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अपने भीतर ही विद्यमान है रूप-सौन्दर्य का प्रपात

रूप-रंग लावण्य और सौन्दर्य न कहीं बाहर से आता है, न थोंपा जा सकता है।  इसका सीधा रिश्ता होता है अपने ही भीतर से। हर इंसान के भीतर ही विद्यमान रहता है अपने रूप-रंग को निखारने और अप्रतिम सौन्दर्य का वह महाप्रपात, जो हमेशा अक्षुण्ण बना रहता है। यह इंसान पर निर्भर है कि वह […]

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