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कविता

वसुधा उसका घर होता है…

यह तेरा है – यह मेरा है,
ये विचार बहुत ही छोटा है।
जो फंसा हुआ इस द्वंद्व-भाव में,
चिंतन उसका खोटा है।।

बांहों को खोल बढ़ा जो आगे,
बड़ा वही होता है।
व्यापक विस्तृत चिंतन उसका,
प्रेरक सबका होता है।।

बड़ी सोच के स्वामी का,
हृदय ही मंदिर होता है।
हितार्थ समस्त जगती के,
वसुधा उसका घर होता है।।

निकल चलो – तुम निकल चलो,
तोड़ो सारे भवबंधन को।
तेर – मेर के फेर को छोड़ो,
और छोड़ो छोटे चिंतन को।।

यदि स्वर्ग बनाना वसुधा को,
अपना लक्ष्य समझते हो।
क्यों मिथ्या झगड़ों में पड़कर,
श्वानों की भांति लड़ते हो।।

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