देश के बच्चों में युवाओं का जीवन वृद्ध व्यक्तियों से अधिक मूल्यवान होता है : ठाकुर विक्रम सिंह

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

रविवार दिनांक 10-11-2019 को प्रातः 9.00 बजे से शोधगोष्ठी, प्रतिस्पर्धा एवं गुरुकुलीय अविधवेशन का आयोजन गुरुकुल पौंधा-देहरादून के भव्य एवं विशाल वेद-मन्दिर के सभागार में हुआ। कार्यक्रम का आरम्भ संस्कृत भाषा में वेद मन्त्रों व श्लोकों के गान के साथ हुआ। पूरा सभागार देश के 54 गुरुकुलों से आये 54 छात्र-छात्राओं, आचार्य व आचार्याओं सहित ऋषिभक्तों से भरा हुआ था। संगोष्ठी का मंच प्रमुख व्यक्ति स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, पं0 धर्मपाल शास्त्री, आचार्य उद्यन मीमांसक, आचार्य धर्मवीर जी, आचार्या डा0 प्रीति वेदविमर्शनी जी आदि की गौरवमय उपस्थिति से देदीप्यमान हो रहा था। मंच पर विद्वानों का आना जाना होता रहा ओर इसके बाद मंच पर डा0 रघुवीर वेदालंकार, डा0 योगेन्द्र उपाध्याय, डा. सोमदेव शास्त्री, डा0 धारणा याज्ञिकी जी आदि भी उपस्थित हुईं। कार्यक्रम का संचालन गुरुकुल पौंधा देहरादून के सुयोग्य स्नातक एवं प्रवक्ता डा0 रवीन्द्र कुमार आर्य जी ने बहुत दक्षता से किया। कार्यक्रम के आरम्भ में डा. रवीन्द्र कुमार आर्य जी ने वर्णोच्चारण शिक्षा को महत्वपूर्ण ग्रन्थ बताया। उन्होंने सूचित किया कि मंच पर उपस्थित आचार्य उदयन मीमांसक जी ने वर्णोच्चारण शिक्षा पर ‘शिक्षा शास्त्रम्’ नाम से एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ का प्रणयन किया है। उन्होंने कहा कि वर्णोच्चारण शिक्षा पर जितने गहन चिन्तन से युक्त ग्रन्थों की आवश्यकता है, उसका योग्य विद्वानों द्वारा प्रणयन अभी भी किया जाना शेष है। श्री आर्य ने बताया कि ऋषि दयानन्द माता-पिताओं द्वारा अपनी सन्तानों के शुद्ध उच्चारण की शिक्षा दिये जाने पर बल देते हैं। उन्होंने वर्णोच्चारण शिक्षा में लिखी गई ऋषि दयानन्द जी की भूमिका को अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपादेय बताया।

डा. रवीन्द्र कुमार आर्य द्वारा कार्यक्रम का आरम्भ किये जाने के पश्चात शोधपत्रों का प्रस्तुतिकरण व वाचन आरम्भ हुआ। प्रथम कन्या गुरुकुल, शिवगंज-राजस्थान की छात्रा सुश्री सुमति देवी ने वर्णोच्चारण शिक्षा पर अपने शोध-पत्र का वाचन किया। आपका शोध पत्र अनेक प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियों से युक्त था। इसके बाद गुरुकुल के प्राचार्य डा. धनंजय जी ने सूचनायें दी। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द प्रत्येक कार्य में आर्ष दृष्टि रखते थे। हमें भी इसका पालन करना है। उन्होंने बताया कि गुरुकुल चोटीपुरा-मुरादाबाद की आचार्या डा. सुमेधा आर्या जी ने यू0पी0 शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम व परीक्षाओं में ऋषि दयानन्द की कुछ पुस्तकों एवं मान्यताओं का प्रवेश कराया है। आचार्य जी ने बहिन सुमेधा जी का इस कार्य के लिये अभिनन्दन किया। इसके बाद एक छात्रा गार्गी ने अपने शोध-पत्र का वाचन किया जिसका आरम्भ संस्कृत में वाचन से किया तथा बाद में कुछ भाग का हिन्दी में भी वाचन किया। आपका शोध पत्र भी वर्णोच्चारण विषय पर महत्वपूर्ण जानकारियों से युक्त था। तीसरा शोधपत्र पाणिनी कन्या महाविद्यालय, काशी-वाराणसी की छात्रा दिव्या आर्या ने किया। आपके शोध पत्र में प्राचीन एवं आधुनिक चिन्तन का समावेश था। उन्होंने बताया कि शिक्षा में मनुष्य में निहित जिज्ञासा के भाव का समाधान समाहित होता है। चैथा शोध-पत्र बहिन पुष्पा आर्या जी ने प्रस्तुत किया। इनके वाचन की समाप्ति पर डा. रवीन्द्र आर्य ने कहा कि वर्तमान में योग्य पढ़ने व पढ़ाने वाले आचार्य व आचार्याओं का अभाव होता जा रहा है। इसके बाद बहिन कविता, गुरुकुल शिवगंज-राजस्थान ने अपने शोध-पत्र का वाचन किया। आपके शोध पत्र का विषय था ‘वर्णों के उच्चारण में स्थान व प्रयत्न का महत्व’। आपने इस विषय पर अपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये।

गुरुकुल पौंधा के एक ब्रह्मचारी ने आर्यसमाज क्या है, इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने बताया कि आर्यसमाज वैदिक धर्म का प्रचार करने वाला एक संगठन है। आर्यसमाज पं0 रामप्रसाद बिस्मिल सहित अनेक अग्रणीय क्रान्तिकारियों एवं स्वतन्त्रता सेनानियों की जननी भी है। उन्होंने यह भी कहा कि आर्यसमाज कोई सम्प्रदाय नहीं है अपितु यह एक राष्ट्रवादी संगठन है। इसके बाद गुरुकुल की आचार्या सुनीता आर्या जी ने ‘शिक्षा शास्त्र में अक्षर विज्ञान’ विषय पर अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने मुंह से किये जाने वाली अक्षरों की ध्वनि के आठ स्थानों ओष्ठ, दन्त, तालु, मूर्धा, कण्ठ एवं छाती आदि की चर्चा की और उनकी क्रियाओं पर प्रकाश डाला। आपकी प्रस्तुति भी प्रभावशाली थी। इसके बाद मंझावली गुरुकुल के एक ब्रह्मचारी श्री दीपक ने एक कविता सुनाई। उनकी कविता के कुछ शब्द थे ‘मैं भारत वर्ष की मिट्टी का भी सम्मान करता हूं। मुझे इच्छा नहीं है स्वर्ग में जाने की।।’ बालक दीपक ने देशभक्ति की कविता को ओजस्वी शब्दों में बड़े उत्साह से प्रस्तुत किया।

इसके बाद डा. सुभाष जी, अलवर ने अपने सम्बोधन में सत्यार्थप्रकाश के द्वितीय समुल्लास की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्णोच्चारण शिक्षा वेदांग का प्रथम अंग है। वर्णोच्चारण शिक्षा पर हमारे विद्यालयों व लोगों द्वारा ध्यान न दिये जाने पर उन्होनें दुःख व्यक्त किया। विद्वान वक्ता ने ऋषि दयानन्द जी द्वारा वर्णोच्चारण शिक्षा ग्रन्थ को काशी के किसी पण्डित से प्राप्त करने का स्मरण कराया और कहा कि ऋषि ने इस ग्रन्थ का विद्वतापूर्ण सम्पादन कर हमें उपलब्ध कराया है। यदि ऋषि दयानन्द जी यह ग्रन्थ प्राप्त न कराते तो हम इस अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ से वंचित रहते। डा. सुभाष के बाद नौएडा गुरुकुल के एक ब्रह्मचारी ने माता के सन्तानों पर उपकारों से सम्बन्धित एक बहुत ही भावपूर्ण कविता प्रस्तुत की। हमने जीवन में माता के उपकारों का भावुकतापूर्ण वर्णन करने वाली ऐसी मार्मिक कविता पहले कभी नहीं सुनी। लोगों ने इस कविता को सुनकर बीच-बीच में अनेक बार करतल ध्वनि की। माता के उपकारों को सुनकर कई बार सभी श्रोताओं की आंखे गीली हो गई। हमें इस बात का दुःख है कि हम इस कविता को अपने मोबाईल में रिकार्ड नहीं कर पाये। इस कविता के बाद ब्रह्मचारी कार्तिक आर्य ने भी एक कविता प्रस्तुत की। यह कविता भी देश भक्ति के भावों से परिपूर्ण थी। इसकी एक पंक्ति थी ‘घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूं।’ इसके पश्चात् मातृ मन्दिर आर्य कन्या गुरुकुल की एक छात्रा ने एक कविता प्रस्तुत की जिसकी एक पंक्ति थी ‘शैतान को जो मारे वो इंसान चाहिये।’ इस छात्रा ने यह भी कहा कि ‘मुझे वीरों का आर्यावर्त चाहिये।’

आयोजन में आर्यजगत के विख्यात दानी प्रवृत्ति के विख्यात व आदर्श पुरुष ठा. विक्रम सिंह जी भी उपस्थित थे। अपने सम्बोधन में उन्होंने पं0 प्रकाशवीर शास्त्री जी के अनेक गुणों की प्रसंशा की। उन्होंने बताया कि उनकी ऊंचाई 6 फीट 2 इंच थी। पं0 प्रकाशवीर शास्त्री को उन्होंने भारत माता की शान बताया। उन्होंने कहा कि पं0 प्रकाशवीर शास्त्री गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के स्नातक थे और संसदीय चुनाव में स्वतन्त्र प्रत्याशी के रूप में सांसद निर्वाचित हुए थे। वह जब संसद में बोलते थे तो सांसदों की उपस्थिति शत प्रतिशत होती थी और उनकी संस्कृत निष्ठ हिन्दी में दिये जाने वाले भाषण को सभी सांसद आदर व श्रद्धा के साथ सुनते थे। उन्होंने यह भी बताया कि वह उर्दू, फारसी, अरबी भाषा के अद्वितीय विद्वान पं0 रामचन्द्र देहलवी जी से पढ़े हैं। उनका कुरआन का उच्चारण बहुत शुद्ध एवं प्रभावशाली था। देहलवी जी ने दिल्ली के एक सम्मेलन में कुरआन की आयतों का शुद्ध पाठ सुनाया था। उस मधुर व प्रभावशाली पाठ से प्रभावित होकर एक मुस्लिम लड़की ने उन पर रुपयों वा नोटों की वर्षा कर दी थी। उन्होंने कहा कि पंजाबी भाषी लोगों का हिन्दी उच्चारण प्रायः शुद्ध नहीं होता जिससे उनकी संगति से उच्चारण दोष उत्पन्न होते हैं।

विद्वान वक्ता ने बताया कि विभाजन के बाद मुसलमान मस्जिदें छोड़कर पाकिस्तान चले गये थे। लगभग 22,000 मस्जिदें पूरी की पूरी खाली हो गईं थीं। पाकिस्तान से आये हिन्दुओं को कहीं रहने की जगह नहीं मिली तो वह मस्जिदों में जाकर रहने लगे थे। इसके विरोध में गांधी जी ने अनशन किया था जिससे हिन्दुओं को मस्जिदों से निकलना पड़ा और अकथनीय दुःख सहन करने पड़े थे। ठाकुर विक्रम सिंह जी ने बताया कि प. प्रकाशवीर शास्त्री जी ने संसद में यह मांग की थी कि उन सभी मस्जिदों को खाली कराया जाये। उनका यह भी कहना था कि कम से कम अयोध्या, मथुरा व काशी की मस्जिदें तो हटा दी जायें वा खाली करा दी जायें जिससे हिन्दू पूर्ववत अपनी पूजा आदि कर सकें। उन्होंने यह भी बताया कि देश के आजाद होने पर देश के विख्यात गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री यशस्वी सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया था। इस मन्दिर का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति यशस्वी श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने नेहरू जी के विरोध के बावजूद किया था। ठा. विक्रम सिंह जी ने कहा कि काशी वा बनारस विद्या की नगरी है। काशी में वेद का मन्दिर तो बनना ही चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि वेद का प्रचार सारे देश में होना चाहिये। उन्होंने आगे कहा कि मथुरा में भी एक वेद मन्दिर और एक गीता मन्दिर होना चाहिये। उस मन्दिर से गीता का प्रचार देश विदेश में होना चाहिये।

जापान से जुडा एक प्रेरक प्रसग भी ठा. विक्रम सिंह जी ने सुनाया। उन्होंने बताया कि वहां एक बार अकाल पड़ा। वहां एक घर में व्यक्ति मरा पड़ा मिला। उसके पास गेहूं की बोरी पड़ी थी। लोगों ने देखा तो अनुमान किया कि यह भूख से कैसे मरा? इसको तो अन्न सुलभ था। वहीं पर कागज पर लिखा एक नोट मिला जिसमें कहा था कि मेरे देश के बालकों व युवाओं का जीवन मुझसे अधिक देश के लिये कीमती हैं। उनका जीवन बचना चाहिये। इसलिये उसने उस अन्न का भोग नहीं किया और वह उस अन्न की बोरी को देश के बालक व युवा लोगों के जीवन की रक्षा के लिये छोड़ गया। ठाकुर विक्रम सिंह जी ने कहा कि गुरुकुलों में जो छात्र-छात्रायें पढ़ते हैं वह हमारे वेद धर्म प्रचार के बीज हैं। उन्होंने सैकड़ों की संख्या में उपस्थित छात्र-छात्राओं को कहा कि अपने जीवन का कोई महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करो। विद्वान वक्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को सौभाग्यशाली बताया जिन्होंने इस दुर्लभ ज्ञान-यज्ञ में उपस्थित होकर लाभ उठाया है। उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम देते हुए आशा व्यक्त की कि आप ऋषि दयानन्द के नाम को आगे बढ़ायेंगे। कार्यक्रम का संचालन कर रहे डा. रवीन्द्र कुमार आर्य ने ठाकुर विक्रम सिंह जी के उपदेश को क्रियान्वित करने को कहा। उन्होंने श्रोताओं को पं0 प्रकाशवीर शास्त्री की अनेक विशेषतायें भी बताईं।

वैदिक विद्वान पं0 धर्मपाल शास्त्री जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि आपने इस कार्यक्रम में विद्वानों के विद्वतापूर्ण जिन विचारों को सुना है उन पर चिन्तन करें। गोष्ठी में प्रस्तुत शोध-पत्रों की महत्ता व गुणवत्ता को उन्होंने रेखांकित कर उनकी सराहना की। उन्होंने कहा कि जिन शोधार्थियों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किये हैं उनकी प्रतिभा को देखकर इस 88 वर्ष की आयु में भी आशा का संचार होता है। विद्वान आचार्य पं0 धर्मपाल शास्त्री ने कहा कि जीवन में एक शुद्ध उद्देश्य लेकर चलना चाहिये। उन्होंने वैदिक संस्कृति में ब्रह्मचारी के महत्व से सम्बन्धि कथा को सुनाकर बताया कि उन्होंने अमेरिका में देखा है कि वहां चैराहों व सड़को को पार कर रहे विद्यार्थियों के लिये सारा यातायात रोक दिया जाता है। यदि कोई अवहेलना करता है तो वहां के विद्यार्थी अवहेलना करने वाले को आर्थिक दण्ड का नोटिस भिजवाते हैं। उन्होंने कहा कि आज भी अमेरिका में यह व्यवस्था चल रही है। यह व्यवस्था भारत की वैदिक काल की प्राचीन भारतीय संस्कृति की देन है वा उसके अनुरूप है जिसमें चैराहे पर आते हुए राजा, गुरुकुल के ब्रह्मचारी व अन्य सामाजिक प्रमुख लोगों को सिपाही रोक देता है और गुरुकुल के ब्रह्मचारी को सबसे पहले जाने दिया जाता है। इसके बाद शोध पत्र पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को प्रमाण पत्र वितरित किये गये। इसी के साथ शोध-संगोष्ठी, प्रतिस्पर्धा एवं गुरुकुलीय अधिवेशन का समापन हुआ। शान्तिपाठ के साथ सत्र समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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