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भारत रत्न दिया जाना चाहिए वीर सावरकर को : पंडित बाबा नंद किशोर मिश्र

नई दिल्ली । ( विशेष संवाददाता ) अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित बाबा नंदकिशोर मिश्र ने मांग की है कि क्रांति वीर सावरकर जी को भारत रतन दिया जाए । उन्होंने कहा है कि विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे जावल्यमान नक्षत्र हैं, जिनकी चमक कभी फीकी नहीं होगी । वे ऐसे प्रखर राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने अपनी सुख-सुविधाओं को पूर्ण रूप से तिलांजलि दे स्वेच्छा से संघर्ष का कंटकाकीर्ण मार्ग स्वीकार किया । देश के लिए घोर कष्टों में भी जीने और स्वतंत्रता के लिए लगातार भगीरथ प्रयत्न करने को उन्होंने अपना जीवन-लक्ष्य बनाया ।

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि सावरकर क्रांतिकारियों की उस प्रारंभिक पीढ़ी के थे, जिनमें जन्मजात प्रतिभा कूट-कूटकर भरी थी । श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल, विनायक सावरकर और रासबिहारी बोस भी उच्च शिक्षा प्राप्त एवं अनेक विषयों के विद्वान् थे तो विनायक दामोदर सावरकर इतिहासज्ञ, लेखक, कवि, उपन्यासकार, दार्शनिक, समाज-सुधारक तथा दूरदृष्टि रखने वाले द्रष्टा थे ।

यह भी कोई संयोग नहीं था कि वीर सावरकर ने उस कुल में जन्म लिया, जिसके तीनों सपूत स्वातंत्र्य योद्धा थे । बड़े भाई गणेशपंत (बाबाराव) सावरकर को आजीवन काले पानी का दंड मिला और छोटे भाई डॉ. नारायणराव (बाल) सावरकर को भी लॉर्ड मिंटो पर बम प्रहार के मामले में कारावास में रहना पड़ा था । वास्तव में सावरकर बंधुओं ने चापेकर बंधुओं के अमर बलिदान से प्रेरणा ली थी ।

दामोदर, बालकृष्ण तथा वासुदेव चापेकर भी स्वातंत्र्य देवी की उपासना करते हुए फाँसी पर चढ़ गए थे ।16 मई, 1899 के दिन वासुदेव चापेकर तथा उनकी सहयोगी महादेव रानडे को फाँसी हुई । उनकी शहादत का समाचार मिलते ही 16 वर्ष के तरुण विनायक सावरकर ने भगूर में अपनी कुलदेवी के सामने आजन्म देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की प्रतिज्ञा कर ली. यह ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा थी, जिसे उन्होंने अक्षरशः निभाया ।

राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आगे कहा कि भारत में सर्वप्रथम विदेशी कपड़ों की होली जलानेवाले विनायक सावरकर ही थे । भारत में कानून की शिक्षा पूरी कर वे बैरिस्टर की शिक्षा के लिए लंदन गए तो वहाँ के ‘इंडिया हाउस’ को क्रांतिकारियों का केंद्र बना दिया । लंदन में अध्ययन करते हुए सावरकर ने मैजिनी का चरित्र लिखा, जो प्रकाशित होते ही हाथोहाथ बिक गया. इसके बाद उन्होंने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ लिखा, जो विलक्षण शोध-ग्रंथ था. लंदन में उनके शिष्य मदनलाल ने कर्जन वायली को मृत्युदंड देकर भारतीय स्वतंत्रता का उद्घोष इंग्लैंड में भी कर दिया । इन सबके बाद भी सावरकर कैसे बचे रहते. अंग्रेज सरकार ने उन्हें बंदी कर भारत लाने की योजना बनाई तो फ्रांस के मर्सोली बंदरगाह के पास सावरकर जहाज से समुद्र में कूद गए और तैरते हुए फ्रांस की धरती पर पहुँच गए । अंग्रेज पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों को धत्ता बताते हुए सावरकर को फिर बंदी बना लिया और भारत लाकर दो-दो आजन्म कैद की सजा सुना कालापानी (अंडमान) भेज दिया ।

दस वर्षों तक वीर सावरकर ने अंडमान में अमानुषिक यातनाएँ सहन कीं । सेलुलर जेल में उन्होंने छिलके कूटे, कोल्हू चलाया, हथकड़ियों में एकाकी कैद भी भुगती और भीषण बीमारी का सामना किया. इस सब के उन्होंने बीच अध्ययन करने का अभ्यास बनाए रखा, साथ ही कैदियों को संस्कारित और जाग्रत् करने का कार्य भी उन्होंने किया. कील और कोयले से वे जेल की दीवारों पर कविताएँ लिखते थे. इस तरह कविताओं की लगभग 14 हजार पंक्तियाँ उन्होंने लिखीं और कंठस्थ कीं.

सावरकर की मूर्ति फ्रांस में लगाने पर भी परेशानी- ‘सीक्रेट डाक्यूमेंट लीक’ होने पर सरकार का घिरना. ‘लीक’ वही डाक्यूमेंट होता है, जिसे मंत्री चाहे. जिसे मंत्री न चाहे, वह लीक नहीं होता. जैसे मार्सिलेस शहर के मेयर की चिट्ठी. मार्सिलेस समुद्र किनारे का फ्रांसीसी शहर है. वीर सावरकर को जब ब्रिटिश सरकार लंदन से पकड़कर भारत ला रही थी तो वह जहाज से समुद्र में कूद गए थे और तैरकर इसी फ्रांसीसी शहर में पहुँचे थे । फ्रेंच गार्डों ने सावरकर को पकड़कर ब्रिटिश हुकूमत के हवाले कर दिया । इस पर मैडम कामा हेग की इंटरनेशनल कोर्ट में गईं । यह अलग बात है कि ब्रिटिश दबाव में 24 फरवरी, 1911 को मुकदमा खारिज हो गया, पर फ्रांस में बगावत हो गई. प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा । अब 99 साल बाद मार्सिलेस के मेयर ने अपनी सरकार को चिट्ठी लिखी है कि हम चाहते हैं कि समुद्र किनारे सावरकर की मूर्ति लगे । पर न यह चिट्ठी लीक हुई, न सरकार ने जवाब भेजा । लोकसभा में यह चिट्ठी गोपीनाथ मुंडे ने लीक की थी ।

हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि उनकी पार्टी सावरकर जी को भारत रत्न दिलाने के लिए जन आंदोलन का रास्ता भी अपनाएगी ।

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