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वैदिक सृष्टि संवत के आधार पर चले भारत का सरकारी तंत्र

“आर्यावर्त का प्राचीन इतिहास”- नामक पुस्तक ठाकुर नगीना राम परमार द्वारा लिखी गई ‘तवारीख एक कदीम आर्यावर्त’- का हिंदी अनुवाद है । जिसे ठाकुर राम सिंह द्वारा अनूदित किया गया है। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 27 पर संसार में प्रचलित संवतों का विवरण दिया गया है। जिसमें आर्यों के सृष्टि संवत को 2004 में एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 106 बताया गया है। इसके पश्चात ब्रह्मयुग एक 1,75,24,16,000 का बताया है, जबकि क्षात्रयुग 12,05,33,106 वर्ष का बताया है । इसी प्रकार चीनी संवत 9 करोड़ 60 लाख 2हजार 501 वर्ष का , खत संवत 8,88,40,367 वर्ष पुराना, पारसी सम्वत 1,89,963 वर्ष , कलडिया संवत 9,50,071वर्ष व मिश्रित 25,300 वर्ष का बताया है।
इस पुस्तक में कुल 36 प्रचलित संवतों का उल्लेख किया गया है । जिनमें अन्य प्रमुख संवतों में युधिष्ठिर संवत 5170 वर्ष पुराना , कलयुगी संवत 5095 वर्ष पुराना , स्पार्टा संवत 4698 वर्ष पुराना , बुध संवत 3526 वर्ष पुराना , यूनानी संवत 2770 वर्ष पुराना , विक्रमी संवत 2051 वर्ष पुराना , ईस्वी संवत 2004 वर्ष पुराना बताया गया है।
इन सभी संवतों के आकलन से पता चलता है कि भारत का सृष्टि संवत सबसे प्राचीन है ।संसार के विभिन्न विद्वान जो सृष्टि को बने हुए करोड़ों वर्ष बताते हैं , उनका उल्लेख भी इस पुस्तक में किया गया है। उससे भी है स्पष्ट होता है कि इस सृष्टि को बने 5000 वर्ष नहीं हुए हैं जैसा कि कुछ मूर्ख इतिहासकारों ने इस संसार के इतिहास को पिछले 5000 वर्ष में समेटने का मूर्खतापूर्ण कार्य किया है।
तब यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में सरकारी कार्यों में ईसवी संवत की तिथियों को मान्यता दी गई है और उसी के अनुसार सारा कार्य संपादन होता है। ऐसे में भारत सरकार को ईसवी संवत को मान्यता न देकर अपने सृष्टि संवत को ही मान्यता देनी चाहिए । इससे यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि अब से 1000 — 2000 वर्ष पूर्व अर्थात इस्लाम और ईसाइयत से पहले संपूर्ण भूमंडल पर आर्यों का ही राज्य था और आर्यों की ही बस्तियां सर्वत्र बसी हुई थीं । जिन्हें मिटा – मिटा कर इस्लाम और ईसाइयत ने अपने अपने साम्राज्य स्थापित किए । इतिहास के उस काले सच को सामने लाना जहां भारत सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए वहीं देश के लोगों का यह प्रयास भी होना चाहिए कि उन्हें अपने गौरवपूर्ण अतीत की सच्चाई का पता लगे । इसके लिए व्यापक अनुसंधान कार्य चलाए जाने चाहिए । यह सच है कि जब भारत के लोग अपने इतिहास को लिखने का संकल्प ले लेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि संपूर्ण मंडल के स्वामी वही थे।
इसी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 18 पर यह भी लिखा है कि यूनान और आर्यावर्त के प्राचीन साहित्य में लिखा है कि विश्व की सब जातियां देवताओं की संतानों में से ही थीं और देवताओं का मूल स्थान एशिया की उस भूमि में था जो भारत ,तिब्बत और कश्मीर के मध्य स्थित है। इस क्षेत्र में देवताओं के 11 प्रसिद्ध राज्य थे। वहां से आर्य जाति के सब सम्राट विश्व के सब देशों पर शासन करते थे। इन सम्राटों के समय के इतिहास , उनकी शासन करने की पद्धति , इनके धार्मिक सामाजिक विधि विधान , संस्कृति और सभ्यता के इतिहास संस्कृत साहित्य में विस्तृत और क्रमानुसार लिखे हैं। परंतु दुर्भाग्य है कि वर्तमान पाश्चात्य इतिहासकार इनको काल्पनिक मानते हैं और इनके समय की घटनाओं को इनके पूर्वजों की मनगढ़ंत और काल्पनिक कहानी कहकर इतिहास शास्त्र का खत बहा रहे हैं। वैदिक संवत के 10,000 वर्ष बीतने पर आर्यों ने सुमेरु पर्वत से स्थानांतरण कर सब महाद्वीपों में फैल कर बड़े-बड़े वैभव संपन्न साम्राज्य का निर्माण किया और देश व नगर बसाए और उनको व्यवस्थित और सुसज्जित किया।
वास्तव में हमारे देश के इतिहास को इसी दृष्टिकोण से लिखा जाना चाहिए । जिसमें भारत के गौरवपूर्ण अतीत को इसी प्रकार समाविष्ट किया जाए कि संपूर्ण भूमंडल का इतिहास भारत का इतिहास बन कर रह जाए। निश्चय ही भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी और उनकी सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इतिहास का वास्तविक सच यही है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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