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भारतीय संस्कृति

कोरोना ने प्रशस्त किया पुनः वैदिक धर्म का मार्ग

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🍁 वैदिक धर्म एक सर्वश्रेष्ठ धर्म है। हमारी भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनम संस्कृति होते हुए भी सर्वोत्तम संस्कृति है जो कि अत्यंत अनुकरणीय है, किंतु शनै शनै लोग इसका महत्व भूलते गए और वैदिक धर्म को छोड़ भिन्न-भिन्न मत मतान्तरों को अपनाते चले गए। किंतु अब जब कोरोना वायरस का भयावह रूप इस दुनिया के सामने आया तब ऐसे अनेक सिद्धांत जो वैदिक धर्म व भारतीय संस्कृति में समाहित थे उन सिद्धांतों की सच्चाई को व उसके महत्व को लोगों ने पहचानना प्रारंभ कर दिया और उसे पुनः अपनाना शुरू कर दिया। इन सिद्धांतों में सबसे प्रथम है —

( १ ) 🌷अहिंसा

जब वेद कहता था ‘यजमानस्य पशून पाहि’ अर्थात पशुओं की रक्षा करो, मनुस्मृति आदि हमारे आर्ष ग्रंथ कहते थे – “वर्जयेन्मधुमांसं च” अर्थात मांस आदि का सेवन मत करो, तब विधर्मी शाकाहार को घास फूस कहकर उपहास उड़ाते थे और उन्होंने अपने स्वाद के ख़ातिर मांसाहार का धलल्ले से सेवन किया। किंतु आज कोरोना और मांसाहार के दुष्परिणामों को देख के लोगों ने पुनः शाकाहार की उपयोगिता समझी और शाकाहार को अपने भोजन का मुख्य अंग बनाया। यह सत्य है यदि मनुष्य उन मूक पशु पक्षियों की निर्दयता पूर्वक हत्याएं नहीं करता, उनके प्रति करुणा का भाव रखता तो यह कोरोना का रोग कभी नहीं आता।

🌷( २) अभिवादन प्रक्रिया

जब भारतीय संस्कृति कहती थी सबको ‘नमस्ते’ कहकर व दोनो हाथ जोड़कर अभिवादन करो तब पाश्चात्य वर्ग इस अभिवादन की प्रक्रिया को पुरातन मानकर उपेक्षा करता रहा। अब कोरोना का प्रभाव बड़ा और सारा संसार हाथ मिलाने व गले मिलने के दुष्परिणामों से अवगत हुआ तो सबने भारतीय संस्कृति की इस नमस्ते की सुंदर परम्परा को सहज स्वीकार किया। स्वीकार ही नहीं किया अपितु पश्चिमी देशों के अनेक राष्ट्राध्यक्षों ने इसे व्यवहार में भी लिया और इक दूजे से सम्यक दूरी बनाते हुए दोनो हाथ जोड़कर अभिवादन करने लगे।

🌷( ३) योगमय जीवन शैली

जब हमारे दर्शन कहते थे कि योग करो, निरोग रहो, तब दुनिया को इस सन्देश पर विश्वास नहीं होता था, अब कोरोना ने सबको योग के मार्ग पर चलना सिखा दिया। अब सब लोग कहते हैं – योग करो, आसन आदि से अपनी शारीरिक शक्ति बढ़ाओ जिससे हम स्वस्थ व दीर्घायु होंवें। भस्त्रिका, कपालभाति आदि प्राणायाम करके आंतरिक प्राणिक शक्ति का संवर्धन करो, इनसे हमारी रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है और हमें ऐसे विषाक्त रोगों से लड़ने की ताकत मिलती है।

🌷 (४) शौच

जब कहा जाता था कि योग के आठ अंगों को मानो, यम नियम का पालन करो, ‘शौच’ पर ध्यान दो तब किसी ने गंभीरता से नहीं लिया पर जब इस महामारी ने अपना प्रचंड प्रकोप दिखाया तो सबको शौच का महत्व समझ आने लगा और बार बार हाथ धोने और सेनेटाइजर का प्रयोग करने लगे और अपने शरीर, घर, गली, मोहल्ले की शुचिता (साफ सफाई ) में गम्भीरता से जुट गए।

🌷(५ ) यज्ञ

जब हमारे वेद कहते थे ‘यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म’

तब इसके तत्व को हम समझ नहीं पाए। जब हमारे शास्त्र कहते थे ‘होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से’ तब इसके अभिप्राय को आम जनता गंभीरता से नहीं ले पाई। किंतु अब विश्व के दूषित वातावरण को शुद्ध करने के लिए सारा समाज यज्ञ की ओर प्रवृत्त हो रहा है । जब हमारे ऋषि कहते थे कि यज्ञ से उत्पन्न गैसें वातावरण के समस्त विषाणुओं को समाप्त कर देती हैं, तब हमने उसे विज्ञान द्वारा अप्रमाणित समझ उपेक्षित कर दिया, अब सभी त्रस्त जन विषैले वायरसों से बचने व पर्यावरण के शोधन हेतु यज्ञ के प्रभाव को स्वीकार कर रहे हैं और प्रतिदिन यज्ञ करने को प्रवृत्त हो रहे हैं।

🌷(६) अंत्येष्टि संस्कार

वैदिक संस्कृति में मृतक जनों को अग्नि में दाह करने की परंपरा थी किंतु अन्य मजहबों में उन्हें भूमि में गाडने की। अब कोरोना के कारण मृतक शरीर में व्याप्त कीटाणुओं के भूमि में संक्रमण के फैलाव के भय से मृतक को अग्नि के सुपुर्द करने की हिदायत दी जा रही है क्योंकि अग्नि में वह शक्ति होती है जो समस्त प्रकार के बैक्टीरियाओं व वायरसों का नाश कर देती है। इसीलिए अब मृतकों के अन्तिम संस्कार को अग्नि द्वारा करने की मांग उठ रही है।

🌷(७ ) निराकार भक्ति

कोरोना वायरस के डर से सभी मंदिर बंद हो गए, गिरजाघरों पर ताले लग गए, मक्का मदीना सूने हो गए, भक्तों का बाहर निकलना दुष्कर हो गया, सभी प्रकार की साकार पूजा पद्धति बंद सी हो गई परन्तु हमारी सत्य सनातन वैदिक पूजा पद्धति जो कि निराकार पूजा पद्धति है, बन्द नहीं हुई । क्योंकि हम कभी भी, कहीं भी बैठ कर उस निराकार ईश्वर की भक्ति कर सकते हैं। इसके लिए हमें मंदिर, मस्जिद, चर्च व गुरुद्वारे आदि पूजाघरों में जाने की आवश्यकता नहीं है। कहीं भी बाहर जाए बिना अपने घर में बैठकर आंखें बंद करके बस अपने हृदय में उस निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक ईश्वर का ध्यान करना है।

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी संस्कृति सनातन व सर्वश्रेष्ठ है। वेद में कही गई बातें व शिक्षाएं सर्वकालिक है, सार्वभौमिक है, सत्य है, वैज्ञानिक दृष्टि से सही है व निरापद है। सबसे बड़ी व मुख्य बात तो यह है कि वह किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं है, अपितु समस्त मानव जाति के लिए है, सबके लिए अनुकरणीय है, हितकर है। इसीलिए सभी जनों को आवश्यक है कि वे इसमें बताई गयी शिक्षाओं का पालन करें और अपनी पुरातन सभ्यता व संस्कृति को पुनः अपनाएं तभी मानव जाति निरोग रह सकती है और तब ही मानव मात्र का कल्याण सम्भव है।

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