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बिखरे मोती

मानव जीवन का लक्ष्य क्या है ?

आत्मा और परमात्मा , का नरतन है गेह। नर से नारायण बानो, इसलिए मिली यह देह ॥2526॥ तत्त्वार्थ :- नर से नारायण बनने से अभिप्राय है जो परमपिता परमात्मा के दिव्य गुण हैं उन्हें अपने चित्त में धारण करो ताकि तुम भी प्रभु के तदरूप हो जाओं वस्तुत: मानव जीवन का यही अंतिम लक्ष्य है। […]

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महापुरुषों का आर्विभाव ऋतुराज बसन्त की तरह होता है

महापुरुषों का आर्विभाव ऋतुराज बसन्त की तरह होता है धरती रूप सवारती, जब आवै ऋतुराज। सौन्दर्य मौद सुगन्ध का, होता है आगाज़॥2531॥ धरती और समाज के भूषण कौन है – सज्जन भूषण लोक के धरती का है बसन्त। कायाकल्प कर देत है, नेक सलाह से संत॥2532॥ धरती बसन्त के बिना और सभा सन्त के बिना […]

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बिखरे मोती

मन की शांति कैसे मिले

शान्ति की करे कामना, मन में भरे विकार। निर्विकार ग़र मन रहे, शान्ति का आधार॥2778॥ तत्त्वार्थ:-संसार में प्रत्येक व्यक्ति ‘ मन की शान्ति ‘ चाहता है अक्सर बड़े-बड़े धनपति यह कहते सुने जाते हैं – परमपिता परमात्मा का दिया सब कुछ है , कार ,कोठी, नौकर चाकर,बैंक बैलेंस है किंतु मन को सुकून नहीं अर्थात् […]

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प्रभु-प्राप्ति चाहता है साधक, किन्तु मनोविकार कितने हैं बाधक ?

संग्रह-भोग दोनों छिपे, नहीं अकेला काम। राग-द्वेष बाधा बड़ी, कैसे पाऊँ राम॥2770॥ तत्त्वार्थ: – मेरे प्रिय पाठक, उपरोक्त दोहे का मर्म समझें इससे पूर्व इस क्रम को समझेंगे तो बात समझ में आ जायेगी। वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति के प्रति सबसे पहले मन में आसक्ति उत्पन्न होती है। आसक्ति से राग पैदा होता है। अमुक […]

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सात्त्विक – सुख किसे कहते है ?

आत्मा-बुद्धि पवित्र हों, सात्त्विक – सुख कहलाय । श्रेय-मार्ग का पथिक ही, इस दौलत को पाय॥2768॥ तत्त्वार्थ : – प्रस्तुत दोहे में मन लोय है किन्तु बुद्धि को निर्मलता के साथ-साथ मन का निर्मल होना नितान्त आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आत्मा पर मल, विक्षेप और आवरण के जो पर्दे पड़े, हैं, उनका शमन करना, उनका […]

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काम, क्रोध और लोभ से छुटकारा कैसे मिले

लोभ छटै संतोष से, काम छटै कर त्याग । लोभ-काम के त्याग से, बुझे क्रोध की आग ॥2765॥ भावार्थ :- प्राय देखा गया है कि मनुष्य काम, क्रोध और लोभ के भँवर-जाल में डूबता ही चला जाता है और मानव – जीवन बड़ा ही कष्टकर हो जाता है। लोभ ऐसी व्याधि है, जो जीवन भर […]

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स्फटिक है आत्मा,अन्तःकरण में दोष

स्फटिक है आत्मा, अन्तःकरण में दोष । अन्तःकरण सुधार ले, सुख-शान्ति का कोष॥2763॥ तत्त्वार्थ:- पाठकों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आत्मा स्फटिक की तरह अमल है, निर्मल है और दोष मुक्त है। आवश्यकता है अन्तःकरण को पवित्र करने की। इस अन्तःकरण में ही सूक्ष्म शरीर रहता है। राग-द्वेष,काम – क्रोध, ईष्या-घृणा, […]

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बिखरे मोती

आँसुओं के संदर्भ में दो शब्द एवम् ‘शेर’ : – “ठहरो मनुष्य की कान्ति के अमर मोतियो !” आँखों में ही ठहरो । आँखो से बाहर निकलकर अपना अपमान क्यों कराना चाहते हो ? संसार में आँसुओं का मोल पत्थर – हृदय क्या जाने ? इनकी परख तो वहीं समझता है जिसका हृदय करुणा और […]

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आत्मा का स्वरूप क्या है?

अव्यय अमल है आत्मा, मत समझो तुम देह। ब्रह्म-रथ है तन तेरा, करो प्रभु से नेह॥2755॥ तत्त्वार्थ :- यह कितने विस्मय को बात सखे ! तुम् आत्मा को शरीर समझते हो और देहाभिमान भी करते हो यह मिथ्या ज्ञान है। वास्तविकता यह है कि तुम शुध्द, बुध्द, अजर, अमर, अजन्मा, नित्य- मुक्त स्वभाव आत्मा हो, […]

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सन्यास किसे कहते हैं ?

अहंता-ममता का त्याग ही, कहलाता सन्यास। पर-हित में जो रत रहे, घट में हरि-निवास॥2753॥ भावार्थ :- प्रायः लोग गेरूवे परिधान पहनने वालों को सन्यासी कहते हैं किन्तु वास्तविकता यह है कि शास्त्रोक्त यह है – जिसने अपने चित्त से अहंता – ममता को त्याग दिया है तथा जो दूसरों के कल्याण में रत रहता है,और […]

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