क्या सचमुच सारी दुनिया नास्तिक बन गई है
आज के वातावरण में जब गंभीरता से देखते हैं, तो ऐसा लगता है, लगभग पूरी दुनिया नास्तिक हो चुकी है। *"संभवत: कुछ ही गिने चुने लोग ऐसे बचे होंगे, जो ईश्वर को ठीक प्रकार से समझते हैं। उसको सदा अपने अंदर बाहर चारों ओर उपस्थित स्वीकार करते हैं। उसके न्याय को, उसकी दंड व्यवस्था को उसके आशीर्वाद को ठीक-ठीक समझते हैं, और सदा अच्छे कर्म करते हैं। ऐसे बहुत कम लोग हैं।"*
इनको छोड़कर बाकी सारे लोग अवसरवादी दिखाई देते हैं। वे नास्तिक हो चुके हैं। उन्हें ईश्वर समझ में नहीं आया। भले ही वे कितना भी बड़ा-बड़ा आडंबर करते हों, दिखावा करते हों, कि *"हम ईश्वर के बहुत बड़े भक्त हैं। हम समाज सेवक हैं। हम परोपकारी हैं। हम सबके रक्षक हैं। हम गौशाला चलाते हैं। हम धर्मार्थ चिकित्सालय चलाते हैं। हम पक्षी घर चलाते हैं। हम अनाथालय चलाते हैं, आदि आदि परोपकार के बहुत से काम करते हैं।"*
यह सत्य है, कि वे लोग ऐसे परोपकार के काम भी करते हैं। उसमें तन मन धन भी लगाते हैं। परंतु कभी भी कहीं भी अवसर मिलते ही किसी की मजबूरी का फायदा भी उठाते हैं। बस यहीं तो उनकी परीक्षा होती है। आप कहेंगे *"इस बात का प्रमाण क्या है, कि वे किसी की मजबूरी का फायदा भी उठाते हैं?"* प्रमाण तो आप स्वयं ही हैं। *"क्या आपके साथ कभी किसी ने कोई अन्याय नहीं किया? क्या आप स्वयं उन अन्यायग्रस्त पीड़ित लोगों में से एक नहीं हैं? क्या आपने समाचारों में ऐसी घटनाएं नहीं सुनीं? क्या आपने फिल्मों में ऐसे अत्याचार होते हुए नहीं देखा? ये सब प्रमाण हैं।"*
*"जब संसार के लोग किसी दूसरे व्यक्ति की मजबूरी का लाभ उठाते हैं, उस कमजोर व्यक्ति पर दया नहीं करते, हृदय से उसकी सहायता नहीं करते, बल्कि शारीरिक मानसिक आर्थिक सब प्रकार से उसका शोषण करते हैं। ऐसे लोग अपने आप को शेर समझते हैं। वे शेर नहीं, बल्कि मूर्ख हैं। क्योंकि वे अपने इन अपराधों के दंड को नहीं समझते, कि ईश्वर हमारे इन पापों को देखता है, और भविष्य में हमें खतरनाक दंड देगा।"*
ऐसे लोगों को देखकर नई पीढ़ी के दूसरे लोग भी नास्तिक हो जाते हैं। उन पर यह प्रभाव पड़ता है, कि *"ईश्वर नाम की कोई चीज वास्तव में हो, ऐसा लगता नहीं है।"* उनके मन में यह प्रश्न उठता है कि *"यदि ईश्वर वास्तव में है, तो इन दुष्टों को दंड क्यों नहीं देता? इनकी सत्ता छीन क्यों नहीं लेता। इनको तत्काल मार क्यों नहीं देता? इन गरीब बेचारे मुसीबत के मारे कमजोर लोगों की ईश्वर रक्षा क्यों नहीं करता?"*
तो उनके प्रश्न का उत्तर यह है, कि *"प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है। वह अपनी इच्छा और बुद्धि से कर्म करता है। और ईश्वर उन सबके कर्मों को देखता है। कौन कितना अच्छा कर्म करता है, और कितना बुरा, कितनी ईमानदारी से काम करता है, और कितनी बेईमानी करता है, ईश्वर सबको देखता है। परंतु घटनास्थल पर वह किसी का हाथ नहीं पकड़ता। ऐसे किसी को नहीं रोक लेता, कि "उसकी बंदूक छीन ले अथवा उसकी सत्ता, अधिकार या शक्ति तत्काल छीन ले, और उसे अपराध करने ही न दे। ईश्वर ऐसा नहीं करता।"* क्यों नहीं करता?
इसका उत्तर है, कि *"जब विद्यार्थी परीक्षा भवन में परीक्षक की आंख के सामने गलत उत्तर लिखता है, तो क्या परीक्षक उसका हाथ पकड़ सकता है? उसे रोक सकता है? क्या वह ऐसा कहता है कि "तुम्हें गलत उत्तर नहीं लिखने दूंगा।" बिल्कुल नहीं कर सकता।"* बस यही उत्तर इस प्रश्न का भी है।
*"ईश्वर भी परीक्षक है। आप और हम सब जीवन की परीक्षा दे रहे हैं। जब कोई भी व्यक्ति गलत काम करता है, दूसरे को परेशान करता है, उसका किसी भी प्रकार से शोषण करता है, उस पर अत्याचार करता है, तो ईश्वर भी परीक्षक के समान उसे चुपचाप देखता रहता है। समय आने पर वह अच्छी प्रकार से उस अपराधी को दंड देगा। जैसे परीक्षक, परीक्षा पूरी होने के बाद उस गलत उत्तर लिखने वाले विद्यार्थी के नंबर काट लेता है। ऐसे ही ईश्वर भी उन अपराधियों को मृत्यु के बाद जब जीवन की परीक्षा पूरी हो जाती है, तब खूब अच्छी तरह से दंडित करता है।"* इसका प्रमाण यह है, कि *"संसार में लाखों प्रकार के जीव जंतु हैं। ये सारे जीव जंतु किसने बनाए? ईश्वर ने। क्यों बनाए? यह उनके अपराधों का दंड है। ईश्वर न्यायकारी है। वह बिना अपराध किए मुफ्त में किसी को भी दुख नहीं देता।"*
*"तो जो लोग आपको आज अत्याचार अन्याय शोषण अपहरण हत्याएं करते हुए तथा आतंकवाद फैलाते हुए दिख रहे हैं, इनमें से किसी को भी ईश्वर नहीं छोड़ेगा, और पशु पक्षी कीड़ा मकोड़ा वृक्ष वनस्पति इत्यादि योनियों में भयंकर दंड देगा।" "इसलिए दुष्ट लोगों को देखने वाले नयी पीढ़ी के लोग नास्तिक न बनें। ऐसा न सोचें कि ईश्वर नहीं है। ईश्वर है, और बिल्कुल है।"*
*"यदि आप में कुछ संवेदनशीलता हो, बुद्धिमत्ता हो, गंभीरता हो, सत्यग्राहिता हो, तो इन सांप बिच्छू शेर भेड़िया आदि प्राणियों को गंभीरता से देखें, और विचार करें, कि ईश्वर ने इन्हें ऐसा पशु पक्षी आदि बनाकर दंडित क्यों किया?"* आप मेरा उत्तर समझ जाएंगे। और *"यदि बार-बार सोचेंगे, विचार करेंगे, तो आपको ईश्वर भी ठीक-ठीक समझ में आ जाएगा, तथा उसका न्याय भी।" "तब आपकी सारी नास्तिकता दूर हो जाएगी। तब आप किसी पर भी अत्याचार शोषण अन्याय आदि पाप कर्म नहीं करेंगे, और सेवा परोपकार दान दया आदि सब उत्तम कार्य करेंगे। तभी आपका जीवन सुखमय एवं सफल होगा।*
*"अतः इस दंड वाली बात को अच्छी प्रकार से याद रखें, और सोच समझकर सदा अच्छे कर्म ही करें। क्योंकि ईश्वर का नियम है, "दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है।"*
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”