससे 2014 के चुनाव को आराम से जीता जा सके। आमिर कसाब को फांसी लगने के बाद भाजपा सक्ते में है, सचमुच उसके हाथ से एक मुद्दा छिन गया है।
कांग्रेस करेगी चुनाव बाद पीएम की घोषणा
भाजपा के मोदी से कांग्रेस भयग्रस्त है। यदि मोदी निर्विवाद रूप से भाजपा के अगले पीएम घोषित किये जाते हैं तो कांग्रेस की सारी योजनाओं पर पानी फिर सकता है। इसलिए कांग्रेस ने ऐलान किया है कि वह अगला चुनाव बिना पीएम की घोषणा किये लड़ेगी, पार्टी का मानना है कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही अगले पीएम की घोषणा की जाएगी। बात साफ है कि भाजपा के मोदी के सामने राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करना कांग्रेस अपने लिए संकटों को न्यौता देने के समान मानती है। भाजपा के मोदी से कांग्रेस के राहुल गांधी मैदानी टक्कर नहीं ले पाएंगे और यदि कांग्रेस इसके बाद भी चुनाव हार गयी तो पार्टी का टूटना संभव है, इसलिए संभावित टूटन से बचने के लिए कांग्रेस सावधानी से अपनी चाल चलना बेहतर मानती है।
….तब हो सकता है मुस्लिम पीएम
यदि कांग्रेस चुनाव में 150 सीट तक ले आती है तो कांग्रेस की योजना भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए तथा सपा को परेशानी में डालने के लिए और कम्युनिस्ट पार्टियों को खुश करने के लिए किसी मुस्लिम को भी देश का पीएम बना सकती है। यह योजना बहुत टेढ़ी नही है, खासतौर से तब जबकि भाजपा बहुत एकजुट नही है और उसकी चुनावी तैयारियां उसकी भीतरी गुटबाजी और अंर्तद्वंद्वों से प्रभावित हो रही हंै। सपा के मुलायम सिंह यादव इस बार पीएम बनने के लिए पूरा दम-खम ठोक रहे हैं, उन्हें मालूम है कि इस बार नही तो फिर कभी वह पीएम नही बन पाएंगे।
सपा मुखिया की इस योजना को धत्ता तभी लग सकता है जब कोई मुस्लिम प्रत्याशी पीएम के लिए कांग्रेस मैदान में उतारे और उसे कांग्रेस चुनाव पूर्व नही उतार सकती, क्योंकि यदि कांग्रेस ने ऐसी गलती की तो उसका लाभ भाजपा को मिल सकता है, तब हिंदू मतों का धु्रवीकरण तेजी से मोदी के पक्ष में हो जाएगा।
मोंटी के लिए पैसा काम नही आया
कहते हैं कि कफन में जेब नही होती। यह बात मोंटी चड्ढा और उसके भाई की मौत के समय देखने में आई। दौलत का बहुत बड़ा खजाना दोनों भाईयों के पास था। कमी थी तो प्यार की थी, विश्वास की थी और त्याग की थी। इन तीनों चीजों की कमी के कारण अपने जीवन का मजा इन दोनों भाईयों को सजा सा लगने लगा।
सारे ऐश्वर्य इनके पास थे। लेकिन भीतरी ऐश्वर्य इनके पास नही था, बस उसी के कारण इतनी बड़ी शानोशौकत की जिंदगी फीकी-फीकी और नीके विश्वासपात्रों ने गद्दारी करते हुए उनके जीवन का अंत कर दिया। क्या हम दुनिया वाले इन मौतों से कुछ सीख सकते हैं?
सीबीआई चीफ की नियुक्ति पर बवाल
रंजीत सिन्हा को सीबीआई का नया निदेशक बनाने के फैसले को लेकर विवाद पैदा हो गया है। भाजपा ने मांग की है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह फेेसले को रोक दें।
भाजपा की दलील है कि लोकपाल पर राज्यसभा की प्रबर समिति ने सिफारिश की है कि इस तरह की नियुक्तियां कालेजियम के जरिये हो सरकारी सूत्रों का मानना है कि यदि 30 नवंबर तक लोकपाल बिल पास हो जाता है तो सरकार रंजीत कुमार की नियुक्ति पर किनारा कर सकती है। हालांकि सरकार का कहना है कि 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी का चुनाव निष्पक्ष ढंग से किया गया है और नियम प्रक्रिया पूरी तरह अपनाई गयी है। प्रधानमंत्री को किसी एक नाम पर फैसले का अधिकार है। प्रधानमंत्री ने भाजपा के अरूण जेटली को लिखे एक पत्र में सिन्हा की नियुक्ति को रोके रखने की मांग खारिज कर दी है।
ममता बनर्जी का है विश्वास प्रस्ताव खारिज
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस द्वारा मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। जिसे विपक्ष का अविश्वास मिलने के कारण पार्टी पारित नही करा पाई। इससे कांग्रेस की मनमोहन सरकार को नई ऊर्जा मिल गयी है। वैसे देखा जाए तो मनमोहन सरकार अब पूरी तरह बेफिक्र है, उसे ऊपर वाले की विशेष कृपा मिल रही है, और उसी का परिणाम है कि भाजपा तृणमूल से अपनी दूरियों को खत्म कर समय के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव पर तृणमूल का साथ देने के लिए खड़ी नही हुई। इसी प्रकार मनमोहन सिंह के लिए इस समय 2014 तक शासन करना भी दैवयोग से संभव हो गया है। अब वह स्वयं को निष्कंटक मान रहे हैं, क्योंकि अगले चुनावों में पार्टी की संभावित हार का ठीकरा अपने सिर फुड़वाने के लिए कोई भी कांग्रेसी मनमोहन की जगह बलि का बकरा बनने को तैयार नही है। इस स्थिति को मनमोहन सिंह समझ रहे हैं और अब वह सोनिया के निर्देशों का अधिक इंतजार नही कर रहे हैं, बल्कि कई बिंदुओं पर स्वयं निर्णय ले चुके हैं। सोनिया गांधी भी सच को समझ रही हैं। लेकिन वक्त की नजाकत को देखकर वह भी चुप रहना ही बेहतर समझती हैं।
नामधारी को मिल रही हैं सुर्खियां
चड्ढा बंधुओं की हत्या में पुलिस के शिकंजे में कसे सुखदेव सिंह नामधारी को इस समय अच्छी सुर्खियां मिल रही हैं।
यह व्यक्ति चड्ढा बंधुओं के संपर्क में पिछले चार साल में आया और नजदीकियां बढ़ाता गया। आम लोगों में भी चर्चा है कि जब चड्ढा बंधुओं पर गोलियां चल रही थीं तो इस व्यक्ति को कोई गोली क्यों नही लगी? साथ ही एक दूसरे के सुरक्षा गार्ड जब गोलियों की बौछार कर रहे थे तो सुरक्षा गाडो्र्र ने आपस में गोलियां क्यों नही चलाईं, और एक दूसरे की जान क्यों नही ली? दूसरे यह भी कि चड्ढा बंधुओं की हत्या होते ही खेल पूरा क्यों मान लिया गया? तीसरे यह भी है कि चड्ढा बंधुओं को परिवार चुप क्यों है और सारे मातम को पूरा परिवार एक साथ मिलकर क्यों मना रहा है? उनकी चुप्पी में कोई राज है, जो धीरे धीरे खुलेगा। कुछ भी हो चड्ढा बंधुओं की हत्या के बाद नामधारी का नाम उसके काले कारनामों के कारण सुर्खियों में आ रहा है। देखते हैं कि क्या परिणाम आते हैं?
नीरा यादव को तीन साल की कैद
नोएडा में अपनी नियुक्ति के समय अपना जमकर रूतवा दिखाने वाली उत्तर प्रदेश की पूर्व सचिव नीरा यादव और भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी राजीव कुमार को नोएडा भूमि आवंटन घोटाले में केन्द्रीय जांच व्यूरो की विशेष अदालत ने तीन-तीन साल की सजा और एक एक लाख रूपये की जुर्माने की सजा सुनाई है। ऐसे मगरमच्छों पर जब न्यायालय अपना फेेसला सुनाते हैं तो आम आदमी को बड़ी राहत मिलती है, क्योंकि सामान्यत: माना जा रहा है कि बड़ी मछलियों पर हाथ डालना मुमकिन नही है, लेकिन सत्ताधीश, धनाधीश और धराधीश कानून के शिकंजे में कसे जाते हैं तो लोगों को बड़ा सुकून देता है । नीरा यादव ने नोएडा में रहते हुए जो कुछ किया उससे लोगों में उनके प्रति घृणा पैदा हुई, अब न्यायालय ने अपना निर्णय देकर लोगों को खुशियों की सौगात पेश की है।
विधायक निधि में बरती जाएगी पारदर्शिता
देश में हमारे जनप्रतिनिधि धनप्रतिनिधि बनकर विधायक निधि को आराम से अपने-अपने लोगों में बांटते रहे हैं।
देश के खजाने से निकले इस पैसे को हमारे जनप्रतिनिधि बड़ी होशियारी से अपने ऊपर या अपने निकट के लोगों के ऊपर खर्च करने की तिकड़म लगाते रहते हैं। अब इस पर उत्तर प्रदेश राज्यमंत्री परिषद ने निर्णय लिया है कि कोई भी विधायक उस संस्था को अपनी निधि से अब धनराशि नही दे सकेगा, जिसमें वह स्वयं या उसका कोई परिजन पदाधिकारी होगा। विधायक अब अपनी क्षेत्रविकास निधि से 25 लाख रूपये तक की धनराशि दुर्घटना, अग्निकांड और असाध्य रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को चिकित्सा के लिए भी दे सकेंगे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस प्रकार का निर्णय लिया गया।
प्रदेश की अखिलेश सरकार का यह निर्णय निश्चय ही जनहित में लिया गया निर्णय माना जा सकता है। लेकिन फिर भी अभी इस दिशा में और कुछ सोचने और ठोस निर्णय लेने की आवश्यकता है, क्योंकि एक मछली ही सारे तालाब को गंदा कर देती है। इसलिए एक मछली की गंदगी को रोकने के लिए पूरे तालाब को साफ करना आवश्यक है।
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