ओ३म् ============= महाभारत युद्ध के बाद देश का सर्वविध पतन व पराभव हुआ। इसका मूल कारण अविद्या था। महाभारत के बाद हमारे देश के पण्डित, ज्ञानी वा ब्राह्मण वर्ग ने वेद और विद्या के ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन प्रायः छोड़ दिया था जिस कारण से देश के सभी लोग अविद्यायुक्त होकर असंगठित हो गये और ईश्वर […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् ============ यह निर्विवाद है कि मूल वेद संहितायें ही संसार में सबसे पुरानी पुस्तकें हैं। वेद शब्द का अर्थ ही ज्ञान होता है। अतः चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद ज्ञान की पुस्तकें हैं। इन चारों वेदों पर ऋषि दयानन्द का आंशिक और अनेक आर्य वैदिक विद्वानों का भाष्य वा टीकायें उपलब्ध हैं। […]
ओ३म ========== परमात्मा ने जीवात्माओं को स्त्री या पुरुष में से एक प्राणी बनाया है। हम सामाजिक प्राणी हैं। हम अकेले नहीं रह सकते। परिवार में माता-पिता, दादी-दादा, भाई-बहिन, बच्चे व अन्य कुटुम्बी-जन होते हैं। परिवार समाज की एक इकाई होता है। परिवार प्रायः संगठित होता है। जो परिवार विचारों एवं भावनाओं की दृष्टि से […]
=========== मनुष्यों की सन्तानें जन्म के समय व उसके बाद ज्ञान की दृष्टि से ज्ञानहीन होती हैं। उन बच्चों को उनके माता-पिता, कुटुम्बी जन तथा आचार्यगण ज्ञान देते हैं। यदि माता-पिता व आचार्य आदि बच्चों को ज्ञान न दें तो वह सद्ज्ञान व सद्गुणों का ग्रहण नहीं कर सकते। माता-पिता व आचार्यों का यही मुख्य […]
============= संसार में जीवात्माओं को परमात्मा की कृपा से अपने-अपने कर्मानुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म प्राप्त होता रहता है। सभी योनियों में मनुष्य योनि सबसे श्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण है। मनुष्येतर योनियों में आत्मा की ज्ञान आदि की उन्नति नहीं होती। मनुष्येतर योनियों में भोजन एवं जीवन व्यतीत करने के लिये स्वाभाविक ज्ञान होता है। वह […]
ओ३म् =========== वेदों के मर्मज्ञ व विख्यात विद्वानों में अपूर्व ऋषि दयानन्द सरस्वती ने वेदों पर आधारित आर्य-हिन्दुओं के पांच कर्तव्यों वा यज्ञों पर प्रकाश डाला है और इन यज्ञों को करने की पद्धति भी लिखी है। आर्य-हिन्दुओं के धर्म और संस्कृति का आधार किसी अल्पज्ञ मनुष्य की अविद्या से युक्त मान्यतायें नहीं है अपितु […]
ओ३म् ========= हमारा यह जगत ईश्वर के द्वारा रचा गया अथवा बनाया गया है। ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना जीवों को जन्म व मृत्यु प्रदान करने के लिये की है। ईश्वर जीवात्माओं को जन्म इस लिये देता है कि जीवों ने पूर्वजन्मों या पूर्व कल्प में जो कर्म किये थे, उनका सुख व दुःख […]
ओ३म् ================ पण्डित आर्यमुनि जी वेदों के उच्च कोटि के विद्वान थे। आपने वेद, दर्शन, मनुस्मृति, रामायण तथा महाभारत आदि ग्रन्थों पर भाष्य व टीकायें लिखी हैं। वैदिक धर्म के विरोधियों से आपने शास्त्रार्थ किये और उन्हें पराजित किया। शरीर से पंडित जी दुबले-पतले दुर्बल से व्यक्ति थे। पडित जी मल्लयुद्ध के ज्ञाता भी थे। […]
========== वैदिक धर्म सृष्टि का सबसे पुराना धर्म है। यह धर्म न केवल इस सृष्टि के आरम्भ से प्रचलित हुआ है अपितु इससे पूर्व जितनी बार भी प्रलय व सृष्टि हुई हैं, उन सब सृष्टि कालों में भी एकमात्र वैदिक धर्म ही पूरे विश्व में प्रवर्तित रहा है। इसका कारण यह है कि ईश्वर, जीव […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वैदिक सिद्धान्त है कि संसार में ईश्वर, जीव और प्रकृति तीन अनादि व नित्य सत्तायें हैं। यह तीनों सत्तायें सदा से हैं और सदा रहेंगी। इनका अभाव कभी नहीं होगा। वेद ईश्वरीय ज्ञान होने से स्वतः प्रमाण ग्रन्थ है। वेदों में ईश्वर को सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वातिसूक्ष्म, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, न्यायकारी, सबके कर्मों का […]