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स्वर्णिम इतिहास

जटायु कोई पक्षी ना होकर एक महान विद्वान वैज्ञानिक महापुरुष थे

हमारे अनेकों इतिहास नायकों के साथ इतना अन्याय किया गया है कि उन्हें हम आज तक सही रूप में पहचान नहीं पाए हैं जैसे रामायण कालीन अनेकों महान पात्रों को हमने इस प्रकार दिखाया है जैसे वह मनुष्य जाति के न होकर पशु , पक्षी , वानर आदि हैं । इन्हीं में से एक जटायु का प्रसंग आज हम लेते हैं । जिनके बारे में आचार्य प्रेमभिक्षु जी अपनी पुस्तक ‘शुद्ध रामायण’ में हमें बहुत स्पष्ट बताते हैं कि बाल्मीकि रामायण ,अध्यात्म -रामायण ,रघुवंश और महाभारत आदि के अनेकों प्रमाणों से स्पष्ट है कि रावण से युद्ध करने वाले और सीता की रक्षा करने के लिए बंदा बैरागी की भांति अपने समाधि सुख को त्याग वस्त्र धारण करने वाले महात्मा जटायु पक्षी न थे । किंतु महाराज दशरथ का वयस्य ( अर्थात सहवासी समान आयु या एक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाला ) अरुण ऋषि का पुत्र कश्यप गोमी संपाती का छोटा भाई विमान , विद्या आदि में प्रवीण वानप्रस्थी ब्राह्मण था।

शंका का उत्तर :- साधारण बुद्धि के मनुष्य शंका करेंगे कि इसमें क्या प्रमाण है कि वह दशरथ का मित्र और मनुष्य था ? क्या मनुष्य के पशु , पक्षी सखा नहीं हो सकते , जो कि उनके साथ सदा उपकार करते रहते हैं ।

उत्तर : 1 – यह सच है कि मनुष्य के गौण रूप में उपकार करने वाले पशु पक्षी भी मित्र कहला सकते हैं , पर उन उपकारी जीवो को कहीं भी वयस्य , आर्य, तात ,तीर्थभूत , महान साधु , पूजनीय , मान्य , महाराज आदि शब्दों से संबोधन नहीं किया जा सकता ।

2 — और ना ही पशु पक्षी अग्निहोत्र आदि नित्य कर्म करते वह कर सकते हैं । जैसा की कृताहिनक शब्द से जटायु के वंश में होता है ।

3 — और ना ही किसी पशु ,,पक्षी का मृतक संस्कार वैदिक विधि से करना लिखा है । जैसा कि वाल्मीकि रामायण अरण्य कांड सर्ग 68 श्लोक 30 तथा पदम पुराण आदि में पाया जाता है । श्री रामचंद्र जी ने उसका वेद विधि से अंत्येष्टि संस्कार किया ।

4 — कोई पशु या पक्षी चाहे वह कितनी ही बड़ी आयु के भी हों कभी राजा व राजकुमारों को शिशु नहीं कह सकते और ना ही वे किसी बुद्धिजीवी पुरुष या स्त्री की रक्षा करने की शक्ति और बुद्धि रखते हैं ।

5 — तथा पक्षियों का पुरुषों के साथ गोष्ठी / वार्तालाप करना भी असंभव असंभव है ।

नोट :– देखो अमरकोश सर्ग 9 श्लोक 12 ।

प्रतिकूल तर्क :– महात्मा जटायु को पक्षी मानने वाले यह तर्क करेंगे कि यदि जटायु मनुष्य था तो इन ग्रंथों में उसके लिए जटायु पक्षी पतगेश्वर आदि शब्द क्यों आए हैं ? जो कि प्राय: पक्षी विशेष के वाचक हैं तथा युद्ध में शस्त्रों के स्थान में इसकी ओर से तुण्ड / चोंच से प्रहार क्यों लिखा है ?

सावधान :– यह जो नाम दिए गए हैं उसके गुणों को देखकर यौगिक भाव से दिए गए हैं जो कि संस्कृत कवियों ने साहित्य के भूषण माने हैं । इनको न समझना या अन्यथा समझना हमारा दोष है न कि ऋषियों का कवियों का ।

जटायु का अर्थ है बड़ी उम्र वाला । कल्पद्रुम में जट आयु का यही अर्थ किया गया है। जटायु रामचंद्र जी के लिए इसलिए जटायु थे कि वह उनकी पिता की उम्र के थे बड़ी उम्र वाले थे। इसलिए उन्होंने सम्मान भाव में जटायु के लिए यह शब्द प्रयोग किया।

पक्षी के अर्थ हैं दृढ़ पक्षी :- स्कंधों वाला व पितृ कार्य आदि के ग्रहण के योग्य वैदिक विद्वान आर्यों के सत पक्ष पालन वाला । दृढ़ता के साथ किसी पक्ष को लेने वाला या रखने वाला तो यह सब गुण जटायु में थे। यही कारण है कि उसने राम का जीवन के अन्त तक पक्ष किया ।

पक्ष शब्द स्कंध आदि का वाचन भर्तृहरि के समय में भी माना जाता था । इसलिए लिखा है कि वरम पक्षच्छेद: आदि ।

गृध्र के अर्थ है वीर योद्धा , जो सदा युद्ध को चाहे। जटायु क्योंकि प्रसिद्ध योद्धा था इसलिए उसको गृध्रराज भी कहा है । रावण ने इसकी भुजा काटी इसीलिए इसे राम ने लूनपक्ष कहा ।

पतंग :- इसका नाम इसलिए है कि वह पक्षियों की भांति दो पक्षी वाले विमान में बैठकर इतना ऊंचा उड़ता था कि वहां से पर्वत उपलों की तरह हिमालय और विंध्याचल जलाशय में हस्तियों की तरह तथा बड़ी नदियां सफेद धागों के समान दिखाई देती थी। देखो किष्किंधा कांड सर्ग 61 श्लोक 8 /17।

पतगेश्वर भी इसी निमित्त कहा है । इस जाति के अनेकों मनुष्य महर्षि अगस्त के आश्रम में धार्मिक तत्व समझने भी आया करते थे ।

देखो वाल्मीकि रामायण अरण्यक कांड सर्ग 11श्लोक 11 । गृध्रराज पतगेश्वर का ही पर्यायवाची है ।

तुण्ड : – चोंच का नाम नहीं किंतु उसके उस वस्त्र का नाम है जिससे यह रथ के अंदर बैठे हुए शत्रु के अंगों पर प्रहार कर सकता था । महाभारत आदि में तुण्ड नाम एक राक्षस का भी है । जिससे नल का युद्ध हुआ था।

यह बात संस्कृत भाषा में ही नहीं किंतु प्राकृत भाषा में भी पाई जाती है कि कई एक जातियों या व्यक्तियों का नाम भी ऐसा होता है जो पशु पक्षियों का भी होता है। जैसे पंजाब में एक ‘सूरी’ और एक ‘बैल’ जाति है और गुरु गोविंदसिंह के शिष्यों को केवल ‘सिंह’ बोला जाता है और इसी प्रकार कई व्यक्तियों का नाम तोता , मैना , नीलकंठ आदि भी होता है।

इस प्रसंग को समझ कर हमें जटायु जैसे महामानव के साथ अन्याय करने की अपनी प्रक्रिया और प्रकृति पर विचार करना चाहिए । हमें सोचना चाहिए कि हमने कितने महान विचारों के दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति के साथ कैसा अन्याय किया है ? वह एक वैज्ञानिक सोच के महान विद्वान व्यक्ति थे । जिन्हें हम उसी रूप में यदि स्थान दें तो उनके साथ और अपने इतिहास के साथ हमारा ऐसा करना न्याय ही होगा ।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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