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भारतीय संस्कृति

भोजन से पूर्व बोलने का मंत्र

*ओ३म् अन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः*
*प्र प्रदातारं तारिष ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ।।*

भावार्थ : हे अन्न के स्वामी परमात्मन् ! हम को रोग रहित और बल दायक अन्न दीजिए ।अन्न का दान करने वाले को सुखी रखिए। हमारे दो पैर वाले तथा चार पैर वाले प्राणियों को यहां अन्न शक्ति देवे।
*काव्यमय भाव*🎤
हे अन्नों के स्वामिन भगवन,
सबको वह अन्न प्रदान करो।
कोई न निर्बल रहे असहाय,
जग हृष्ट पुष्ट बलवान करो।
दोपाये और चौपाये सब
पशु आदि हों बलशाली।
जो दाता हैं खिलाने वाले,
उनपर तेरी दया निराली।
करो कृपा हम पर भी ऐसी,
हम भी दानी ज्ञानी हों।
ध्यान रखें अन्यों का भी,
उपकारी विमल हर प्राणी हों।।👏🏻
-विमलेश बंसल आर्या

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