पुनःसूर्यउदय हुआ भारतीय परंपरा का समस्त विश्व में

अवधेश कुमार सिंह

मानव इतिहास में पहली सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में पूरा विश्व इस समय कोरोना के प्रकोप का सामना कर रहा है। आमतौर पर जब भी कोई प्राकृतिक संकट आता है तो कुछ देशों अथवा राज्यों तक ही सीमित रहता है लेकिन इस बार का संकट ऐसा है, जिसने विश्वभर की पूरी मानव जाति को संकट में डाल दिया है। सबसे पहले चीन में कोरोना ने मचाई तबाही उसके बाद कोरोना के कोहराम से दुनिया भर में हाहाकार मचा रहा है। कोरोना वायरस से इटली में जहां मौत से मातम पसरा है। वही स्पेन, फ़्रांस और ब्रिटेन में कोरोना का तांडव बदस्तूर जारी है। आलम ये है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है। वहीं, कोरोना की चपेट में आकर मरने वालों की तादाद में भी काफी इजाफा हो रहा है। भारत भी कोरोना के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं है, लेकिन देशवासियों का सौभाग्य है कि नरेंद्र मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं। वे इस संकट से लड़ने में वैश्विक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध हुए हैं। कोरोना को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रणनीतियों को पूरी दुनिया ने सराहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी भारत सरकार के इन प्रयासों की तारीफ किए बिना नहीं रह सका। विश्व स्वास्थ्य संगठन के भारत के प्रतिनिधि हेंक बेकडम ने कहा है कि “कोरोना के खिलाफ भारत सरकार के प्रयास काफी प्रभावशाली हैं।” कुछ अन्य वैश्विक हस्तियों ने भी कहा है कि भारत ने कोरोना से लड़ने के लिए बेहतरीन कार्य किया है और इसके खिलाफ साहसिक तथा निर्णायक कदम उठा रहा है।

एक ब्रिटिश पत्रकार ने तो यहां तक कहा है कि कोरोना से निपटने के लिए भारत के प्रधानमंत्री की समझ अच्छी है जबकि ब्रिटिश सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया। कोरोना वायरस संकट जहां एक तरफ वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को तबाह कर रही है वहीं दूसरी तरफ यह हमारी इंसानियत का इम्तिहान भी ले रहा है। वायरस विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस पूरी दुनिया में हर स्तर पर बड़े बदलावों का कारण बनेगा। कोरोना का प्रभाव केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं हैं। बल्कि इसका प्रभाव सामाजिक, सांस्कृतिक , मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक और सबसे अधिक आर्थिक होगा। कोरोना संक्रमण के कारण दुनिया भर में लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर भी काफी असर पड़ा है। हालत ये है कि लोगों ने मिलने-जुलने का तरीका तक बदल लिया है ताकि संक्रमण से बचे रहें। बड़ी तादाद में पेशेवर लोग दफ्तर जाने के बजाय घर से ही काम करने को तरजीह दे रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आनेवाले दिनों में ये वायरस खानपान, काम करने के तरीकों, कारोबार के माध्यमों, यात्रा के तौर तरीकों, घरों के डिजाइन, सुरक्षा का स्तर और निगरानी समेत पूरी दुनिया को ज्यादातर मामलों में स्थायी तौर पर बदल कर रख देगा। कोरोना वायरस के संदर्भ में भारत के सॉफ्ट पावर का लोहा दुनिया अन्य रूपों में भी महसूस करने लगी है। कोरोना से बचाव के लिए लोग अभिवादन करते समय हाथ मिलाने या गले मिलने के पश्चिमी तौर- तरीकों के बजाय हमारे नमस्ते को तरजीह दे रहे हैं।

पुनः आरम्भ हुआ भारतीय परंपरा

नमस्कार दुनियाभर में लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिलाने से बच रहे हैं और भारतीय परंपरा में दूर से नमस्कार करने की परंपरा को अपना रहे हैं ताकि संक्रमण से बचा जा सके। इजराइल के प्रधानमंत्री समेत दुनियाभर के तमाम नेताओं ने नमस्कार करने की भारतीय परंपरा को अपनाने की नसीहत दी है। बता दें कि हमारी भारतीय संस्कृति में किसी भी बड़े या आदरणीय व्यक्ति से मिलने पर दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार या प्रणाम करने की परंपरा है। हालांकि बहुत से भारतीयों का मॉर्डन/ विदेशी कल्चर के प्रति झुकाव हुआ है यही वजह है कि कुछ लोग नमस्कार की बजाय हाथ मिलाने और गले मिलने में ज्यादा यकीन करने लगे थे।

शवों के दाह संस्कार को मिला महत्व

इसी तरह मृत्यु पर अंतिम संस्कार के लिए शवों के दाह संस्कार की भारतीय हिंदू रीति का महत्व स्वीकारा जा रहा है। चीनी सरकार ने कोरोना वायरस से मरने वालों को दफनाने पर रोक लगाते हुए आदेश दिया है कि अंतिम संस्कार शवों को गाड़कर नहीं, बल्कि जलाकर ही किया जाएगा। इसके पीछे चीन ने कारण बताया कि शवों को जमीन में दफनाने से उनके शरीर का कोरोना वायरस जमीन में मिलकर और भी फैल सकता है। वायरस के वर्तमान संकट से निपटने में हमें अपने प्राचीन वैदिक ज्ञान को भी टटोलने की जरूरत है। हमारे वेदों में उल्लिखित है कि हवन में प्रयुक्त सामग्री के धुएं से विषाणु-जीवाणु मर जाते हैं। इस विषय पर भी अत्याधुनिक शोध आवश्यक है। अगर परिणाम सकारात्मक आता है तो चिकित्सा विज्ञान में यह एक क्रांति होगी।

आयुर्वेद दवाओँ का उज्ज्वल भविष्य

इसी तरह कोरोना या सार्स जैसी बीमारियों की रोकथाम वाली दवाओं के रूप में भारतीय आयुर्वेद, औषधियों, योग-प्राणायाम को और बढ़ावा देने तथा इन्हें दुनिया में प्रचारित करने का समय आ गया है। आयुर्वेद में वर्णित तुलसी, गिलोय, नीम और अश्वगंधा आदि अनेक औषधियों पर आज शोध करने की जरूरत है। अंग्रेजी राज और आजादी के बाद अंग्रेजी मानसिकता के दवाब में हमारा यह समृद्ध प्राचीन चिकित्सकीय ज्ञान उपेक्षित और लुप्त हो गया। इसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इससे इन औषधियों के लिए बड़ा अंतरराष्ट्रीय बाजार हमें उपलब्ध होगा जो आर्थिक रूप से लाभकारी होगा। खान-पान में हाइजीन की अहमियत कोरोना ने साफ-सफाई और हाइजीन की अहमियत को साबित किया है। भारत में अभी तक हाइजीन के स्टैंडर्ड विकसित देशों जैसे नहीं हैं लेकिन, अब इनमें बदलाव आता दिख रहा है। लोगों के खाने-पीने की आदतें भी इस वायरस के साथ बदलती दिख रही हैं। नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) के नोएडा चैप्टर के हेड और रेस्टोरेंट देसी वाइब्स के डायरेक्टर वरुण खेरा के मुताबिक, “अब लोग क्वालिटी और हाइजीन वाले खाने को ही तरजीह देंगे। दूसरी ओर, रेस्टोरेंट्स और होटलों को भी अपने हाइजीन स्टैंडर्ड को ऊपर उठाना होगा।”

आदत बना साफ -सफाई एवं स्वच्छता

कोरोना वायरस भले ही तबाही मचा रहा हो, लेकिन कुछ समय बाद ये समाप्त हो जाएगा, किंतु स्वच्छता की जो सीख कोरोना वायरस दुनिया को देकर गया है, उससे हर कोई ताउम्र याद रखेगा। जिस कारण अभी से लगभग हर व्यक्ति नियमित तौर पर साबुन से हाथ धो रहा है। चिकित्सकों से बीस सेकंड तक हाथ धोने की सलाह दी है, जिसका बखूबी से पालन भी किया जा रहा है। कोरोना वायरस ने जिन लोगों को साबुन से हाथ धोने की आदत नहीं थी, उनके हाथ में भी सेनिटाइजर थमा दिया है।

भीड़भाड़ से दूर रहने की बनेगी आदत

कोरोना महामारी आने के बाद से इससे बचाव के लिए सबसे पहले लोगों को भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने और सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल से बचने की सलाह दी गई, जिसका लोगों ने फौरन पाल शुरू कर दिया। ज्यादातर बड़े शहरों में लोगों में इसके प्रति सजगता देखी गई। विशेषज्ञों की राय में अब आने वाले दिनों में भी लोग भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचेंगे। इसका मॉल कल्चर पर सीधा असर पड़ेगा। कोरोना के बाद ज्यादातर लोग मॉल जैसी जगहों पर जाने से बचेंगे। इसके अलावा क्लब और शादी समारोह, जहां सैकड़ों-हजारों की संख्या में भीड़ होती है, वहां भी बेवजह जाने से लोग बचना चाहेंगे।

परिवार के साथ सुखद अनुभव

हाल ही में फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने वीडियो कॉल पर दिए अपने इंटरव्यू में बताया कि कोई काम न होने के चलते एक दिन उन्होंने अपनी बेटी के साथ बैठकर करीब छह घंटे तक गप्पें मारीं। उनके मुताबिक बीते 15 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था। हालांकि कश्यप एक व्यस्त फिल्मकार लेकिन जीवन की भागदौड़ में कई बार बेहद आम लोग भी अपने परिवार को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। इसके अलावा, इस वक्त को पुराने दोस्तों और छूट चुके रिश्तेदारों को याद करने और उनसे फोन या मैसेजिंग के जरिये संपर्क करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

पूजा-पाठ के तरीकों में बदलाव

किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि भारत जैसे धर्म प्रधान देश में एक साथ सारे मंदिर, मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे बंद हो जायेंगे और नवरात्र तथा रामनवमी जैसे त्योहार पर कोई भक्त मंदिर नहीं जायेगा। लेकिन करोना ने ऐसा कर दिखाया। वोट कॉमन गुड की निदेशक एमी सुलिवन का कहना है कि कोरोना वायरस से लोगों के पूजा-पाठ करने के तरीके भी बदल जाएंगे. लेकिन, सवाल ये उठता कि वे ईस्टर की सुबह जश्न कैसे मनाएंगे? क्या मुस्लिम परिवार बिना मस्जिद जाए ही रमजान में रोजा रखेंगे?

क्या हिंदू धर्म को मानने वाले नवरात्रों में मंदिर जाएंगे?

उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में सभी मान्यताओं पर जिंदा रहने की जंग हावी हो चुकी है. मानवता की बेहतरी के लिए फिलहाल इन तौर-तरीकों का बदल जाना ही बेहतर है. राष्ट्रवाद की भावना सर्वोपरी राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दुनिया के ग्लोबल विलेज बनने के साथ ही राष्ट्रवाद की भावना ने जोर पकड़ा है और धार्मिक उन्माद तथा अलगाववाद में कमी आयी है। बीते कुछ समय के भारत को देखें तो यहां सांप्रदायिक समीकरणों की वजह से लगातार सामाजिक समीकरणों को बिगड़ते देखा जाता रहा है। अब जब दुनिया भर में कोरोना वायरस का प्रकोप फैल गया है तो इन सब बातों के बारे में सोचने की फुर्सत ज्यादातर लोगों को नहीं है। उपेक्षित श्रम को महत्त्व वर्तमान में 130 अरब की जनसंख्या वाले भारत में मानव संसाधन की कोई कमी नहीं है। शायद यही वजह है कि य़हां पर न तो इंसान की मेहनत की उचित कीमत लगाई जाती है और न ही उसे पर्याप्त महत्व दिया जाता है। कथित तौर पर छोटे काम करने वालों को अक्सर ही यहां हेय दृष्टि से देखा जाता है। फिर चाहे वह घर में काम करने वाली बाई हो या कचरा उठाने वाला सफाई कर्मचारी या घर तक सामान पहुंचाने वाला डिलीवरी बॉय। परन्तु कोरोना वायरस के हमले के बाद ज्यादातर लोगों को इनका महत्व समझ में आने लगा है। यह एक शुभ संकेत है ।

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