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इतिहास के पन्नों से

भारत के वास्तविक सरदार थे सरदार पटेल

सरदार पटेल ने हैदराबाद में मुस्लिम सांप्रदायिकता और भावनात्मक ब्लैकमेलिंग के सामने झुकने से इनकार कर दिया था । हैदराबाद को सरदार पटेल सैनिक कार्यवाही से अपने अधीन लाने में सफल भी रहे थे । उनके इस निर्णय से पंडित नेहरू सहमत नहीं थे । नेहरू को डर था कि सरदार पटेल की कठोरता कहीं हमारे लिए कष्टकारी सिद्ध ना हो जाए ?सरदार पटेल मुस्लिमों को अपने मजहब के पालन करने को लेकर कुछ छूट देने के पक्ष में थे । परंतु छूट का अभिप्राय तुष्टिकरण कदापि नहीं था । उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि :– ” बंदूक की नाल पर तथा सशस्त्र संगठनों के प्रभाव में आकर मैं इसे कतई नहीं मान सकता ।”31 मार्च 1948 को रिजवी ने बड़ा विषैला भाषण देते हुए कहा था कि मुसलमान अपने खून की अंतिम बूंद गिरने तक हैदराबाद को स्वतंत्र रखेंगे । क्योंकि हमने निरंतर 800 वर्षों तक दक्षिण पर शासन किया है और हम करते रहेंगे । चाहे भारतीय संघ इसे पसंद करें या न करें ।सरदार पटेल ने रिजवी के भाषण का गहराई से संज्ञान लिया और नेहरू जी को भी वस्तु स्थिति से अवगत कराया । माउंटबेटन ने कुछ लोगों के माध्यम से निजाम हैदराबाद की स्वीकृति प्राप्त करके एक समझौता तैयार कराया था । जिसे सर वॉल्टन हैदराबाद से भारत सरकार की स्वीकृति लेने के लिए दिल्ली आया ।

माउंटबेटन इसे स्वीकार करना चाहते थे पर बड़ी बाधा सरदार पटेल थे । उन्हें समझौते में सांप्रदायिकता और अलगाव के विषाणु स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।सरदार पटेल उन दिनों देहरादून में स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे । माउंटबेटन तब भारत छोड़ने की तैयारी कर रहे थे । उन्होंने नेहरू जी , डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद , गोपाल स्वामी आयंगर तथा सरदार बलदेव सिंह को साथ लिया और हवाई जहाज से उड़कर सरदार से मिलने के लिए चल दिए । दिखाने के लिए तो वहां जाने का उद्देश्य सरदार की कुशल क्षेम पूछना था । माउंटबेटन ने इसे सरदार पटेल से अपने जाने से पूर्व एक भेंट करना बताया था। पर वास्तविकता यह थी कि माउंटबेटन उस समझौते पर हस्ताक्षर कराने के लिए वहां गए थे।आगे माउंटबेटन के ही शब्दों में — ” वहां पहुंचने के तुरंत बाद मैंने सभी कागजात पटेल को पढ़ने के लिए दिए । उन्हें पढ़ने के बाद सरदार पटेल बोले- ‘ धृष्टता !मैं इस पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा । ” सरदार पटेल की स्पष्टता और कठोरता के समक्ष नेहरू , अयंगर और डॉ राजेंद्र प्रसाद कुछ भी नहीं बोल पाए थे । उन्हें पता थी कि सरदार पटेल की देशभक्ति को कोई हिला नहीं सकता ।लॉर्ड माउंटबेटन ने लिखा है कि मैंने वह विषय वहीं छोड़ दिया । तदुपरांत हमने उदास मन से दोपहर का भोजन लिया ।लॉर्ड माउंटबेटन अपने प्रस्ताव को अपने साथ लेकर स्वदेश चले गए । तब सरदार पटेल ने एन वी गाडगिल के लिए लिखा — ” अब किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए । यदि हम अब भी ढीले रहे तो हम न केवल अपने देश को हानि पहुंचाएंगे अपितु स्वयं के लिए भी खाई खोदेंगे । सेना हर प्रकार की स्थिति परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहे। “सरदार पटेल सचमुच के सरदार थे । वह किसी के सामने झुकना नहीं जानते थे । देशहित को पहले रखकर उन्होंने हमेशा निर्णय लिए । ऐसे महापुरुष को इतिहास में सही स्थान ना देकर कांग्रेस ने सचमुच देश के लिए साथ अपघात किया।

डॉ राकेश कुमार आर्यसंपादक : उगता भारत

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