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वैदिक साधन आश्रम तपोवन में चतुर्वेद परायण यज्ञ : संसार में वेद ही एकमात्र धर्म ग्रंथ हैं वही विश्व धर्म बनना चाहिए : स्वामी चित्रेश्वर आनंद

ओ३म्

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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून साधना उपासना सहित वृहद वेद पारायण यज्ञों का केन्द्र है। यहां पर योग शिविर एवं युवक-युवति शिविर लगाकर वेद प्रचार किया जाता है। वर्ष में दो बार मई एवं अक्टूबर माह में पांच दिवसीय वार्षिकोत्सव होता है जिसमें देश भर से लोग श्रद्धापूर्वक सम्मिलित होते हैं और यहां आसन, प्राणायम तथा ध्यान की विधि सीखने सहित यज्ञ, भजन एवं विद्वानों के प्रवचनों से लाभान्वित होते हैं। इन दिनों तपोवन आश्रम में चतुर्वेद पारायण यज्ञ स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी एवं रोजड़ के स्वामी मुक्तानन्द जी के सान्निध्य में चल रहा है। यज्ञ में गुरुकुल गौतमनगर के चार ब्रह्मचारी श्री सत्यदेव आदि मन्त्र पाठ कर रहे हैं। देश के अनेक भागों से इस वृहद में भाग लेने स्त्री पुरुष पधारे हुए हैं। यह यज्ञ 18 फरवरी, 2020 से आरम्भ हुआ था। आगामी रविवार 8 मार्च, 2020 को इस यज्ञ की पूर्णाहुति होनी है। सभी याज्ञिक एवं शिविरार्थी प्रातः 3 बजे उठते हैं और ीरत्रि 9.00 बजे शयन करते हैं। वह सब सारा दिन आसन, प्राणायाम, ध्यान, स्वाध्याय, सन्ध्या, तथा चतुर्वेद पारायण यज्ञ में व्यस्त रहते हैं।

आज हम प्रातः आश्रम की पर्वतीय ईकाई पर पहुंचे। यज्ञ आरम्भ हो चुका था। यजुर्वेद के मन्त्रों से आहुतियां दी जा रही थी। चार वृहद यज्ञ कुण्डो में यज्ञ किया जा रहा था। यज्ञ के मध्य स्वामी मुक्तानन्द जी ने यजुर्वेद के प्रसिद्ध मन्त्र ‘यथेमां वाचं कल्याणीमावदीनी जनेभ्यः’ के अर्थ पर प्रकाश डाला। स्वामी मुक्तानन्द जी ने कहा कि इस समय यजुर्वेद के 30 वें अध्याय तक मन्त्रपाठ हो चुका है। यजुर्वेद में परमात्मा ने उपदेश किया है कि वेद कल्याण करने वाली वाणी एवं ज्ञान है। यह मानवी वाणी नहीं है अपितु सृष्टिकर्ता परमात्मा की अपनी निजवाणी वा ज्ञान है। वेद के मन्त्रों को हमें सुनना है, उनका उच्चारण करना है तथा उन्हें सस्वर बोलना भी है। इतना ही नहीं, हमें वेदों को दूसरों को बताना व पढ़ाना भी है। परमात्मा ने वेद द्वारा समाज के सभी मनुष्यों के लिये अभ्युदय एवं निःश्रेयस की सिद्धि का उपदेश दिया है। महाभारत युद्ध के बाद ब्राह्मणों ने अन्य वर्णों के लिये वेदों का उपदेश करना बन्द कर दिया था। उन्होंने कहा था कि केवल ब्राह्मण पुरुष ही वेद पढ़ेंगे अन्य कोई वेद नहीं पढ़ेगा। स्वामी मुक्तानन्द जी ने कहा कि वेद का ज्ञान सब मनुष्यों के पढ़ने व पाठ करने के लिये है। वेद में जो शब्द व वाक्य हैं वह सब परमात्मा के कहे हुए व ऋषियों को प्रेरित किये हुए हैं। वेदमन्त्र में परमात्मा ने कहा है कि वेदों का ज्ञान ब्राह्मणों सहित क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र एवं अन्य सभी मनुष्यों के लिये है। सबको इसका पाठ करने व स्वाध्याय करने का अधिकार है। स्वामी जी ने कहा कि आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ होता है और अर्य का वैश्य। परमात्मा ने वेद पढ़ने का सबको अधिकार दिया है। परिवारों में अज्ञानी व अल्प शिक्षित नौकर भी वेद पढ़ सकता है। जगत व संसार में रहने वाला कोई भी व्यक्ति वेद पढ़ सकता है। स्वामी मुक्तानन्द जी ने कहा कि परमात्मा के बनाये सूर्य, वायु, जल, पृथिवी आदि पदार्थ सभी मनुष्यों के उपयोग के लिये हैं। इसी प्रकार से वेदज्ञान भी सब मनुष्यों के अध्ययन कर उसके अनुसार आचरण करने के लिये है। स्वामी जी ने कहा कि संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसको वेद पढ़ने का अधिकार न हो।

स्वामी मुक्तानन्द जी ने कहा कि वेदज्ञान से लाभ तब होता है जब हम वेद की शिक्षाओं के अनुसार आचरण व कर्म करते हैं। जो मनुष्य जैसे कर्म करेगा वह उसी वर्ण का कहलायेगा। स्वामी जी ने कहा कि ब्राह्मण तब बनता है जब वह यज्ञ करता है और दूसरों के घरों में कराता भी है। ब्राह्मण का कर्तव्य वेद पढ़ना है और दूसरों को पढ़ाना भी है। वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों को दान देता है और दूसरों से लेता भी है। स्वामी जी ने कहा कि ब्राह्मण नौकरी नहीं करता। वह भिक्षा लेकर अपने जीवन का निर्वाह करता है। यदि उसे अधिक भिक्षा मिलती है तो उसमें से वह दान कर देता है। जो मनुष्य मांसाहार करते व मदिरापान करते हैं वह ब्राह्मण नहीं होते। वह मांसाहारी एवं मदिरा पीने वाले होते व कहे जाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि वेदों को श्रेष्ठ व निकृष्ट लोगों सहित चारों वर्णों से बाहर के लोग भी पढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को वेद पढ़ने से वंचित नहीं करना चाहिये। इसके बाद पुनः यजुर्वेद के मन्त्रों का पाठ करते हुए घृत व सामग्री की आहुतियां दी गईं।

यज्ञ की समाप्ति पर स्विष्टकृदाहुति दी गई। बलिवैश्वदेव यज्ञ भी किया गया और आहुतियां दी गईं। इसके बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने समर्पण व ईश-प्रार्थना कराई। स्वामी जी ने समर्पण व प्रार्थना करते हुए कहा कि हमारे सभी शुभ कार्य, हे ईश्वर, तुझे अर्पण हैं। आप उदार हैं, हमें भी उदार बनायें। आप सदैव आनन्द से तृप्त रहते हैं। सब प्राणियों के सब कार्य, शरीर की उत्पत्ति व शरीर का संचालन व उसके अन्दर की सभी क्रियायें, आपके द्वारा ही हो रही हैं। आप की सब प्राणियों पर कृपा व दयादृष्टि है। आपने हमारे लिये विशाल भूमि को बनाया है। आपने ही वायु और अन्न को बनाया है जिसका भोग कर हम तृप्त होने के साथ स्वस्थ एवं बलवान बनते हैं। हे परमात्मन्! आपने ही हमें माता-पिता के द्वारा इस संसार में जन्म दिया है। आपने हमें उत्तम ज्ञान भी दिया है। हम रोगों व क्लेशों से पीड़ित हो जाते हैं। हे ईश्वर! हमारे दुःखों व हमारा आवागमन दूर कर दो। आप हमें मोक्षगामी बनाये। हमें अपना सान्निध्य और मुक्ति प्राप्त करायें। हमारा देश आर्यावर्त ऋषियों का देश है। आपने इसी भूमि पर वेदज्ञान दिया था। समय के साथ हमारे पूर्वजों ने वेद ज्ञान को विस्मृत कर दिया था। हम पाखण्डों में फंस गये थे। ऋषि दयानन्द ने आकर हमारे देश, समाज व हमें जगाया।

ऋषि दयानन्द की महान दया से हम अपने आप वा अपनी आत्मा को तथा परमात्मा व सृष्टि को कुछ जान पाये। हम देश से पाखण्डों को दूर नहीं कर पाये। हम वेद के सन्देश को देश-देशान्तर में पहुंचाने का अपना कर्तव्य भी भली प्रकार से पूरा नहीं कर पाये। संसार में वेद ही एकमात्र धर्म है। हमारा यह वेद धर्म विश्व धर्म बने। हमारे देश व समाज से अविद्या दूर हो। हे ईश्वर! संसार में सर्वत्र वेदों का प्रचार व प्रसार हो। हम इसके लिये आपसे प्रार्थना करते हैं। आपने भारत देश का नेतृत्व श्री नरेन्द्र मोदी नाम की पुण्यात्मा को दिया है। मोदी जी देशभक्त, कर्मठ, योग्य एवं गुणवान हैं। उनके नेतृत्व में हमारा देश सुरक्षित है। उनकी भावनायें उत्तम है। हे ईश्वर! आपकी कृपा से हमारा देश विश्व में आगे बढ़े। देश में दुष्ट प्रवृत्ति वाले लोगों का पराभव हो। मोदी जी स्वस्थ एवं सुरक्षित रहें। देश का सर्वोदय व अभ्युदय हो। हमारा देश और हमारे लोग हर क्षेत्र में अग्रणीय बनें। देश में भ्रष्टाचारी व भ्रष्टाचार दूर हो। सब प्राणियों का मंगल हो। सब आपस में प्रेम व सहयोग करें। सब आपकी भक्ति करें। ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः। इसके साथ ही स्वामी जी ने अपने सम्बोधन को विराम दिया।

इसके बाद यज्ञ प्रार्थना गाई गयी। शान्ति पाठ हुआ और अन्त में सब लोगों का एक समूह चित्र इन पंक्तियों के लेखक ने लिया जिसे हम प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके बाद हमने सबके साथ मिलकर प्रातराश लिया। कुछ लोगों से चर्चा कर हम नीचे आश्रम की मुख्य इकाई व कार्यालय आये। वहां हम अनेक लोगों से मिले। कुछ समय देश हित की चर्चा करने के बाद हम अपने निवास पर लौट आये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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