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कविता

बचपन का झूला

जिन बाहों में बचपन झूला
उनको नहीं भुलाना ।
कर्ज़ बहुत है सिर पर भारी
अपना फ़र्ज निभाना ।।

माँ की सहना अवनी जैसी
पिता गगन से भारी ।।
महिमा दोनों की सब गाते
राम कृष्ण त्रिपुरारी ।।
श्रवण शक्ति कंधों पर लेकर
इनका बोझ उठाना । जिन बाहों में————-

चंदन सी शीतलता माँ में
पिता सर्व गुणकारी ।
सभी सुखों की धाम अगर माँ
पिता अमंगलकारी ।।
यही हमारे जीवन धन हैं
इनको मत ठुकराना । जिन बाहों में————-

यौवन का पुरुषार्थ पिता है
माँ बचपन का पलना ।
दोनों सच्चे परमेश्वर हैं
और नहीं कुछ कहना ।।
सारे तीरथ धाम यही हैं
इन्हें छोड़ मत जाना । जिन बाहों में————-

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों से
स्वर है एक निकलता ।
अगर कॄपा दोनों की हो तो
है पाषाण पिघलता ।।
यह जीवन है भूल भुलैया
इनको भूल न जाना । जिन बाहों में————–

अनिल कुमार पाण्डेय
संस्थापक-तुलसी मानस साहित्यिक संस्थान
जे-701आवास विकास केशवपुरम, कल्याणपुर
कानपुर (उ. प्र) शब्ददूत -9198557973

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