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कहां गये वो लोग?

स्वरूप बिगड़ता देख कर अपना, क्या तू भी कभी बोलती है?उत्खनन हो रहा खनिजों का, सोना, चांदी, हीरे, मोती।चलते हो बम दमादम जब, क्या तू भी सिर धुनकर रोती? रोती होगी तू अवश्यमेव, यह होता आभास।आंसू छलके जब जब तेरे, यह बता रहा इतिहास। मत दे जीवन धरनी उनको, है दिल की यह अरदास।मानव रक्त […]

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