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भारतीय संस्कृति

‘महर्षि दयानंद एवं गुरुकुल शिक्षा प्रणाली’

मनमोहन सिंह आर्य महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) ने प्रज्ञाचक्षु दण्डी गुरू स्वामी विरजानन्द सरस्वती, मथुरा से वैदिक आर्ष व्याकरण एवं वैदिक शास्त्रों का अध्ययन कर देश व संसार से अविद्या हटाने के लिए ईश्वरीय ज्ञान वेदों का प्रचार किया। उनके वेद प्रचार आन्दोलन का देश और समाज पर ही नहीं अपितु विश्व पर व्यापक प्रभाव […]

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भारतीय वाङ्मय में गुरु महिमा और गुरु पूर्णिमा

अशोक प्रवृद्ध भारतीय संस्कृति और दर्शन की परम्परा से गृहीत भारतीय वाङ्मय में गुरु को ब्रह्म से भी अधिक महत्व प्रदान किया गया है ।गुरु को प्रेरक, प्रथम आभास देने वाला, सच्ची लौ जगाने वाला और कुशल आखेटक कहा गया है, जो अपने शिष्य को उपदेश की वाणों से बिंध कर उसमें प्रेम की पीर […]

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पुण्यसलिला सरित्श्रेष्ठ सरस्वती आखिर कहाँ गई ?

अशोक प्रवृद्ध भारतीय जीवन एवं साधना में अप्रतिम महत्व रखने वाली सरस्वती भारतीय सभ्यता के उषाकाल से लेकर अद्यपर्यन्त अपने आप में ही नहीं,प्रत्युत अपनी अर्थ,परिधि एवं सम्बन्धों के विस्तार के कारण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है। सरस्वती शब्द की व्युत्पति गत्यर्थक सृ धातु से असुन प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है शब्द सरस,जिसका […]

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तब का और अब का भारत—एक अवलोकन

गंगानन्द झा तीस साल पहले जिस भारत  को मैं गया था, वह आज के भारत से बिलकुल अलग मुल्क था। विदेशी के जेहन में उस वक्त यह अभी भी एक धुँधले, लेकिन व्यापक खतरे के खिलाफ आगाह करता था। सैलानी जरते थे कि उन्हें कोई छूत न लग जाए. भारत गन्दगी और मुसीबत की जगह […]

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अंग्रेजी शिक्षा के भारतीय संस्कृति पर पड़ते प्रभाव

बनवारी पिछली एक शताब्दी में अंगरेजी शिक्षा ने हमें जितना नियंत्रित किया है, उतना बीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक चला ब्रिटिश राज भी नहीं कर पाया था। अंगरेजी शिक्षा ने हमें अपनी सभ्यता के मूल मार्ग से भटका दिया है और उसने हमसे अपने पिछले इतिहास को समझने की दृष्टि छीन ली है। हमारे इतिहास […]

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योग और वेदों के प्रकाण्ड विद्वान थे योगीपुरूष श्रीकृष्ण

एक मुस्लिम महिला ने लिखा कि हिन्दू बनकर मंदिर में क्या घंटा बजाओगी। हिन्दुओं के भगवान श्रीकृष्ण तो नशेडी औरतबाज थे, रासलीला रचाते थे और फिर क्यों तुम काफिर हो गई। इस प्रश्न का जवाब है कि तुम किस भ्रम में हो? यकीनन मेरे कान्हा तो योगी और वेदों के प्रकांड विद्वान और एक पत्नीव्रता […]

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मन, बुद्धि और आत्मा सम्बन्धी शिक्षा देश के राज्य से असम्बद्ध होना ही राष्ट्र के लिये श्रेयस्कर

-अशोक “प्रवृद्ध” मानव शरीर में एक अंग है मन। यह स्मृत्ति यन्त्र होने के साथ ही कल्पना और मनन का भी स्थान है। ये कल्पना और मनन मन की स्मरण शक्ति के ही कारण हैं। ईश्वर प्रदत्त मन पर नियन्त्रण रखने वाला एक यन्त्र बुद्धि मन के संकल्प-विकल्प को नियन्त्रण में रखने का कार्य करती […]

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मकर सक्रान्ति पर्व और हम

मकर सक्रान्ति पर्व सूर्य के मकर राशि में संक्रान्त वा प्रवेश करने का दिवस है। इस दिन को उत्साह में भरकर मनाने के लिए इसे मकर संक्रान्ति, लोहड़ी व पोंगल आदि नाम दिए गये हैं। मकर संक्रान्ति क्या है? इसका उत्तर है कि पृथिवी एक सौर वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरी करती है। पृथिवी […]

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वैदिक युग में विमान

प्रमोद भार्गव हमारे देश में एक बड़ी विडंबना है कि जब भी कोई विद्वान प्राचीन भारत अथवा वैदिक युग में विज्ञान की बात करता है तो उस विचार पर नए सिरे सोच की बजाय उसे खारिज करने प्रतिक्रिया ज्यादा सुनाई देने लगती है। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के मुबंई में आयोजित 102 वे सम्मेलन में एक […]

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भारत की चेतना का मूल प्रेरणास्रोत हैं वेद

राजेन्द्र सिंह अखिल वेद-चारों वेद इस सर्वप्राचीन राष्ट्र भारतवर्ष की धार्मिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक राजधर्मीय और ऐतिहासिक चेतना का मूल प्रेरणा स्रोत है। वेद प्रतिपादित कालगणना को आधार बनाकर आप द्वारा 2064-65 विक्रमी से श्री मोहन कृति आर्ष तिथि पत्रक निरंतर प्रकाशित किया जा रहा है। काल गणना संबंधी अनेक प्रचलित भ्रमों का निवारण करने वाले […]

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