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पी संग होली

छलक-छलक रंग छितरा के, पी मोसे छली-छबि छिपा के, जो नैनन निश्छलता भर कर, बाँध मुझे भरमा रहे हो, निज दरस का रस दिखला के, प्रेम इंगित इठला रहे हो, तो जान लो कर लाख मनचाही, न चले है कपट इह कन्हाई, सरक-सरक चल छोड़ मोरी कंठी, न निरख नसि चल हट पाखंडी, रिझत-रिझत तोरे […]

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