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भारतीय संस्कृति

वैदिक ग्रंथों के अनुसार विश्वशान्ति व मानव कल्याण

अशोक प्रवृद्ध यह परम सत्य है किमनुष्य को जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती । आदिकाल से लेकर आज तक के इतिहास और मानव प्रवृति का अध्ययन करने से इस सत्य का सत्यापन होता है कि मानव के साथ समस्याओं का चोली-दामन का साथ रहा है। जीवन की पहेली आज जितनी उलझी […]

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वैदिक ग्रंथों में वनस्पतियों की महत्ता का है वर्णन

अशोक प्रवृद्धभारतीय मन आदि सनातन काल से ही प्रकृति के प्रति संवेगित व संवेदनशील रहा है और प्रकृति तथा पर्यावरण के साथ समन्वय, सामंजस्य व संतुलन स्थापित कर प्रकृति संरक्षण के प्रति कृत संकल्पित होकर जिओ और जीने दो के सिद्धांत पर चलना ही भारतीय जीवन पद्धति हैद्य मनुष्य का प्राकृतिक जीवन व्यतीत करना भारतीय […]

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मनुष्य जीवन, स्वास्थ्य रक्षा और चिकित्सा

मनुष्य योनि सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। कहा गया है कि ‘सुर दुर्लभ मानुष तन पावा’ अर्थात् देवताओं को भी दुर्लभ है यह मनुष्य शरीर ईश्वर की अहैतुकी कृपा से हम मनुष्यों को प्राप्त हुआ है। प्रायः भद्र पुरुषों का ऐसा नियम है कि जो भी वस्तु हमें उपहार में मिले उसे बहुत सम्भाल कर […]

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हिन्दू समाज में जातीय समन्वय के अद्भुत ऐतिहासिक प्रसंग (1)

दिनेश चंद्र त्यागी आधुनिक बुद्घिजीवियों में इस बात की होड़ लगी रहती है कि हिंदू समाज को जीन ग्रंथियों से ग्रस्त बनाने के लिए कौन कितने अधिक तथ्यों की खोज करे। जाति प्रथा, अंधविश्वास व अनेक कुरीतियों के कारण हिंदू समाज ने समय-समय पर भीषण आपदाएं झेली हैं, इस संबंध में कितने ही उदाहरण प्रस्तुत […]

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सभी चार आश्रमों में श्रेष्ठ व ज्येष्ठ गृहस्थाश्रम

वैदिक जीवन चार आश्रम और चार वर्णों पर केन्द्रित व्यवस्था व प्रणाली है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास यह चार आश्रम हैं और शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण यह चार  वर्ण कहलाते हैं। जन्म के समय सभी बच्चे शूद्र पैदा होते हैं। गुरूकुल व विद्यालय में अध्ययन कर उनके जैसे गुण-कर्म-स्वभाव व योग्यता होती है […]

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महर्षि दयानन्द की प्रमाणित जन्म तिथि

महर्षि दयानन्द ने पहले पूना प्रवचन और बाद में थ्योसोफिकल सोसायटी के लिए अपना संक्षिप्त आत्मकथन लिखते हुए, इन दो अवसरों पर न तो अपने जन्म स्थान को ही पूरी तरह से सूचित किया और न हि जन्म के मास व तिथि का उल्लेख किया। अतः उनके सुविज्ञ अनुयायियों पर यह दायित्व आ गया कि […]

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दक्षिण भारत के संत (१६) त्यागराजा

बी एन गोयल जिस व्यक्ति को भारत के शास्त्रीय संगीत में थोड़ी भी रुचि होगी उसे संगीतकार त्यागराज के बारे में अवश्य जानकारी होगी। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो भागों में बांटा जाता है – उत्तरी और दक्षिणी । उत्तरी को हिंदुस्तानी संगीत कहते हैं और दक्षिणी को कर्नाटक संगीत कहा जाता है। कर्नाटक संगीत […]

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विश्व को क्या-क्या दिया ‘विश्वगुरू’ भारत ने

एस. सी. जैन अब हम देखें कि मनू द्वारा तैयार की गयी स्मृति और अंग्रेजों द्वारा तैयार की गयी स्मृति में जमीन आसमान का अंतर है। अंग्रेज द्वारा हमारे ग्रंथों व साहित्य में से कुछ वाक्य को निकाल कर रिकॉर्ड कर दिया जाता है कि भारत वासी गाय का मांस खाते हैं। यह सब बाहर […]

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भारत की प्रथम धार्मिक व सामाजिक संस्था जिसने हिन्दी को धर्मभाषा के रूप में अपनाकर प्रचार किया।

आर्य समाज की स्थापना गुजरात में जन्में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने 10 अप्रैल, सन्  1875 को मुम्बई नगरी में की थी। आर्यसमाज क्या है? यह एक धार्मिक संस्था है जिसका उद्देश्य धर्म, समाज व राजनीति के क्षेत्र से असत्य को दूर करना व उसके स्थान पर सत्य को स्थापित करना है। क्या धर्म, समाज […]

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ईश्वर व जीवात्मा के यथार्थ ज्ञान में आधुनिक विज्ञान भ्रमित है।

आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने मनुष्य का जीवन जहां आसान व सुविधाओं से पूर्ण बनाया है वहां अनेक समस्यायें एवं सामाजिक विषमतायें आदि भी उत्पन्न हुई हैं। विज्ञान व ज्ञान से युक्त मनुष्यों से अपेक्षा की जाती है कि वह जिस बात को जितना जाने उतना कहें और जहां उनकी पहुंच […]

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