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बिखरे मोती

बिखरे मोती भाग-58

क्षमावान का भी कोई, बैरी पनप न पाय गतांक से आगे….जो राजा डरपोक हो,और संन्यासी बनै कांप।इनको भूमि निगलती,ज्यों चूहे को निगलै सांप।। 653 ।। ‘संन्यासी बनै कांप’ से अभिप्राय है-जो ज्ञानवान संत हैं, किंतु नदी के रेत की तरह एक ही स्थान पर पड़े हैं। दुष्टों की पूजा नही,बोलै न वचन कठोर।।संतों का आदर […]

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बिखरे मोती भाग-57

अध्यात्मवाद की वैदिक पद्घति : संध्योपासन-भाग दो गतांक से आगे……आचार्य भद्रसेनमहाराज कृष्ण गीता में कहा है-इंद्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:।हे अर्जुन! इंद्रियां बड़ी बलवान हैं। ये जबरदस्ती मन को अपनी ओर खींच लेती हैं। अत: इंद्रियों के बलवान होने के साथ साथ उनका सन्मार्गगामी होना भी परमआवश्यक है। यह तभी होगा, जब उनके अंदर से […]

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बिखरे मोती भाग-56

आदर मिले न खैरात में, चाहता हर इंसानगतांक से आगे….आदर मिले न खैरात में,चाहता हर इंसान।गुणों के बदले में मिले,बनना पड़ै महान ।। 636 ।। अर्थात इस संसार में सम्मान हर व्यक्ति चाहता है किंतु यह उपहार में नही मिलता है। इसे तो आप अपने विलक्षण गुणों के द्वारा अर्जित करते हैं। इस संदर्भ में […]

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बिखरे मोती भाग-54

ऐसे जीओ हर घड़ी, जैसे जीवै संतगतांक से आगे…. ऐसे जीओ हर घड़ी,जैसे जीवै संत।याद आवेगा तब वही,जब आवेगा अंत ।। 630 ।। प्रसंगवश कहना चाहता हूं कि ‘गीता’ के आठवें अध्याय के पांचवें श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, हे पार्थ!

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