निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमातियों के संपर्क में रहे उत्तर प्रदेश के 38000 लोगों की तलाश में पुलिस

    दिनांक 30-अप्रैल-2020
अजय मित्तल 
दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से तब्लीगी जमात ने कोरोना फैलाने में जो भूमिका निभाई है, वह छोटी-मोटी नहीं है। उसका ताल्लुक हजारों लोगों से बन रहा है। केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश पुलिस के एसटीएफ को इस काम में जुटा दिया है। उसने निजामुद्दीन के तमाम मोबाइल टॉवरों का 27 मार्च का बीटीएस (बेस ट्रांसरिसीवर स्टेशन) डाटा उठाया। इसमें 3 लाख से ज्यादा नम्बर निकले। उनकी आईडी निकाली गयी तो उत्तर प्रदेश के 38 हजार से ज्यादा लोगों के नाम सामने आये।
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दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से तब्लीगी जमात ने कोरोना फैलाने में जो भूमिका निभाई है, वह छोटी-मोटी नहीं है। उसका ताल्लुक हजारों लोगों से बन रहा है। केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश पुलिस के एसटीएफ को इस काम में जुटा दिया है। उसने निजामुद्दीन के तमाम मोबाइल टॉवरों का 27 मार्च का बीटीएस (बेस ट्रांसरिसीवर स्टेशन) डाटा उठाया।
इसमें 3 लाख से ज्यादा नम्बर निकले। उनकी आईडी निकाली गयी तो उत्तर प्रदेश के 38 हजार से ज्यादा लोगों के नाम सामने आये। इनमे सर्वाधिक 14,342 व्यक्ति मेरठ जोन के 8 जिलों (मेरठ, बागपत, सहारनपुर, मुज़फ्फरनगर, हापुड़, बुलंदशहर, गाजियाबाद और शामली) के पाए गए।
पुलिस ने उनकी दिन-रात तलाश करके 10,810 जमातियों अथवा उनके संपर्क में रहे लोगों को ढूंढ निकालकर उन्हें पृथक-वास (आइसोलेशन) में भेज दिया है। मेरठ जोन के एडीजी प्रशांत कुमार के अनुसार सभी जनपदों में बाकी बचे जमातियों की तलाश निरंतर जारी है। जब तक सभी पकड़े नहीं जायेंगे, कोरोना के विस्तार को थामा नहीं जा सकेगा।
मेरठ ज़ोन के बाहर करीब 24 हजार जमाती—संपर्कित व्यक्ति हैं। उन्हें वहां की जनपद पुलिस लगातार पकड़ने के प्रयास में है। इस विराट अभियान में राज्य पुलिस का परिश्रम प्रशंसनीय है।
यह दुनिया के सर्वाधिक चर्चित पुलिस बलों-स्कॉटलैंड यार्ड एवं एफबीआई की सी तत्परता प्रदर्शित कर रहा है। यह काम बच्चो का खेल नहीं है। इसमें जान का खतरा- गोलीबारी, चाकूबाजी या पत्थरबाजी का मुकाबला अथवा कोरोना की चपेट में ही आ जाने की सम्भावना बनी रहती है। पूर्व में एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी इस काम में बलिदान भी चुके हैं। इसके बावजूद उनका मनोबल उच्च स्तर का बना हुआ है। प्रशांत कुमार ने अपने साथियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
इस बहुत बड़े काम को तभी अंजाम तक और वह भी कम से कम समय में, पहुंचाया जा सकता है, जब समाज का सहयोग भी मिलता चले। अपने पड़ोस में हो रही गतिविधि या वार्तालापों के आधार पर यदि कुछ सुराग कहीं भी प्राप्त होता है, उसे अविलम्ब पुलिस को दिया जाना चाहिए।
यकीनन समय सबसे मूल्यवान वस्तु है इस अभियान की। यदि इन लोगों को पकड़ने में देरी हुई तो वे और अधिक लोगों को संक्रमित कर देंगे। इसलिए इस चैन को तोड़ने के लिए इन्हें पकड़ा समय की जरूरत है।

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