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आज का चिंतन

महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले जी की पुण्यतिथि के अवसर पर

महात्मा ज्योतिबा फुले भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान नक्षत्र हैं , जिनकी ज्योति से संपूर्ण भारतीय समाज प्रकाशमान हो रहा है । इनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। महात्मा ज्योतिबा फुले जी की माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविन्दराव था। वह माली परिवार से थे और क्योंकि उनकी आजीविका का एकमात्र साधन फूल बेचना था , इसलिए माली का समानार्थक फुले शब्द उनके नाम के साथ जुड़ गया । वे सातारा से पुणे फूल लाकर बेचते थे ।

महात्मा ज्योतिबा फुले जी विचारों से बहुत ही क्रांतिकारी थे । उन्होंने भारतीय समाज को बड़ी गंभीरता से पढ़ा समझा और देखा था । भारतीय लोगों को गुलामी की जंजीरों से बंधे देखते रहना उन जैसे क्रांतिकारी व्यक्तित्व के लिए संभव नहीं था । यही कारण था कि वे भारतीयों की दुर्दशा को ठीक करने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में संलिप्त हो गए । वे भारत की तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को लेकर भी दुखी थे । वे नहीं चाहते थे कि मानव मानव के बीच किसी प्रकार की विषमता हो या छुआछूत , भेदभाव , ऊंच-नीच आदि की ऐसी सामाजिक विसंगतियां हों जो किसी जाति विशेष को छोटा और किसी जाति विशेष को बड़ा बनाती हों।

उनकी इस प्रकार की चिंतन शैली ने उन्हें भारत का महान विचारक , लेखक और दार्शनिक बना दिया । 1840 में ज्योतिबा का विवाह सावित्रीबाई से हुआ था। उन्होंने अपने क्रांतिकारी और सामाजिक उत्थान के विचारों को क्रियान्वित करने के लिए प्रार्थना समाज जैसे संगठन की स्थापना की । वह वेदों के एकेश्वरवाद को मानने वाले महात्मा थे । उनके सामाजिक सुधार और क्रांतिकारी कार्यों को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

उन्होंने महाराष्ट्र को अपने आंदोलन का प्रमुख गढ बनाया। उन्होंने तत्कालीन समाज में अछूतों के प्रति बरती जा रही भेदभाव की नीति का प्रबलता के साथ विरोध करना आरंभ किया और महिलाओं को भी शिक्षा दिलाने का अभियान चलाया । महिलाओं को शिक्षा दिलाने के दृष्टिकोण से उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला विद्यालय खोला।

उनके इस प्रकार के कार्यों ने लोगों को हृदय से प्रभावित किया । लोग न केवल महात्मा ज्योतिबा फुले की ओर आकर्षित हुए अपितु उनकी प्रेरणा से प्रेरित होकर सामाजिक आंदोलन के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन में भी कूद पड़े । जिससे भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को गतिशील बनाने में बड़ी सहायता मिली।

नए चिंतन से प्रभावित होकर लोग ज्योतिबा फुले जी के साथ जुड़ते गए और भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के एक सक्रिय सदस्य के रूप में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने लगे। उन्हें अछूतोद्धार के लिए सत्यशोधक समाज स्थापित किया था। उनका यह भाव देखकर 1888 में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी गई थी। ज्योतिराव गोविंदराव फुले की मृत्यु 28 नवंबर 1890 को पुणे में हुई।

आज हम अपने इस महानायक की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें अपनी विनम्र और भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । उनके महान व्यक्तित्व से यही प्रेरणा ली जा सकती है कि हम किसी भी प्रकार से सामाजिक भेदभाव , ऊंच-नीच और छुआछूत का समर्थन नहीं करेंगे । जहां पर आज भी हरिजन भाइयों के साथ में ऐसा व्यवहार हो रहा है वह निंदनीय है । हम सभी मिलकर भारत में हिंदुत्व की एक महान माला बनाएं और सभी को उसमें समान अधिकार प्रदान कर भारत को गतिशील बनाकर विश्वगुरु बनाएं । यदि हम ऐसे महान कार्य के प्रति संकल्पित हो उठे तो निश्चय ही हम महात्मा ज्योतिबा फुले जी को अपनी सही श्रद्धांजलि अर्पित कर पाएंगे ।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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